सेहत सरोकार : भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा है अंगदान
⚫ दंडी महाराज स्वामी आत्मानंद जी महाराज ने कहा
⚫ अंगदान पर स्वयं विद्यार्थियों को करना चाहिए चिंतन : चेयरमैन अनिल झालानी
⚫ सृजन महाविद्यालय में अंगदान जागरूकता दिवस पर हुआ आयोजन
हरमुद्दा
रतलाम, 5 अगस्त। समय-समय पर हिन्दू गंथों के माध्यमों से यह जानकारी प्राप्त होती रही है कि अंगदान भारतीय संस्कृति का एक हिस्सा रहा है। ऐसा एक किस्सा महान ऋषि दधिचि का शास्त्रों से मालूम होता है। उन्होंने अपनी हड्डियों का दान देवताओं को शस्त्र बनाने के लिए किया, ताकि असूरों का नाश हो सके। इसी तरह महान दयालु राजा शिवि की कहानी जिन्होनें एक कबूतर की जान बाज से बचाने के लिए अपने शरीर का मास उस बाज को दे दिया।
ये कहानियाँ सृजन महाविद्यालय में आयोजित अंगदान जागरूक कार्यक्रम में स्वामी आत्मानंद जी (डंडी महाराज) द्वारा कही गई।
अंगदान के लिए जरूरी है मानसिक रूप से तैयार होना
कार्यक्रम का सारांश सृजन महाविद्यालय के चेयरमेन व समाजसेवी अनिल झालानी ने अपनी माताजी के नेत्रदान का उल्लेख कर विद्यार्थियों को बताया व अंगदान के विषय पर स्वयं विचार करने के लिए विद्यार्थियों को सलाह दी जिसमें उन्होंने इस विषय पर स्वयं के लिए भी चिंतन छोड़ा व आगे चलकर एक सकारात्मक निर्णय लेने का प्रण लिया।
अंगदान पर स्वयं विद्यार्थियों को करना चाहिए चिंतन
कार्यक्रम में डॉ. गिरिश गौड द्वारा विद्यार्थियों को विशिष्ट रूप से स्वस्थ रहने के लिए कई उपाय बताये व समय-समय पर रक्तदान करने के लिए प्रेरित किया व अंगदान करने के लिए आज से ही मानसिक रूप से तैयार होने का आह्वान किया। कार्यक्रम मुस्कान गुप्र व सेवा संस्थान के तत्वावधान में हुआ। संचालन निसर्ग दुबे द्वारा किया गया।