स्मृति शेष : अल्प सफल अखबार को वटवृक्ष बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई अभयजी ने
⚫ नईदुनिया के कच्चे दिनों में उसे संभाला और उन्होंने दिन रात मेहनत कर अखबार को हिंदी का सर्वश्रेष्ठ अखबार बना दिया। अल्प सफल अखबार को वटवृक्ष बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई अभयजी ने। इंदौर की किसी होटल में अगर कोई चम्मच भी गिरता था तो उसकी आवाज अभयजी के कानो तक पहुंचती थी। इंदौर की हर गतिविधि पर उनकी नजर ही नहीं कान भी चौकन्ने रहते थे। ⚫
⚫ वीरेंद्र त्रिवेदी
नर्मदा के पानी को इंदौर के नागरिकों के घर तक लाने में अभयजी ने नईदुनिया के माध्यम से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने न केवल जनमत तैयार किया बल्कि शासन पर भी दबाव बनाया। अभय जी का जब तक इंदौर की पत्रकारिता पर एकाधिकार रहा तब तक इंदौर में सांप्रदायिक दंगो के समय बहुत ही संयम से नईदुनिया और अन्य समाचार पत्रो में समाचार प्रकाशित होते थे जिससे प्रशासन को न केवल दंगो को काबू पाने सफलता मिलती थी अपितु पूरे मालवा और निमाड की फिजा भी नहीं बिगडती थी।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का समाचार पत्र में पहला था साक्षात्कार
अभयजी ने सितंबर 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिराजी का लंबा साक्षात्कार रेसीडेसी कोठी इंदौर में लिया था। मप्र के किसी भी अखबार में प्रधानमंत्री का पहला साक्षात्कार था। सन 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीवगांधी के साथ चीन भी गए। उन्हें पत्रकारिता मे विशिष्ट योगदान के लिये विभिन्न पुरस्कारों और पद्मश्री से नवाजा गया। नईदुनिया संपादकीय बोर्ड के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार अभय छजलानी को को राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने पद्मश्री से सम्मानित किया। अभयजी को पत्रकारिता के लिए पद्मश्री मिलना उस परंपरा का सम्मान है, जिसने समूची हिन्दी पत्रकारिता को परिभाषित किया। हिन्दी पत्रकारिता की कोंपलों को उन्होंने बहुत करीने से सहेजकर पल्लवित होने में मदद की है।
1955 से 2012 तक जुड़े रहे नई दुनिया से
पद्मश्री अभयजी का जन्म 4 अगस्त 1934 को इंदौर में हुआ। वे नईदुनिया के पितृपुरुष बाबू लाभचंद छजलानी के सबसे बड़े पुत्र थे। बाबू लाभचंदजी प्रजामंडल से जुड़े थे। आजादी के आंदोलन भाग लिया। अनेक बार जेल गए। अभयजी ने मल्हारआश्रम से माध्यमिक शिक्षा प्राप्त कर इंदौर से क्रिश्चियन कालेज से स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त की। 28 जून 1955 को नईदुनिया अखबार में अपने पिता की मदद करने के लिए प्रवेश किया। सन 2012 में नईदुनिया के जागरण ग्रुप मे मिल जाने तक नवाचार के साथ नई दुनिया को शिखर तक पहुंचाने में कर्तव्यनिष्ठ बने रहे।
जनहित के समाचारों को दे देते महत्व
नईदुनिया का जन्म 5 जून 1947 को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कृष्णचंद्र व्यास ने सांध्य दैनिक के रूप मे किया था। सन 1948 के मध्य में बाबूलाभचंदजी ने अखबार को खरीदा और प्रातः कालीन दैनिक बना दिया। नईदुनिया के जन्म में अभयजी की कोई भूमिका नहीं थी किंतु उस अल्प सफल अखबार को वटवृक्ष बनाने में अभयजी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई समाचारों का प्रस्तुततीकरण तथा शीर्षक देने में अभय जी को महारत हासिल थी। जनहित के समाचार को प्रमुखता से छापने में कभी गुरेज नहीं किया।
इंदौर की नब्ज थी अभय जी के हाथों में
सन 1977 में नईदुनिया दैनिक हिंदुस्तान के बाद दूसरा हिंदी दैनिक था जिसकी प्रसार संख्या एक लाख थी। अभयजी के बारे में कहा जाता था, कि इंदौर की किसी होटल में अगर कोई चम्मच भी गिरता था तो उसकी आवाज अभयजी के कानो तक पहुंचती थी। इंदौर की हर गतिविधि पर उनकी नजर रहती थी।
उन्हें भोजन करना बहुत अच्छा लगता पिता के साथ
अभयजी पितृभक्त पुत्र थे। उन्होने अपने पिता को कार्यकलाप को जस का स्वीकार कर बिना घालमेल के आगे बढाया। वे यदि इंदौर में होते थे प्रतिदिन पिताजी के साथ ही दोनों समय खाना खाते थे। वे हमेशा कहते थे कि पिता के कर्ज को उतारना एक जन्म में संभव नहीं है। अपने मातहत काम करने वाले पत्रकारों और कर्मचारियों के लिए भी वे हमेशा अग्रज की भूमिका में रहते थे। एक समय इंदौर के सबसे ताकतवर व्यक्तित्व को हरमुद्दा डॉट कॉम परिवार की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि।
⚫ वीरेंद्र त्रिवेदी