यादों के झरोखे से : पत्रकारिता जगत के स्वर्णिम हस्ताक्षर, जिनकी आभा उन्हें बनाती है अभय
⚫ जब हिंदी पत्रकारिता कुरु के उस मैदान में जा खड़ी हुई जहां सत्य की तरफदारी करने का अभिप्राय अपने लिए मौत का चुनाव करने जैसा था । तब शरद जोशी, राजेन्द्र माथुर और राहुल बारपुते जैसे दिग्गज कलमकारों ने नई दुनिया को एक दृढ़ हिमालय बना दिया और और हिमालय की बुनियाद में अभय जी ने एक ऐसे तपस्वी की भूमिका अदा की जिसने वरदानों से स्वार्थ सिद्ध करने के बजाए देवताओं के भी कान खींचने से कभी गुरेज नहीं किया ।⚫
⚫ त्रिभुवनेश भारद्वाज
जिनकी आभा उन्हें अभय बनाती है। नई दुनियां एक अखबार नहीं अपितु हिंदी का प्रखर सूचना संवाहक, खोजी और जनहितापेक्षी ईमानदार पत्रकारिता का दक्ष प्राध्यापक था। जब हम नई दुनिया की बात करते हैं तो संस्थापक श्री बाबू लाभचंद जी छजलाणी का नाम एक दिव्य नक्षत्र के रूप में अक्षरों के आकाश पर स्वर्णिम गरिमा धारण किए जगमगाता रहेगा लेकिन एक छोटे से ध्येय को एक युगान्तकारी मिशन बनाने के साथ लोकप्रियता में एक प्रभावी दस्तावेज के रूप में पहचान अभय जी छजलाणी ने ही दिलाई।
नई दुनिया एक ऐसा महापुरुष था जिसने जन आकांक्षाओं पर खरा उतरने के लिए अगणित अग्नि परीक्षाएं दी और धारदार विश्वसनीय पत्रकारिता की झंडाबरदारी भी की । जिसके अगणित अनन्य भक्त तो बेहिसाब अदृश्य शत्रु भी। एक समयकाल से सभी वाकिफ हैं। जब हिंदी पत्रकारिता कुरु के उस मैदान में जा खड़ी हुई जहां सत्य की तरफदारी करने का अभिप्राय अपने लिए मौत का चुनाव करने जैसा था । तब शरद जोशी, राजेन्द्र माथुर और राहुल बारपुते जैसे दिग्गज कलमकारों ने नई दुनिया को एक दृढ़ हिमालय बना दिया और और हिमालय की बुनियाद में अभय जी ने एक ऐसे तपस्वी की भूमिका अदा की जिसने वरदानों से स्वार्थ सिद्ध करने के बजाए देवताओं के भी कान खींचने से कभी गुरेज नहीं किया।
तब भी नई दुनिया की साख और विश्वसनीयता में कोई कमी नहीं आई
जो पत्रकारिता को जानता है वो बेहतर समझ सकता है कि सम्पादक कितना भी महान हो वो अपना काम तभी कर सकता है, जब मालिक उसे पूरी स्वाधीनता देता हो। नई दुनिया का मुद्रण आधुनिक मशीनों पर क्या शुरू हुआ प्रसार संख्या के साथ देर रात तक की घटनाओं और जन अभिरुचि की सामग्री का प्रकाशन का रवैया और केंद्र में उपस्थित महानायक का होना इस समाचार पत्र को अग्रणी बना गया। दौर ऐसा भी आया जब दैनिक भास्कर जैसे विशुद्ध वाणिज्यिक अंदाज में पैर पसारने लगा, तब भी नई दुनिया की साख और विश्वसनीयता में कोई कमी नहीं आई। मैं एक अच्छा पाठक होने के नाते नई दुनिया के काफी करीब रहा।
फर्क होता है ” बांसुरी की आवाज और फटाखें की आवाज में”
