धर्म संस्कृति : गुरु के सान्निध्य में त्याग, वैराग्य के फूल नहीं खिले, तो जीवन व्यर्थ
⚫ उपाध्याय प्रवर श्री जितेशमुनि जी मसा ने कहा
हरमुदा
रतलाम,13 सितंबर। दुनिया में भोग-उपभोग के जितने भी साधन है, उन पर जगत के सभी जीवों का अधिकार है। हमारा अकेले का अधिकार नहीं है, इसलिए अतिक्रमण नहीं करो। जीवन में कम से कम वस्तुओं का उपयोग करों। अपने भोग की प्रवृत्ति को कम करो और आवश्यकताओं को घटाओ। इससे पैसा बचेगा और पुण्य भी मिलेगा। इससे व्यक्ति कभी दरिद्र नहीं बनेगा।
यह बात उपाध्याय प्रवर श्री जितेशमुनिजी मसा ने कही। छोटू भाई की बगीची में परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा की निश्रा में प्रवचन देते हुए उन्होंने कहा कि महापुरूषों का जीवन संतोष से जीवन जीने का संदेश देता है। इसका अनुसरण सबकांे करना चाहिए। संयम और त्याग से भी जीवन चलता है। भाग्योदय से गुरू का सानिध्य मिला है, इसमें यदि त्याग, वैराग्य के फूल नहीं खिले, तो जीवन व्यर्थ है।
उन्होंने कहा कि त्याग और पुण्य का आदर करने से वह शक्ति जागृत होती है, तो महामोह के बंधन से मुक्त कर सकती है। नदी का अस्तित्व किनारे से होता है, तो मनुष्य का अस्तित्व मर्यादा से बना रहता है। विडंबना है कि आज विज्ञापन का युग है और लोग विज्ञापन देखकर वस्तुओं के उपयोग की मिथ्या मान्यताएं पकड रहे है। वे अपनी मर्यादाओं को तोडकर स्वछंद जीवन जीने में अधिक विश्वास कर रहे है। जबकि मजे की जिदंगी का संबंध वस्तुओं के साथ नहीं होता, अपितु त्याग और संयम से है।
श्रावक-श्राविकाओं ने लिए तपस्या के प्रत्याख्यान
उपाध्यायश्री ने कहा कि वस्तुओं के जितने भोगी बनेंगे, उतना हमारा मिथ्यात्म बढेगा। इनका अंतिम परिणाम पुण्य और धर्म के क्षेत्र में हमे दरिद्र बना देगा। पुण्य नहीं रहेगा, तो आत्मा को दारूण दुख प्राप्त करेगी। इसलिए संयम, त्याग का जीवन जीने का संकल्प ले। इससे पर्यूषण पर्व मनाना सार्थक होगा। इस मौके पर आचायश्री ने महामांगलिक श्रवण कराई। श्री विशालमुनिजी मसा ने अंतगढ सूत्र का वाचन किया। कई श्रावक-श्राविकाओं ने तपस्या के प्रत्याख्यान ग्रहण किए।