खरी खरी : “कर्नाटक” का ना हो जाए “नाटक”, अति आत्मविश्वास ही देता है दगा, कोई नहीं रहता सगा
हेमंत भट्ट
चुनाव तो चुनाव है, चुनाव की बातें होती है कुछ खट्टी कुछ मीठी। कुछ खरी-खरी भी। आम लोगों में तो अब यही चर्चा चल रही है कि इस चुनाव में कर्नाटक का नाटक रिपीट ना हो जाए। कर्नाटक में ही अति आत्मविश्वास ही दुख दे गया था और मध्य प्रदेश का भी आलम यही है। हालांकि विपक्षी ने तो कुछ जगह थाली सजा कर दे दी है लेकिन उस थाली में समस्याओं के छेद हैं। मतदाता ही जानता है की सजी हुई थाली में से कौन से व्यंजन निकल जाएंगे और व्यंजन निकालने वाले कोई और नहीं अपने ही सगे होंगे जो कि दगा दे जाएंगे।
आम लोगों की तो मध्य प्रदेश चुनाव को लेकर अब यही धारणा बन गई है कि भाजपा ने तो राम नाम पर लूट मचा रखी है। भ्रष्टाचार को ही संस्कार मान लिया है। हर कोई परेशान है। किसी की कोई सुनने को तैयार नहीं है। चाहे विधायक हो, पार्षद हो, महापौर हो, अधिकारी हो सब के सबने अपना जमीर गिरवी रख दिया है।
मतदाता कभी नहीं होंगे लाचार और असहाय
फिर से विधायक बनने की चाह रखने वाले अब तो आम मतदाता को असहाय और लाचार समझना शुरू कर दिए हैं लेकिन मतदाता कभी लाचार नहीं है और ना कभी होंगे। लाचार तो पूरी सरकार है जो की दो दशक में भी मतदाताओं का दिल जीत नहीं पाई ? क्योंकि जो दौड़ भाग इस चुनाव में करना पड़ रही है। भाजपा के उम्मीदवारों को वह किसी चुनाव में नहीं करना पड़ी है। इतना ही नहीं मक्कार जनप्रतिनिधियों की वकालत के लिए देश के शीर्ष नेताओं को अपनी जान झोंकना पड़ रही है। फिर क्या है ? काहे के प्रतिनिधि। काहे के जनता के हम दर्द।
जमीर और ईमान खो चुके भ्रष्ट नेताओं ने मतदाताओं की चुनी सरकार को कर दिया नाकाम
मतदाताओं में तो यही चर्चा है कि चाहे सरकारी कर्मचारी हो या फिर प्राइवेट जाब करने वाले, या व्यापारी सबके सब भाजपा सरकार से अंदर ही अंदर खफा नजर तो आ रहे हैं। क्योंकि सामान्य मध्यम वर्ग के लोग ही हैं जो जो सालों से पीसते चले आ रहे हैं। हालांकि मतदाताओं ने तो गत विधानसभा चुनाव में भी मजा चखा दिया था लेकिन अपना जमीर को चुके, ईमान खो चुके भ्रष्ट नेताओं के चलते खरीदार धन बल पर सफल हो गए। मतदाताओं द्वारा चुनी गई सरकार को नाकाम करने के षड्यंत्र में तीर मार गए लेकिन अब वह मुगालते दूर होने वाले हैं। ऐसी मतदाताओं की सोच है।
ना उनमें हौसला है और हिम्मत
मतदाताओं का मानना है कि परिवर्तन की बयार वास्तव में जरूरी है। लोगों का कहना है कि कर्नाटक का नाटक तो होगा ही क्योंकि जब कमजोरी नजर आती है तो ही ज्यादा ताकत झोंकना पड़ती है और यह तो नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद से ही सिलसिला शुरू हो चुका है क्योंकि जन प्रतिनिधि बनने की चाहत रखने वालों में तो इतनी हिम्मत और हौसला बचा नहीं है कि वह अपने बल पर, अपने दम पर अपने कार्य कर अपनी शैली पर चुनाव को जीत पाए। इसीलिए तो मंगलवार को प्रदेश के 30 स्थानों पर देश के शीर्ष नेता जनसभा को संबोधित करेंगे। इतना ही नहीं शीर्ष नेताओं ने तो 6 महीने पहले से ही दंड बैठक लगना शुरू कर दी थी। यही हाल कर्नाटक में भी हुआ था।
सालों से नहीं कर पाए मतदाताओं को संतुष्ट
देश के शीर्ष नेताओं को मैदान संभालना पड़ रहा है, तो इसका मतलब साफ है कि उनमें नेता बनने के गुण नहीं है एक मैनेजर हो सकते हैं। यह तो बहुत ही हास्यास्पद बात है। बात सही भी है कौन सा मुंह लेकर मतदाताओं के पास जाएंगे? क्योंकि सबसे बड़ी वजह तो यही है कि अपने मतदाताओं को सालों से संतुष्ट नहीं कर पाए। याने कि उनकी समस्याओं का समाधान नहीं कर पाए। जात-पात के चक्कर में अपने वालों को रेवड़िया बाटते रहे और लोगों की समस्याओं को बढ़ाते रहे। ऐसे उम्मीदवारों को चुनाव जीतना सहज नहीं लग रहा। वह अपने आप को कमजोर महसूस करने लग गए। इसीलिए तो वह शीर्ष नेताओं की शरण में चले गए ताकि उनके तारणहारों के चरण कमल पड़े और इनका उद्धार हो जाए, मगर यह काम ही आसान नहीं है।
वे तो दिखा रही है ठेंगा पर यह मान रहे हैं बेस्ट ऑफ लक
6 महीने पहले से ही सरकार लाडली बहनों का झुनझुना बजा रही है उनको अपना मान रही है। रुपयों की रिश्वत देकर वोटो को अपना जान रही है। पूरे प्रदेश के उम्मीदवार इसी उम्मीद में है की लाड़ली बहने तो बेड़ा पार करेगी ही मगर बहने तो केवल वीरा के गीत ही गाएगी, माल तो वह माटी का ही खाएगी, यानी कि उसकी सुख सुविधा, वैभव, समृद्धि उसके घर पर ही मिलेगी, वीरा के घर से नहीं। भावना तो लाडली बहनों की यही नजर आ रही है कि वे भ्रष्ट नेताओं की तरह चंद रुपयों की खातिर पर अपना ईमान नहीं बचेगी। दे रहे हैं तो वह मना नहीं करेगी लेकिन लक्ष्मी स्वरूप बहनों का तो यही मानना है कि भ्रष्टाचारी सरकार हमें भी रिश्वत देकर खरीदना चाहती है लेकिन हम बिकाऊ नहीं है। देखा जाए तो बहने ठेंगा ही दिख रही है लेकिन अंग्रेजी पढ़े लिखे लोग उसे बेस्ट ऑफ लक मान रहे हैं।
नगरी निकाय चुनाव में दिखाया था ट्रेलर
मतदाताओं ने नगरीय निकाय चुनाव में ही ट्रेलर दिखाया है कि मतदाता क्या कर सकते हैं। भले ही जिम्मेदार मैनेज कर गए। अपनी सरकार का नाजायज फायदा उठाकर अधिकारियों को दबा गए।
और किसका फूलेगा सीना
अभी भी चुनाव के मैनेजर येन केन प्रकारेण मैनेज करने में लगे हुए हैं लेकिन मतदाता तो डैमेज करेंगे ही, यह तय है। अब किसका सीना फूलता है और किसका दम निकलता है। अभी तो मतदान भी बाकी है।