शख्सियतः लोक गायन की प्राचीन परंपरा समाप्त होने की कगार पर : सावित्री गिरी
⚫ बाजारवाद के कारण अपसंस्कृति का प्रसार
⚫ बोलियों के साहित्य जैसा माधुर्य अन्यत्र नहीं
⚫ नेपाली भाषा हिंदी की सहोदर
⚫ नरेंद्र गौड़
’नेपाली एक प्रकार की लोकभाषा है और इसकी मिठास वर्णन से परे है। अपनी भाषा के साथ ही संस्कृति से भी नेपालियों का मोहित होना स्वाभाविक है और यही मोह वहां के देशवासियों को एकजुट करता है। यदि अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति मोह नहीं होता तो नेपाल जैसा छोटा-सा देश सदियों पहले अंग्रेजों के साम्राज्यवाद की चपेट में आकर भारत की तरह गुलाम हो चुका होता। आज आवश्यक्ता इस बात की है कि पुराने समय में भारत सहित नेपाल में जो लोकगीत गाए जाते थे, उन्हें किस प्रकार सहेजा जाए। यदि समय रहते उन्हें बाजारवाद से नहीं बचाया गया और नहीं सहेजा गया तो पुरखों की विरासत लुप्त हो जाएगी।’
नेपाल तथा भारत में लोकप्रिय
यह कहना था नेपाल की जानीमानी लोक गायिका श्रीमती सावित्री गिरी का, इनकी गायकी और नेपाल ही नहीं भारत के भी संगीत एवं काव्यप्रेमियों में लोकप्रिय हैं। इनका कहना है कि हमारा नेपाल प्राकृतिक और सांस्कृतिक वैभव से परिपूर्ण देश है, लेकिन भारत की तरह यह कभी भी विदेशियों की नजर में सोने की चिड़िया नहीं माना गया। यही कारण रहा कि धन दौलत लूटने के लालच में न तो पुर्तगालियों और न अंग्रेजों ने नेपाल पर कब्जा करने की कोशिश की।
कभी रहा था गरीब देश
इनका कहना था कि नेपाल भले ही कभी गरीब देश रहा था, लेकिन आज यह देश तेजी से समृध्द हो रहा है। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य लूट कर ले जा सकने वाली वस्तु थी नहीं, यही कारण रहा कि नेपाल विदेशी आक्रमणों और आक्रांताओं से सुरक्षित रहा। नेपाल को भारत की तरह दो सौ साल तक ब्रिटिश सरकार की गुलामी नहीं झेलना पड़ी। सावित्रीजी का कहना था कि नेपाल की आय का प्रमुख जरिया पर्यटन हैं और विदेशों से आए सैलानी अपने साथ नेपाल की फिल्में, गीत आदि ले जाते हैं। यही कारण है कि आज नेपाल में लोकगीत गाने वाले कलाकारों, संगीतकारों और ऐसे गीतों की अभिनय के साथ प्रस्तुति देने वाले महिला तथा पुरूष कलाकारों की बाढ-़ सी आई हुई है। जिसके चलते युवा पीढ़ी को रोजगार मिलने लगा है, लेकिन नेपाल की सरकार इस दिशा में सकारात्मक कदम नहीं उठा रही है।
लोकगीतों की परंपरा का संरक्षण जरूरी
एक सवाल के जवाब में इनका कहना था कि आज आवश्यक्ता इस बात की है कि लोकगायन की परंपरा को सहेजकर रखा जाए वरना पुराने जमाने में जो गीत गाए जाते थे, वह आगे आने वाले समय में दुर्लभ हो जाएगे। गांव की बुजुर्ग महिलाओं के पास जाकर पुराने गीतों को सुनकर उन्हें रिकार्ड करना चाहिए। जाहिर है यह काम शासकीय स्तर पर हो सकता है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो प्राचीन गीत उन महिलाओं के साथ काल कलवित हो जाएंगे। आधुनिक शिक्षा प्रणाली और पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के कारण भी लोकगायन परंपरा विलुप्त हो रही है, उसका बाजारीकरण हो रहा है। लोकगीत ऐसे विधा है जिसके जरिए नेपाल के लाखों लोगों को रोजगार मिल सकता है। ऐसा होता है तो यहां के पढ़े लिखे युवकों को भारत सहित खाड़ी के देशों के नौकरी के लिए जाने की आवश्यक्ता नहीं होगी।
