साहित्य सरोकार : दो अँगुल का रिश्ता
⚫”बड़े लोगों की बात निराली, सफेद कपड़े, करतूत काली, हम अच्छे, बात दिलवाली, फिर भी देते हमको गाली। “लुंगी डांस, लुंगी डांस, लुंगी…. पास ही कहीं शादी में ये गीत ज़ोर से बज उठा था। वो दोनों भिखारी नाच उठे थे। ⚫
⚫ इन्दु सिन्हा “इन्दु”
क्यों रे, आज अपना हीरो कहाँ है? कहीं दिख नहीं रहा है,इतनी देर तो कभी नही करता| बाबा ने भूरी से कहा।
“बाबा वो सलमान भाई दरगाह पर गये होंगे, वहाँ भण्डारा था शायद सभी के लिए खाने को कुछ लेने गये हैं?”भूरी, जो बारह-तेरह वर्ष की बच्ची थी, अपना शरीर फटे कंबल से ढकते हुए बोली।
“अरे, तू वहाँ क्या कर रही है, इधर आ जा आग के पास, ठण्ड ज़्यादा है।” बाबा ने दुलार से बुलाया तो भूरी अपने अपाहिज शरीर को घसीटते हुए आग के पास आकर जाकर बैठ गयी। जहाँ पहले से ही दस बाहर लोग आग के चारों तरफ बैठकर कड़कती ठण्ड में सर्दी भगाने का असफल प्रयास कर रहे थे। पिछले कई दिनों से सूरज के दर्शन दुर्लभ थे। शीत लहर के चपेटे में पूरा मध्यप्रदेश जकड़ा था।उस लगातार दो दिन से रुक-रुककर हुई मावठे की बारिश ने लोगों के लिये मजबूर कर दिया था।
घर था तो लोग घर में ठंड से दुबके थे पर जिनका घर ना हो? पुल के नीचे आग के पास जमा लोगों के पास घर नहीं था।पुल के नीचे की जगह ही उनका घर था, जहाँ का मुखिया बाबा थे, जो दोनों पैरों से अपाहिज थे। घुटनों के नीचे से उनके दोनों पैर नहीं थे।पुल के नीचे जमा भिखारी उनका परिवार थे।
” अपना हीरो आ गया अपना हीरो आ गया।” एक कोढ़ी ने खुशी के मारे थिरकना शुरू किया।
सभी की नज़रें पुल के नीचे आ रहे युवक पर जो बैसाखी पर चलता हुआ बाबा के नजदीक पहुँच चुका था।सूरत से सलमान लंबा था, तगड़ा भी था पर एक हाथ और एक पैर से अपाहिज था। एक बड़े थैले को बाबा के सामने रखता हुआ बोला, “बाबा,भण्डारे का प्रसाद। “
“हाँ रे!” बाबा की आवाज़ से प्रेम झलका,बैठ जा आराम से। सलमान बाबा के नजदीक बैठ गया।
“मुरकी, खिला सभी को खाना।” बाबा ने आदेश दिया।
मुरकी एक बूढ़ी भिखारिन थी जिसके बुढ़े शरीर में ताकत अब कम ही बची थी,पर थोड़ा बहुत तो काम करती रहती थी।मुरकी ने थैला खोला, ढेर सारी पूड़ियां आलू मटर की सब्जी, नुक्ती थी।
सभी भिखारियों ने अपने बर्तन आगे रख दिये थे। मुरकी ने बड़े प्रेम से सभी के बर्तनों में खाना रखना शुरू किया और वहाँ त्यौहार सा माहौल हो गया। कालू अरे कालू…. ” बाबा की आवाज गूंजी तभी एक काला कुत्ता न जाने कहाँ से दौड़ता हुआ आया।
“ले भई, तू भूखा क्यों सोये,तू भी खा। कहते हुए बाबा ने एक पूड़ी उसके मुँह में दी। कुत्ते ने पूड़ी ली और दूर कोने में जाकर बैठ गया। सब्जी कितनी अच्छी है सलमान भैया । भूरी ने कहा।
