मुख्यमंत्री जी रतलाम में ऐसा हुआ स्वतंत्रता दिवस का मुख्य आयोजन : बातों में मशगूल मुख्य अतिथि के लिए ही हुए सांस्कृतिक आयोजन, सैकड़ों भांजे भांजी तिरंगा लिए रहे हजार फिट दूर, निर्णायकों ने सुन कर दिया निर्णय, पुलिस विभाग में “सराहीन” कार्य करने वाले कर्मियों का किया प्रभारी मंत्री ने सम्मान

तीन से पांच किलोमीटर दूर स्कूल से पहुंची तिरंगा लिए हुए छात्राएं, हुई मायूस

कीचड़ में सांस्कृतिक प्रस्तुति देने को हुए विवश

शहरवासियों को षडयंत्र पूर्वक कर रहे मुख्य समारोह से दूर

आमजन का कहना शहर के मध्य नेहरू स्टेडियम के समीप भी हो सकता है मुख्य आयोजन

मुख्यमंत्रीजी आखिर जिला प्रशासन को किस बात की देते हैं शाबाशी, और थपथपाते हैं पीठ

हेमन्त भट्ट

रतलाम, 15 अगस्त। आखिर यह बात समझ में नहीं आ रही है मुख्यमंत्री जी की आप जिला प्रशासन को किस बात के लिए शाबाशी देते हैं और पीठ थपथपाते हैं क्योंकि आजादी के अमृत महोत्सव के समापन के स्वतंत्रता दिवस का मुख्य आयोजन ही ऐसा हुआ कि आपके भांजे और भांजियां परेशान होते रहे। कीचड़ में सांस्कृतिक प्रस्तुति देने को विवश हुए। जब अतिथियों के समक्ष प्रस्तुतियां दी गई, वे बातों में मशगूल थे और जो देखने के लिए आए थे उन्हें काफी दूर, बहुत दूर रहना पड़ा, जहां से कुछ नजर नहीं आ रहा था। यहां तक की निर्णायक भी सुनकर निर्णय देने को मजबूर हुए कि कौन सी प्रस्तुति श्रेष्ठ रही। आयोजन में प्रभारी मंत्री ओपीएस भदौरिया ने पुलिस विभाग के कर्मचारियों को “सराहीन” कार्य के लिए प्रशस्ति पत्र तक दे दिए।

मुख्यमंत्री जी मुद्दे की बात तो यह है कि रतलाम में पहले शहर के मध्य नेहरू स्टेडियम में दोनों ही राष्ट्रीय उत्सव मनाए जाते रहे हैं। मगर आमजन की सुविधा के लिए लाखों रुपए खर्च कर नवीन स्टेडियम का निर्माण किया गया, उस दौरान राष्ट्रीय पर्व का उत्सव कृषि उपज मंडी और पुलिस लाइन में मनाया जाने लगा। 26 जनवरी को तो उत्सव पुलिस लाइन के ग्राउंड पर ही मनाया जाता रहा जबकि स्वतंत्रता दिवस का आयोजन कृषि उपज मंडी में होता रहा ताकि बारिश में परेशानी ना हो। वहां पर भी व्यवस्थित तरीके से हुए भी।

ऊपर कोने में खड़ी छात्राएं बीच में खड़े व्यक्ति से भी काफी दूर हो रहे हैं सांस्कृतिक आयोजन

मगर पिछले कुछ सालों से पुलिस लाइन में आयोजन किया जा रहा है, जहां पर भारी कीचड़ रहता है। अव्यवस्था रहती है। सभी परेशान होते हैं। इसी कारण शहरवासी भी उधर नहीं नहीं है। कई लोगों तो उस क्षेत्र में जाना ही पसंद नहीं है। इसीलिए कई स्कूल वाले अपने स्कूल में ही आयोजन करके उत्सव मनाते आए हैं लेकिन सरकारी स्कूल वालों को तो बच्चों को लेकर जाना ही पड़ता है। उनकी तो मजबूरी है।

तिरंगा लिए काफी दूर बैठी रही छात्राएं हुई मायूस

डंडा लिए खड़ी मैडम ने इसके आगे नहीं जाने दिया बच्चों को

मंगलवार को भी कोठारीवास स्थित महारानी लक्ष्मीबाई कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सहित अन्य शासकीय विद्यालयों की छात्र-छात्राएं हाथों में तिरंगा लिए हुए पुलिस लाइन के मुख्य आयोजन में पहुंचे, ताकि वह उत्सव का आनंद ले सके लेकिन उत्सव तो केवल अतिथियों के समक्ष ही हुआ।

चित्र दे रहे हैं चीख चीख कर गवाही, पीछे लोग झांक कर सांस्कृतिक प्रस्तुति देख रहे। अतिथि बातों में मशगूलसब जानते हैं कौन किससे बात कर रहा है

उस दौरान अतिथि बातों में मशगूल थे। या यूं कहें कि चुनावी साल में अपनी उनके समक्ष पेशी कर रहे थे। छात्र-छात्राओं को तो यही कहना था कि भीड़ बढ़ाने के लिए हमारा उपयोग किया है ताकि अतिथि को नजर आए कि विद्यार्थी आए हैं लेकिन हमें सांस्कृतिक उत्सव का आनंद नहीं मिल पाया। न ही हम उससे कुछ सीख पाए। यहां कीचड़ गुथना पड़ा और कपड़े खराब किए। मायूसी के सिवाय कुछ भी नहीं मिला।