गाने का शौक बचपन से
सावित्री जी ने अपने बारे में कहा कि उन्हें बचपन से गाने का शौक रहा है। यही कारण रहा कि प्राथमिक कक्षाओं से पुरस्कार इनामों इकराम खिताब तथा तमगे मिलने का जो सिलसिला प्रारंभ हुआ वह आज तक थमा नहीं है। तनहुँ, शुक्ल गंडकी में जन्मीं, लेकिन इन दिनों 32, पोखरा, राजा का चौतारा, कास्की नेपाल में रह रही सावित्री जी ने बताया कि लोकगायन की प्रेरणा उन्हें अपनी माँ श्रीमती विष्णु माया गिरी तथा पिता नारायण गिरी सहित गॉव देहात की बुजुर्ग महिलाओं से मिली जो कि ब्याह शादी सहित अन्य मांगलिक अवसरों पर ढ़ोलक, मंजीरे सहित अन्य वाद्यों के जरिए समां बांधा करती थी।
चर्चित एवं लोकप्रिय कृतियां
सावित्री जी ने गायन सहित अपनी अन्य कृतियों के बारे में बताया कि प्रकाशित तथा सर्वाधिक लोकप्रिय कृतियों में ग़ज़ल संग्रह ’मनको छाल’ शामिल किया जा सकता है। इसके अलावा गीत एल्बम लोकदोहोरीः भया जे हुनू , अलल्झिए नजर, मेलैमा दोहोरी खेलैमा, सेतै फूल्यो कॉस, मकै खायो घुनले, कौन्हा गीत चंचले मन, यात्री विमान दुर्घटना पर आधारित गंधर्व गीत, तीज गीत-सेती बाढ़ी, छाता ओझेल पारी, छम- छम नाचनी हो, भूकंप, चौबंदी चोली, काठमांडू जाड़ा, छन् छन् काँचको चुरा, हे दाजै, भाइरस निस्क्यो, माइत जाने बाटो, कौन्हा गीत, चंचले मन, गजल संग्रह-’चुम्ने रहर छ’ शामिल हैं।
आधुनिक साहित्य सृजन
यह पूछे जाने पर कि क्या आधुनिक साहित्य सृजन भी किया है? इस पर सावित्रीजी ने बताया कि क्यों नही! ‘शिशा होस या दिल घामले पोल्यो’ नामक कृति आधुनिक रचनाओं को समर्पित है। अपनी रचनात्मक विशेषताओं के बारे में इनका कहना था कि सरल शब्दावली का उपयोग करती हैं, ताकि आम जनता को आसानी से समझ में आ जाए। इनका कहना था कि नेपाली भाषा को हिंदी की सहोदर कहा जा सकता है।
अनेक सम्मान सहित अन्य उपलब्धियां
सम्मान तथा पुरस्कार के बारे में एक सवाल के जवाब में सावित्री जी का कहना था कि अभी तक के साहित्यिक जीवन में अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं। नवोदित साहित्य वाचनालय दोहा कतर व्दारा आयोजित कविता प्रतियोगिता में पुरस्कार मिल चुका है। हृरिषिराम रानभाट स्मृति सम्मान, हाम्रो मझेरी साहित्य सृजनशील नारी जागरण सम्मान आदि उल्लेखनीय हैं। इन्होंने बताया कि राष्ट्रीय लोकदोहारी प्रतिष्ठान नेपाल, अंतरराष्ट्रीय साहित्य समाज, पेरोल साहित्य प्रतिष्ठान काठमांड़ो, हाम्रो मझेरी साहित्य प्रतिष्ठान एवं पल्लव साहित्य प्रतिष्ठान चितवन, सप्तरंगी सांस्कृतिक परिवार, पोखरा, हरिदेवि कोइराला साहित्य तथा संगीत पुरस्कार कोष, साहित्य संगम नुवाकोट, कास्की आदर्श समाज दोहा कतर (यूएई) व्दारा पुरस्कृत किया जा चुका है।
साहित्य एवं कला की दुनिया में क्रांति
यह पूछा जाने पर कि नेपाल में कला तथा साहित्य की क्या स्थिति है? इस पर श्रीमती सावित्री ने बताया कि कला तथा साहित्य की दुनिया में आज नेपाल में क्रांति सी आई है। अनेक संघ संचालित हो रहे हैं और किताबों का प्रकाशन हो रहा है तथा वीडियो बन रहे हैैैं। इनका कहना था कि ’जरोटुप्पो संरक्षण’ नामक साहित्य संस्था की वह स्वयं कोषाध्यक्ष हैं। इसके अलावा विश्व नेपाली साहित्य महासंघ की सदस्य हैं। हरिदेवी कोइराला साहित्य संगीत प्रतिष्ठान और कास्की समाज अंतरराष्ट्रीय समन्वय परिषद’ की सह संयोजक हैं।