“हाँ रे, कोई बनिया सेठ था, जिसने आज भण्डारा रखा था। सलमान बोला। फिर वो पास ही नल से सबके लिये पानी लेने चला गया। पानी पीकर बाबा ने दोनों हाथ जोड़ लिये। आँखें बंद कर ध्यान मग्न हो ईश्वर को आज के खाने के शुक्रिया अदा किया। तब तक सलमान भी अपने को कंबल में लपेट कर अलाव के पास जम चुका था।
“भैया, आज की खबर!” भूरी ने खुशी से किलकते हुए कहा। भरपेट खाने की खुशी उसके चेहरे से छलकी पड़ रही थी। तब तक मुरकी ने कुछ लकड़ियाँ अलाव में झोंक दी थीं,जिससे आग तेज हो उठी थी।पुल के बाबा के परिवार ने अपने-अपने पास बड़े-बड़े बोरे, फटी चादरें, उधड़ी फटी रजाई जमा कर बिस्तरों की व्यवस्था कर ली थी।
अरे! आज टुण्डा कहाँ है?” बाबा ने टुण्डे को नहीं देखा तो बोला । “बाबा, वहीं सो गया होगा। अक्सर ही गायत्री टॅकीज के पास खड़ा होकर भीख माँगता है फिर बड़े पोस्ट ऑफिस के पास बनी झोपड़ी के नज़दीक जाकर सो जाता है। झोपड़ी में रहने वाला परिवार भी उसे खाने को दे देता है।” सलमान बोला।
“चलो चिंता की बात नहीं।” बाबा निश्चित हो गये।
अच्छा बाबा,झोपड़ी में रहने वाले तो आदिवासी परिवार की छोरी के साथ भी टुण्डा मिलता है। सुना है इस भगोरिया में वो छोरी ब्याह करेगी। किससे?” बाबा ने पूछ लिया।
टुण्डे के साथ। भूरी ने ज्ञान बताया।
चलो ये बात तो अच्छी है।बाबा ने कहा।
” आज की खबर ।” एक अंधे भिखारी की आवाज़ आयी जो बड़ी देर से चुप बैठा था। “हाँ रे सलमान, बोल तो आज क्या है नया?” बाबा ने बात खत्म बीड़ी सुलगा ली थी।
सलमान ने अपने पास से अखबार निकाला और पढ़ा- “केंद्रीय मंत्री शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर की संदिग्ध परिस्थिति में मौत।” पूरी खबर को आराम से पढ़कर सभी को सुनाया सलमान ने।
बाबा ने अचानक हँसना शुरू किया। सब चकित थे बाबा को क्या हो गया? बड़ी देर तक हँसने के बाद बाबा की हँसी रुकी। सलमान से रहा नहीं गया, बोला- बाबा क्या हुआ? आपको इतनी हँसी क्यों आयी ?
“बेटा, मैं इन बड़े-बड़े लोगों के काले-काले कारनामों पर हँस रहा हूँ। बाबा ने जिज्ञासा दूर की।
” मतलब!” अबकी अंधे भिखारी की आवाज़ उभरी।
मतलब ये कि 2010 में दोनों ने तीसरी बार शादी की|
बच्चों का सुख था दो-दो खसम छोड़े,मर जाता तो बात समझी जाये पर जिंदा छोड़े, तलाक लिया काहे को ? क्या मज़े के लिये? बाबा बोले। सब हँसने लगे।
नहीं, मजा तो ले सकती थी करोड़ों थे। घूमती फिरती बच्चों का भविष्य देखती और मस्त रहती। शादी की कौने जरूरत?” बाबा ने बताया।
सलमान के समझ में कुछ-कुछ आने लगा था।
अंधी दौड़ ले डूबी ससुरी को, बूढ़ी मुरकी ने समझाया।
पर बाबा, वो पाकिस्तानी पत्रकार की वजह से। सलमान ने बताया। अरे मूढ़, फिर काहे की पढ़ाई और कहाँ की आधुनिकता ?
