साहित्य सरोकार : परम्परा और परिवेश का आईना है आज की ग़ज़ल
⚫ वरिष्ठ साहित्यकार प्रोफेसर रतन चौहान ने कहा
⚫ जनवादी लेखक संघ की ग़ज़ल गोष्ठी में पढ़ी गई प्रभावी ग़ज़लें
हरमुद्दा
रतलाम, 19 मार्च। आज की ग़ज़ल में परंपरागत प्रभाव भी मौजूद है तो समय के साथ होने वाले परिवर्तन भी । ग़ज़ल इंसानियत की पैरोकार बनी है । बदलते तेवर और नए -नए विषयों को ग़ज़ल ने स्वीकारा है। यही कारण है कि ग़ज़ल आज सर्वाधिक लोकप्रिय विधा के रूप में स्थापित है । इसकी खूबी और खूबसूरती इसकी संक्षिप्तता और कम शब्दों में अधिक बात कहना है।
यह विचार जनवादी लेखक संघ द्वारा आयोजित ग़ज़ल गोष्ठी में विशेष वक्तव्य देते हुए वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. रतन चौहान ने व्यक्त किए । उन्होंने कहा कि हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं ने ग़ज़ल को संवारा और हमारी साझी संस्कृति और हमारे सामाजिक संबंध को ग़ज़लों के ज़रिए और अधिक पुख्ता किया। ग़ज़ल के हर शेर में एक नई बात होना और उस शेर का लोगों की ज़ुबान पर चढ़ना उसकी सफलता का पैमाना है। प्रो. चौहान ने कहा कि ग़ज़ल को लोकप्रिय बनाकर युवा ग़ज़लकारों ने इस विधा को समृद्ध किया है।
अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ शायर फ़ैज़ रतलामी ने कहा कि आज नए-नए ग़ज़लकार हालत की बात कर रहे हैं , इससे ज़ाहिर है कि साहित्य समय के साथ चलते हुए अपने दायित्वों को पूरा कर रहा है। जलेसं अध्यक्ष रणजीत सिंह राठौर ने कहा कि हमारी रचनात्मक गतिविधियों से एक वातावरण निर्मित होता है,जो नई पीढ़ी को प्रेरित करता है।
ऊंचाई प्रदान की रचनाएं सुनाकर
गोष्ठी में जावरा से आए वरिष्ठ शायर आरिफ अली आरिफ, युसूफ सहर एवं युवा ग़ज़लकारों ने अपनी बेहतरीन ग़ज़ल सुना कर गोष्ठी को नई ऊंचाइयों प्रदान की। इसके साथ ही सिद्दीक़ रतलामी, आशीष दशोत्तर, मुकेश सोनी, दिलीप जोशी, हरिशंकर भटनागर , रामचंद्र फुहार, रामचंद्र अंबर, सुभाष यादव, प्रकाश हेमावत, कीर्ति शर्मा, श्याम सुन्दर भाटी, वरदीचंद पोरवाल सहित उपस्थित साहित्य साधकों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को आनंदित किया। संचालन वरिष्ठ शायर सिद्दीक़ रतलामी ने किया तथा आभार कीर्ति शर्मा ने व्यक्त किया। इस अवसर पर जलेसं की नई कार्यकारिणी गठित होने पर पदाधिकारियों का अभिनंदन भी किया गया। गोष्ठी में साहित्य प्रेमी मौजूद थे।