मुझे याद है जब भास्कर ने दुर्धर्ष योद्धा की तरह नई दुनिया और अभय जी पर अपने सारे व्यावसायिक ब्रह्मास्त्र चलाए, तब भी अभय जी अविचल अपना काम करते रहे। इंदौर तो जैसे इन दोनों समाचार पत्रों की रणभूमि था ही। शहर में नई दुनिया ने भास्कर के विप्लवकारी प्रहारों के सामने बड़ी गरिमा से अपनी बात रखते हुए इश्तेहार लगवाए कि “फर्क होता है बांसुरी की आवाज और फटाखें की आवाज में”।
शासन प्रशासन की कुंडली बदलने की थी ताकत
एक दो बार सामाजिक कार्यों से उनसे मिलना हुआ तो नई दुनिया के विशाल प्रेस में उनको सामान्य कारिंदों के बीच सामान्य सी लकड़ी की कुर्सी और टेबल पर बैठा देखा। विनीत अंदाज, भला रवैया, दूसरों को सम्मान देकर काम करवाने का तरीका, फोन पर भद्रता का पालन और बिना दम्भ आसान शब्दों में अपनी बात करना देखने वाले को सम्मोहित करता था। उनकी गरिमा चमत्कृत करती थी। इतना बड़ा आदमी कभी किसी से नहीं कहता कि जानते नहीं मैं कौन बोल रहा हूँ,जबकि वो प्रशासन की कुंडली बदलने की ताकत रखते थे।
मेरे लिए वो था संग्रहणीय
मुझे याद है उन पर प्रख्यात लेखिका निर्मला भुराड़िया के द्वारा लिखी एक किताब “एक कप्तान हजार तूफान”पढ़ने पर आपको अभय जी का व्यक्तित्व दर्शन देगा। हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता।जो रतलाम के प्रकाश उपाध्याय का प्रदेश और देश की पत्रकारिता में उस वक्त शिखर के कद से परिचित हैं, उन्हें पता होगा कि नई दुनिया क्या चीज था। एक बार मैंने अभय जी के जन्म दिवस पर उनको एक भावपूर्ण पत्र लिखा जो मेरे अन्तःकरण में उनके प्रति आदर का उल्लेख पत्र था। वो निश्चित ही बहुत व्यस्त होंगे लेकिन उन्होंने समय निकाल कर उस पत्र की कुछ झलकियाँ उल्लेख में लेकर सुंदर जबाब भेजा। मेरे लिए वो संग्रहणीय था।अभय जी ने अपना पूरा जीवन एक बेहतरीन इंसान के रूप में जिया और अपने कृतु से एक आदरणीय सर्वकालिक छवि रच कर चले गए।
अभय जी न भूतों न भविष्यति।
वस्तुतः नई दुनिया को जागरण को सौंप कर उनका मिशन उनसे छूट गया था और जब ध्येय और जीवन के आधार बिछड़ जाते हैं तो जिंदगी में सांस लेने के लिए रह क्या जाता है।एक प्रखर कलमकार से वक्त ने कमल क्या छीनी अस्ताचल पर उदास रश्मियां साफ यह संदेश देती देखी जा रही थी कि अभय जी भीष्म पितामह की तरह उत्तरायण के सूर्य की प्रतीक्षा कर रहे हैं। युग के आंचल में अभय बार बार नहीं आते। वो एक शांत निलय में विलीन हुए और पीछे छोड़ गए एक अविस्मरणीय पत्रकारिता के अपवादहीन नायक की अमर परछाई जो सदैव भूमण्डल पर अभय का अस्तित्व बन उकरी रहेगी और अभय जी की समाधि पत्रकारिता का प्रेरक पुण्ममयी राजघाट हो जाएगी। अभय जी न भूतों न भविष्यति। आदरांजलि, भावांजलि।
⚫ त्रिभुवनेश भारद्वाज