निर्णायक और संचालन करने वाले दोनों होते रहे परेशान

निर्णायक देखने की कोशिश करते हुए संचालन करता झांकने की
अतिथियों के समक्ष सांस्कृतिक प्रस्तुति देते हुए जिन्हें कवर करते हुए मीडिया। उसके पीछे बैठे निर्णायक का ऊपर फोटो अब क्या दिखेगा इन्हें? यह थी व्यवस्था

खास वजह तो यह थी कि मैदान कीचड़ से सराबोर था, कुछ जगह थी, जहां पर प्रस्तुति हो गई। निर्णायक डॉ. वाय के मिश्रा, रजनीश सिन्हा, बीके पाटीदार बार-बार प्रयास करते रहे कि वह भी सांस्कृतिक आयोजन देखकर निर्णय दे सके लेकिन वह केवल सुन रहे थे, कोशिश तो कर रहे थे कि उन्हें कुछ नजर आए, यदि सफल हुए हो तो उनका सौभाग्य। इसी तरह कार्यक्रम का संचालन करने वाले आशीष दशोत्तर और विनीता ओझा को भी कम ही नजर आ रहा था। वे भी झांक झांक कर देखने का प्रयास कर रहे थे ताकि प्रस्तुति के समापन पर वह कुछ बोल सके।

“सराहीन” कार्य लिखा दिया गया प्रशस्ति पत्र

सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के समापन के पश्चात बारी आई उत्कृष्ट कार्य करने वालों को सम्मानित करने की। जिला प्रभारी मंत्री ओपीएस भदौरिया द्वारा जिला प्रशासन, शिक्षा विभाग, राजस्व विभाग के लोगों को सम्मानित किया गया जब बारी आई पुलिस विभाग में अनुकरणीय कार्य करने वाले पुलिसकर्मियों के सम्मान की तो उन्हें “सराहीन” कार्य के लिए सम्मानित किया गया। यह उन्हें प्रमाण पत्र लिखित में दिया गया, जिस पर कलेक्टर नरेंद्र कुमार सूर्यवंशी के हस्ताक्षर हैं। ऐसा पुलिस कर्मियों को मिले प्रशस्ति पत्र पर लिखा गया। हद है लापरवाही की।

नेहरू स्टेडियम के पास ही होना चाहिए राष्ट्रीय उत्सव का मुख्य आयोजन

मौजूद लोगों से हुई चर्चा में यही बात सामने आई कि जिला प्रशासन के जिम्मेदार लोगों को शहर के मध्य नेहरू स्टेडियम के पास मैदान पर भी मुख्य आयोजन करना था। वह स्थान भी इतना ही बड़ा है जितना की पुलिस लाइन का है। तो फिर साफ बात यही है कि शहरवासियों को मुख्य आयोजन में शामिल होने से दूर करने के षड्यंत्र के अलावा और कुछ नजर नहीं आता। अधिकांश लोगों का तो यही कहना है कि उस क्षेत्र में आने का मन नहीं करता है, शहर से काफी दूर है।

तब भी उठाई थी आपत्ति, मगर सभा होनी थी आपकी मुख्यमंत्री जी

कुछ माह पहले ही जब मुख्यमंत्रीजी आपकी सभा होनी थी, तब नेहरू स्टेडियम की नवनिर्मित दीवार तोड़ दी गई थी ताकि आयोजन अच्छे से हो सके। हालांकि बाद में दीवार बना दी गई। इससे मतलब साफ है कि राष्ट्रीय उत्सव से जिम्मेदारों का कोई लेना देना नहीं, उन्हें तो अपनी सरकार को खुश करना है, केवल खुश। जबकि उस दौरान भी खेल संगठनों ने इसके लिए आपत्ति उठाई थी, मगर उनकी बात को अनसुना कर दिया गया।

इसलिए इन्होंने उठाई आपत्ति

वर्तमान में भी नवनिर्माण के पश्चात नेहरू स्टेडियम मैदान पर खिलाड़ी विभिन्न खेल के अभ्यास करते हैं। शहरवासी मॉर्निंग और इवनिंग वॉक करते हैं। क्रिकेट मैच होते हैं। शहरवासी और खिलाड़ी अपनी सेहत बनाते हैं, मगर उत्सव के दौरान मैदान को ऐसा खराब कर दिया जाता है कि खिलाड़ियों को काफी दिक्कत होती थी। मैदान पर चूरी ही चूरी बिछा दी जाती थी। खिलाड़ी इसके कारण चोटिल होते थे। इस कारण खेल संगठनों ने इसका विरोध किया। विरोध राष्ट्रीय उत्सव मनाने का नहीं, बल्कि पुनः मैदान में व्यवस्थित करने का था मुद्दा।

नेहरू स्टेडियम के पास मैदान पर भी हुए हैं कई भव्य और विशाल आयोजन

शहर के मध्य नेहरू स्टेडियम के पास में भी मैदान है, जहां पर यह राष्ट्रीय उत्सव हो सकते हैं मगर जिम्मेदारों को तो उसे किराए पर देने से फुर्सत नहीं मिलती, तो वह कैसे वहां पर आयोजन करें। आपकी राष्ट्रभक्ति की भावना की उनको कोई कदर नहीं है। जबकि इस मैदान पर भी कई बड़े-बड़े भव्य और विशाल आयोजन होते रहते हैं तो फिर राष्ट्रीय उत्सव जैसा मुख्य आयोजन क्यों नहीं किया जाता?

आखिर क्यों क्यों क्यों?

शहर का नेतृत्व इस मामले में मौन क्यों रहा है? आखिर शहरवासियों की राष्ट्रीय भावना के साथ क्यों खिलवाड़ किया जा रहा है? क्यों उन्हें मुख्य उत्सव से दूर किया जा रहा है? यह सारे प्रश्न आमजन के जेहन में आ रहे हैं।

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