शख्सियत : मात्र सौ रुपए सालाना सहयोग पर लघुपत्रिका ’अनुकृति’ का प्रकाशन चमत्कार से नहीं कम

⚫ डॉ. जयश्री शर्मा के संपादन में अनेक वर्षों से प्रकाशित

⚫ नरेंद्र गौड़

भीषण महंगाई के दिनों जबकि कागज से लेकर छपाई मजदूरी और पाठकों तक पत्रिका पहुंचना सभी खर्चिला हो चुका है, ऐसे समय में आश्चर्य है कि जयपुर से ’अनुकृति’ जैसी पठनीय साहित्यिक लघुपत्रिका मात्र सौ रूपए वार्षिक सहयोग के दम पर आज से नहीं विगत अनेक वर्षों से न सिर्फ छप रही है, वरन् बिना नागा पाठकों तक पहुंचाई भी जा रही है। डॉक खर्च भी पहले की अपेक्षा आज कहीं अधिक बढ़ चुका है और ऐसे में कोई साहित्यिक पत्रिका छापना आसान नहीं हैं, बल्कि इसे दुःसाहस ही कहा जाएगा।

साहित्य का फेसबुकिया दौर

लघुपत्रिका प्रकाशन का काम तब और भी कठिन है, जबकि फेसबुक के जमाने में जहां इसका हर पांचवां आदमी कवि, कथाकार, चित्रकार और उपन्यासकार तक होने का खिताब पा चुका है। ऐसे में छपे हुए साहित्य का मान और इज्जत पहले से घटी है। अब रचनाओं का बहुत बड़ा कबाड़ पसरा है, जहां से अपने लिए अच्छी रचना का चयन करना आसान नहीं है। पहले जहां लेखक की उम्र तीस-चालीस साल हो जाती थी, तब कहीं पहली किताब छपती थी। मुक्तिबोध जैसे कवि का पहला संकलन तब छपा जब वह मृत्युशैया पर थे। वहीं आज तो दस-बारह कविताएं फेसबुक पर आई नहीं कि न केवल किताब छपती है, बल्कि उसका भव्य विमोचन समारोह भी आयोजित हो जाता है। मित्रों, नातेदारों से मिलने वाली बधाई से पोस्ट भर जाता हैं और कृतार्थ होता हुआ तथाकथित रचनाकार अपनी फोटो ही नहीं वीडियो क्लिप भी फेसबुक के हवाले कर देता है।

पत्रिका रंगीन प्रकाशन की योजना

अनेक वर्षों से निरंतर प्रकाशित हो रही साहित्यिक पत्रिका ’अनुकृति’ करीब पचास पैज की है और इसका कवर रंगीन होता है, बाकी सामग्री श्वेतश्याम छपती है, लेकिन भविष्य में संपूर्ण पत्रिका रंगीन छापने की योजना बन सकती है, बशर्त इसी तरह पाठकों का सहयोग जारी रहा। अनुकृति की संपादक डॉ. जयश्री शर्मा है जो यह पत्रिका 14, एच, 94, इंदिरा गांधी नगर, पुलिस चौकी वाली गली, जगतपुरा, जयपुर से प्रकाशित करती हैं।

क्या है लघुपत्रिका आंदोलन

यहां लघुपत्रिका आंदोलन के बारे मे भी समझ लेना जरूरी होगा। भारत पर 1962 में हुए चीन के हमले और 1964 में पं. नेहरू के निधन के बाद हर क्षेत्र में आजादी के प्रति मोहभंग हो रहा था, क्योंकि लोगों ने जो स्वप्न देखे थे, वह पूरे नहीं हुए। वहीं दूसरी तरफ नेहरूवादी एकछत्र सत्ता के बुर्जुवा लोकतंत्र में अंतर्विरोध और दरारें उभरने लगी थीं। समाजवाद, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता विरोधी तमाम तरह की दक्षिणपंथी और मध्यमार्गी अवसरवादी शक्तियां गोलबंद होकर ताकतवर हो रही थीं। उन्हें अमेरिका की अगुवाई में पश्चिमी साम्राज्यवादी ताकतों, उनकी बहुराष्ट्रीय पूंजी तथा देशी इजारेदार पूंजीपति घरानों और उनकी पत्र-पत्रिकाओं का भरपूर समर्थन था। इसका असर तमाम सांस्कृतिक क्षेत्रों और साहित्यिक पत्रकारिता पर भी प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा था। सरकारी, अर्ध्द सरकारी और प्रतिष्ठानी पत्र-पत्रिकाओं के साथ ही धर्मयुग, सारिका, साप्ताहिक हिंदुस्तान, ज्ञानोदय, जैसी सेठाश्रयी पत्रिकाओं ने गतिशील सोच के लेखकों खासकर नए लेखकों के लिए प्रकाशन के अपने सारे दरवाजे बंद कर दिए। इसीके विरोध में हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं में 1964 से 1965 तक जर्बदस्त लघुपत्रिका आंदोलन चला। लेखकों के समूह छोटे-छोटे आयोजन कर अनेक लघु पत्रिकाओं का प्रकाशन करने लगे और उनमें नवोदित लेखकों को भी भरपूर स्थान दिया जाने लगा। पहल, आंकठ, आवेग, पहचान, कंक, इसलिए, वर्तमान साहित्य आदि ऐसी ही लघु पत्रिकाएं रही हैं। जहां एक पत्रिका बंद होती तो दूसरी निकलना शुरू हो जाती। इस दौर की खास बात यह रही कि 1967 में नक्सलवादी आंदोलन का सांस्कृतिक क्षेत्रों खासकर साहित्यिक पत्रकारिता के क्षेत्र में जबर्दस्त असर देखा गया। लधु पत्रिकाओं का खासा बड़ा हिस्सा तथा नवजवान लेखकों, संस्कृतिकर्मियों का बहुमत इस ओर आकर्षित होने लगा। नतीजा यह रहा कि 1969-70 से लघु पत्रिका आंदोलन ने जोर पकड़ा, इसके बाद 2000 तक साहित्यिक पत्रकारिता में मार्क्सवादी विचारधारा तथा व्यापक प्रगतिशील विचारधारा का बोलबाला रहा और आज जो भी लघुपत्रिकाएं निकल रही हैं वह इसी विचारधारा के निकट हैं।

