साहित्य सरोकार : निवेदिता सिन्हा की रचना “दीपों का त्योहार” और रेणु अग्रवाल की रचना “उनके नाम के दीये”

निवेदिता सिन्हा

आया दीपों का त्योहार।
मिलें सभी को खुशियाँ अपार।
घर- घर रोशन हो खुशियों के दीयें।
जिसकी रोशनी में सभी के जीवन का अंधकार मिटें।
मनाएँ हम सब ऐसी दीपावली।

जहाँ खुशियों से भरी हो सबकी झोली।
आज ही लौट कर अयोध्या आयें थे,
लक्ष्मण, सिया संग राम।
असत्य पर हुई थी सत्य की विजय।
खुशियों की सौगात लिए तभी से,
आज तक घर-घर मनती ये दीपावली।


आज होती लक्ष्मी संग गणेश,  कुबेर की पूजा।
गृहिणी रहती काम में व्यस्थ।
बच्चें रहते  पटाखें संग  अपने धुन मे मस्त।
परिवार संग आस-पड़ोस भी मनाते मिलकर ये त्योहार।
करें संकल्प हम सब इस बार,

मनायें सभी प्रदुषण रहित बिन पटाखों के ये त्योहार।
दीये से रोशन करे घर संग आस-पड़ोस।
रंगोली से घर सँजा, फुड़झडियों संग मनाएँ  ,
जगमग – जगमग दीपों का ये पावन त्योहार।

निवेदिता सिन्हा
भागलपुर, बिहार

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उनके नाम के दीये


रेणु अग्रवाल

इस दीवाली एक दीया उस
कुम्हार के नाम जिसका
रोजगार विलुप्त होने को है
दीये, लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियाँ
मिट्टी के खिलौने से दुकान सजाता है

इस दीवाली एक दीया
उन औरतों के नाम जो
रसोई के साथ रूई की बाती
बनाकर दो निवाला जुटाती हैं।

इस दीवाली एक दीया
उन महकते हाथों के नाम
जो गंदी बस्तियों में रहकर
धूप इत्र और अगरबत्ती बनाते हैं

इस दीवाली एक दीया
उस माली के नाम जो गेंदा
चंपा गुलाब चमेली के साथ
आम के पत्तों का तोरन बनाते हैं

इस दीवाली एक दीया
रंगोली बेचने वालों के नाम
जिनकी रंगोली कई आंगन में
इंद्रधनुषी रंग सजाते हैं

इस दीवाली एक दीया
उस हलवाई के नाम जो
खील, बताशे,चीनी के खिलौने
बनाकर जीवन में मिठास भरते हैं

इस दीवाली एक दीया
उन मोमबत्तियों के नाम
जो आज भी दीवाली के बाजार
की शान हुआ करते हैं

इस दीवाली एक दीया
बचपन की यादों के नाम
जिनमें अम्मा आंगन में
आटे हल्दी से चौक पूर कर
लक्ष्मी गणेश की पूजा करती थी
पूजा के बाद एक दीया चौराहे पर
एक दीया कुँए की जगत पर और
एक बूढ़े नीम के नीचे रखना जरूरी था

एक दीया आत्मा के उजास के लिए और
एक उन घरों जो जगमग रोशनी के बावजूद
अंधेरे में डूबे हुए हैं
एक दीया सभी को मिले दो वक्त की रोटी
इस कामना के साथ रखना जरूरी था।

रेणु अग्रवाल

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