धर्म संस्कृति : आलसी कभी किसी के आइडियल नहीं बनते
⚫ आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा ने कहा
⚫ अभ्युदय चातुर्मास में कठोर तप आराधना
हरमुद्दा
रतलाम, 15 जुलाई। आपने संसार को खूब समय दिया, लेकिन बदले में संसार ने आपकों क्या दिया? संसार केेवल संक्लेश देता है और सबका जीवन इसी में बीत जाएगा, यदि पुरुषार्थ नहीं किया। काल का, मृत्यु का कोई भरोसा नहीं, इसलिए आलस्य को त्याग दो। आलसी व्यक्ति कभी किसी के आइडियल नहीं बनते।
यह बात परम पूज्य प्रज्ञा निधि युगपुरुष आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन में उपस्थित श्रावक एवं श्राविकाओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि आलस्य के कारण कुछ लोग बाहर से तो कुछ अंदर से शक्ति विहिन होते है। जबकि अंदर और बाहर सब प्रकार से शक्तिशाली बनना चाहिए। श्री वैराग्यप्रिय मुनिजी एवं श्री विशालप्रिय मुनिजी शक्तिशाली रहे, इसीलिए इन्होंने आत्म कल्याण के लिए संयम धारण किया और आइडियल बनकर पाट पर बैठे है।
प्रभु पर विश्वास और स्वयं परात में विश्वास नहीं करने देता आलस्य
आचार्यश्री ने कहा कि आलस्य-प्रभु पर विश्वास और खुद पर आत्म विश्वास, ये दो काम कभी नहीं करने देता है। आलस्य की तीन कमजोरियां होती है। पहली इसमें व्यक्ति शिकायतें करता रहता है। दूसरा हमेशा उंची आवाज में बोलता है और तीसरी अपने आप को ही सर्वेसर्वा मानता है। इन्हीं तीन कमजोरियांे के माध्यम से आलस्य जीवन में प्रवेश होता है। इनसे हमारे अदंर की जांच की जा सकती है। यदि ये कमजोरियां मिले, तो अपने स्वभाव को बदलो और पुरूषार्थी बनो। उन्होंने कहा कि आलस्य दुर्मति का चैथा दोष है। इससे मुक्त हुए बिना सन्मति नहीं आएगी। सन्मति से सदगति और सदगति से ही सिद्धी पाई जा सकती है।
जरूरत अपने आप को बदलने की
प्रवचन के आरंभ में उपाध्याय, प्रज्ञारत्न श्री जितेशमुनिजी मसा ने कहा कि मनुष्य संसार में स्थान और रूप ही बदलता है। आज रूप को नहीं, अपने आप को बदलने की आवश्यकता है। विद्वान सेवारत्न श्री रत्नेश मुनिजी मसा ने भी संबोधित किया। आदर्श संयमरत्न श्री विशालप्रिय मुनिजी मसा ने श्रावक-श्राविकाओं से प्रवचनों पर आधारित रोचक प्रश्न किए। संचालन हर्षित कांठेड द्वारा किया गया।
अभ्युदय चातुर्मास में कठोर तप आराधना
परम पूज्य प्रज्ञा निधि युगपुरुष आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा की प्रेरणा से अभ्युदय चातुर्मास में कठोर तप आराधना का दौर शुरू हो चुका है। तरूण तपस्वी श्री युगप्रभजी मसा ने 23 उपवास, सेवानिष्ठ, एकान्तर तप के तपस्वी श्री जयमंगल मुनिजी मसा ने 17 और विद्यावाग्नी महासती श्री गुप्तिजी मसा ने 14 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। इसी प्रकार सुश्रावक पुनीत पिरोदिया ने 17 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। बेले और तेले की लडी भी लगातार जारी है।