बाबा ने फिर हँसी उड़ाई।
अरे, शशि थरूर सो रहा है, तो सोता रहे,उस पाकिस्तानी के साथ तुझे क्या? मतलब सुनंदा को क्या? तीन तीन खसम छोड़े, तो शशि कौनो धुला होगा।तू मस्त रह अपने हाल में तू भी सोती रह किसी ना किसी के साथ,शशि कौनो देख रहा अब क्या कोई जबरदस्ती होवे देह के दो अंगुल शरीर की काहे की पवित्रता देखनी ?सलमान बोला,सही बाबा…. बिलकुल सही।”
“अनाप-शनाप पैसा, पढ़ाई लिखाई करती। इतनी तब भी दिमाग गंदा का गंदा तो काहे की पढ़ाई ? कपड़ा महंगा डाला, काले पीले चश्मे पहने, बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ क्या आधुनिक बनाये? नहीं, ससुरी को शशि थरूर से ब्याह की जरूरत ही ना थी।सोने का सुख उसके इशारों में था जिसे बोलती देह ठंडी कर देता, मुँह भी बंद रखता।” बाबा तीसरी बीड़ी सुलगाने लगे थे।
” इन बड़े लोगों के दिल दिमाग बड़े नहीं हैं।” मुरकी बोली । “खूबसूरत थी। मुरकी ने अखबार पर नज़र डाली।
अब काहे की सुन्दरता! माटी की थी,माटी में मिल गयी, ना ब्याह करती ना बेमौत मरती।मुरकी फिर बोली|मूरख और नहीं तो क्या?
बाबा बुझी बीड़ी को बुझते ठूंठ से जलाने की कोशिश में लगे थे।
तभी उनकी नज़र सलमान पर गयी…. सलमान की आँखों में आँसू थे।
“बेटा, क्या हुआ रे?” बाबा ने पूछा ,
कुछ नहीं बाबा ” कहते हुए सलमान ने आँखें पोंछ लीं।
“बेटा,मुझसे क्या छिपाना ? जानता हूँ तेरे दुःख को भी। भूरी के दुःख को भी| बाबा ने मुरकी की गोद में सोयी हुई भूरी के सिर पर हाथ फेरा।सलमान के पिता और चाचा में जायदाद को लेकर खूनी लड़ाई हुई थी|जिसमें चाचा ने उसके पिता-माता एवं एक भाई की हत्या कर दी थी, पर वो घायल था जिसे मरा जान लिया गया था। सड़कों पर भीख माँगने वाले बाबा की नज़र पड़ी तो उसे लेकर सरकारी अस्पताल चले गये जहाँ उसका एक पैर और हाथ बेकार हो गया था।उस समय तो वह महज बारह वर्ष का था। कक्षा सात तक उसकी पढ़ाई थी। हिन्दी अच्छी पढ़ता था। आज 22-23 वर्ष का युवक था। गाड़ियों की साफ-सफाई कर लेता था। गला सुरीला था। भीख अच्छी मिल जाती थी। एक दो दिन पुराने अखबार रद्दी में से ले लेता था जिससे भिखारियों का मनोरंजन भी हो जाता था।उनमें छपी कहानियाँ भी पढ़ देता था। अब ये ही उसका परिवार था।
मुरकी को किसी सड़क के किनारे कचरा बीनते वक्त मिली थी जिसका नीचे का हिस्सा जानवरों ने खा लिया था। उस समय भूरी सात साठ साल की थी। तब से मुरकी ही देखभाल कर रही है। अब भूरी का भी यही परिवार था।
अंधा भिखारी बोला- “भूरी के बाप-माँ को देखो, लड़की पैदा होने का दुःख था। छोड़ गये कूड़े के ढेर में बिना दया ममता के कहा जाता है कि माता कुमाता नहीं होती पर मेरा मानना है माता कुमाता होती है,डायन भी हो सकती है । “
“कौनो कोई रिश्ते का भरोसा नहीं है। रिश्ते चले तो दिल से चले नहीं तो खून के रिश्ते भी धोखा दे जाये।”मुरकी ने फटी गुदड़ी को ओढ़ते हुए कहा।
” प्रेम है…. कहीं ना कहीं है। सच है,तभी तो ये धरती टिकी है।” बाबा ने कहा।
” सच बोलते हो बाबा।” मुरकी बोली ।
कुछ भिखारी सो चुके थे, बाकी जाग रहे थे। दो भिखारी जोर से बोले – “बाबा, सुनो।” बाबा बोले- ” अब क्या खबर है?”
दोनों ने ज़ोर से नारा सा लगाया।
” बड़े लोगों की बात निराली,
सफेद कपड़े, करतूत काली
हम अच्छे, बात दिलवाली,
फिर भी देते हमको गाली । “
बोल….. लुंगी डांस, लुंगी डांस, लुंगी…. पास ही कहीं शादी में ये गीत ज़ोर से बज उठा था। वो दोनों भिखारी नाच उठे।