डॉ. जयश्री को मिल चुके अनेक सम्मान

डॉ. जयश्री शर्मा

अनुकृति में कविता, कहानी, गीत, गजल, पुस्तक समीक्षा, रचनाकारों से बातचीत के साथ ही विभिन्न आयोजनों की सचित्र रपट भी प्रकाशित होती है। श्रीमती शर्मा ने ’दुष्यंत का काव्यः स्वरूप शिल्प और संवेदना विषय पर पीएचडी किया है। उल्लेखनीय है कि राजस्थान में दुष्यंत को लेकर उनकी यह पहली पीएचडी है। इनके दो कहानी संग्रह ’शहीद की चिट्ठी, और ’शिवकोरी’ प्रकाशित तथा चर्चित हो चुके हैं। इनके दो कविता संकलन हैं ’ चांद गोधूलि का’ और गजल पंचदशी। एक किताब समालोचना की भी छपी है ’दुष्यंत कुमार: एक अध्ययन’। पत्रकारिता को लेकर भी एक किताब है ’संपादक कहिन’। डॉ. शर्मा ने 1976 से 1985 तक बीकानेर से एक आंचलिक पत्रिका ’छकियारी’ का भी प्रकाशन किया था। आप राजकीय पी.जी. महाविद्यालय, चिमनपुरा से एसोसियेट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं। राजस्थान की मूर्धन्य लेखिकाओं पर केंद्रित अनुकृति के 11 विशेषांक प्रकाशित हो चुके हैं। आपको 2002 में राजस्थान पाठक मंच व्दारा सम्मानित किया जा चुका है। 2008 में खानपुर अलवर से ’विशिष्ट साहित्यकार सम्मान मिल चुका है। अखिल भारतीय हिंदी सेवी संस्थान, इलाहबाद से आपको ’राष्ट्रभाषा गौरव’ सम्मान प्रदान किया जा चुका है। वर्ष 2014 में श्री डूंगरगढ़ हिंदी प्रचार प्रसार समिति व्दारा ’साहित्यश्री’ सम्मान प्रदान किया जा चुका है। इसके अलावा 2015 में नाथव्दारा साहित्य मंडल व्दारा ’संपादक शिरोमणि’ सम्मान, 2017 में राजस्थान लेखिका सम्मेलन जो कोटा में आयोजित था, वहां इन्हें ’महाश्वेता देवी सम्मान प्रदान किया गया, अलवर में वर्ष 2017 के दौरान श्री तेजेंद्र कुमार अग्रवाल स्मृति सम्मान, 2019 में राष्ट्रीय सलिला साहित्य रत्न सम्मान, 2021 में संपर्क संस्थान व्दारा ’गुरूवंदन सम्मान’ 2021 में मां भारती कविता महायज्ञ विश्व कीर्ति मान में ’काव्य सारथी’ सम्मान आदि प्रदान किए जा चुके हैं। श्रीमती जयश्री ’राजस्थान लेखिका साहित्य संस्थान, जयपुर की अध्यक्ष हैं। आपके पति श्री बी.एल. खांडा राजस्थान सरकार में पूर्व मंत्री रहे हैं।

निष्ठावान पाठकों की कमी नहीं

एक सवाल के जवाब में इन्होंने बताया कि बढ़ती हुई महंगाई को देखते हुए मात्र सौ रूपए सहयोग के दम पर और वह भी बिना विज्ञापन छापे, साहित्यिक पत्रिका का प्रकाशन अत्यंत जोखम भरा काम है। लेकिन यह सभी एक जुनून की वजह से जारी है। अनेक बार अपने खर्च पर भी पत्रिका छापनी पड़ती है। वहीं सदस्यों व्दारा समय पर सौ रूपए भी नहीं भेजे जाते हैं। ऐसे में तगादा करने में भी शर्म आती है, लेकिन फिर भी निष्ठावान पाठकों की कमी नहीं है, जिनके दम पर अनुकृति का प्रकाशन जारी रहेगा।

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