धर्म संस्कृति : अवसर को नहीं समझने वाला ज्ञानवान, बुद्धिवान नहीं बनता
⚫ आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा ने कहा
⚫ आग नही, नाग नहीं, वितराग बनो विषय पर प्रवचन
हरमुद्दा
रतलाम, 20 अगस्त। अवसर हर व्यक्ति के जीवन में आता हैं, लेकिन सब इसको समझ नहीं पाते और ये हाथ से निकल जाता है। अवसर के लिए दो दृष्टि, ज्ञान दृष्टि और क्रिया दृष्टि महत्वपूर्ण है। ज्ञान दृष्टि, अवसर का बोध कराती है और क्रिया दृष्टि निवारण करती है। मनुष्य जीवन में अपने दोषों को जानने, पहचानने और समझने अवसर मिला है। यदि इसे नहीं समझेंगे, तो ये हाथ से निकल जाएगा। जीवन में आग नहीं, नाग नहीं, अपितु वितराग बनने का लक्ष्य होना चाहिए।
यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। श्री हुक्मगच्छीय साधुमार्गी शान्त-क्रांति संघ के तत्वावधान में पर्यूषण महापर्व के सातवे दिन प्रवचन में उन्होने कहा कि डाक्टर भी जब तक किसी बिमारी का निदान नहीं हो, तो इलाज नहीं करते, वैसे ही जब तक मनुष्य को दोषों को ज्ञान नहीं होता, तब तक उनसे मुक्त नहीं होता। मनुष्य जन्म के रूप में जो अवसर प्राप्त हुआ है, उसे अहम की आग और आवेश के नाग के हवाले नहीं करके वैराग्य में देना चाहिए। वैराग्य में जीने वाला ही वितराग बनता है।
विवेक से पैदा होता है वैराग्य
आचार्यश्री ने कहा कि वैराग्य किसी की वय नहीं देखता। ये तो विवेक से पैदा होता है। 10 से 20 वर्ष में दीक्षा प्लेटिनम, 20 से 30 की दीक्षा गोल्डन, 30 से 40 की दीक्षा सिल्वर होती है। इसके बाद की दीक्षा आयरन है। उन्होंने कहा कि इस अवसर को जो नहीं समझता, वह जीवन में कभी कुछ प्राप्त नहीं कर पाता है।
कभी भी नहीं चूके आशीर्वाद लेने का अवसर
उपाध्याय प्रवर श्री जितेश मुनिजी मसा ने इस मौके पर आचारण सूत्र का वाचन करते हुए आशीर्वाद का महत्व बताया। उन्होंने कहा कि हदय निकले आशीष और हाय कभी खाली नहीं जाते। इसलिए जिदंगी में जब भी मौका मिले, तब बुजुर्गों के आशीर्वाद लेने का अवसर नहीं चूकना चाहिए। आशीष, कलयुग का कल्पतरू है और ये हर युग में रहता है। संसार में मंत्र फेल हो सकते है, तंत्र फैल हो सकते है, दवाएं फैल हो सकती है, पुरूषार्थ भी फैल हो सकता है, लेकिन दुआएं कभी फैल नहीं होती है। जीवन में दुआओं की दौलत सदैव प्राप्त करने का प्रयास करो। इससे हर व्यक्ति अपने जीवन को धन्य बना सकता है।
प्रारंभ में हुआ आगम वाचन और स्तवन
आरंभ में विद्वान संत श्री रत्नेशमुनिजी मसा ने आगम का वाचन किया। श्रद्धेय धेर्यमुनिजी मसा ने भाव व्यक्त किए तथा श्रद्धेय युगप्रभजी मसा ने स्तवन प्रस्तुत किया। इस दौरान सैकडों श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे।