शख्सियत : पेड़ पौधों के बिना मानव जीवन की परिकल्पना नहीं

पर्यावरणविद् सरोज शर्मा का मानना

⚫ एक पेड़ अपने पचास साल के जीवन में 2 लाख डॉलर यानि 5 करोड़ रुपए( 1979 की दर) की सेवाएं देता है। पेड़ों की कटाई के कारण ही बाढ़ के खतरे का सामना करना पड़ता है, लेकिन खेद की बात है कि टू लेन से फोर लेन सड़कों के निर्माण और नई कॉलोनियां विकसित करने की वजह से लाखों वृक्ष काट दिए जाते हैं। एक पौधे को वृक्ष का रूप लेने में कम से कम तीन चार साल लगते हैं। शहरीकरण की दौड़ की कीमत वृक्षों को चुकाना पड़ रही है।⚫

नरेंद्र गौड़

’पर्यावरण वह है जो प्रत्येक जीव के साथ जुड़ा हुआ है, हमारे चारों तरफ वह हमेशा व्याप्त है। यह हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले सभी जैविक और अजैविक तत्वों, तथा प्रक्रियाओं और घटनाओं के समुच्चय से निर्मित इकाई है। लेकिन यह भी सच्चाई है कि वर्तमान समय में जल, जंगल और हवा का पर्यावरण लगातार बिगड़ रहा है, यदि समय रहते इस विनाश को नहीं रोका गया तो मानव का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। वृक्षों के बिना मानव जीवन की परिकल्पना नहीं की जा सकती है।’


पर्यावरण विनाश के बुरे नतीजे

यह बात जानी मानी पर्यावरणविद् श्रीमती सरोज शर्मा ने चर्चा में कही। इनका मानना है कि पर्यावरण विनाश के अनेक बुरे नतीजे सामने आने लगे हैं। जोशीमठ और उसके आसपास के परिक्षेत्र के मकानों में आई दरारें पर्यावरण विनाश का नतीजा नही ंतो फिर क्या है ? असल में देखा जाए तो समूचा उत्तराखंड मानव बस्ती के लिए उपयुक्त है ही नहीं! यह इलाका देवभूमि है, जहां बद्रीनाथ, केदारधाम जैसे अनेक मंदिर इसलिए बनाए हैं, ताकि लोग वहां पूजापाठ के जरिए शांति का अनुभव कर वापस लौट जाएं। वह क्षेत्र मकान बनाकर रहने के लिए नहीं है।

विद्यार्थियों में पौधारोपण अभियान

श्रीमती सरोज शर्मा का जन्म हरियाणा के बबियाल नामक गांव में डॉ. मुरारीलाल गौतम तथा श्रीमती कौशल्या देवी के घर हुआ। पोस्ट ग्रेज्युएट करने के बाद आप एक शिक्षण संस्था में प्रधानाध्यापक नियुक्त हो र्गइं। उस दौरान आपने अपने विद्यार्थियों को पौधारोपण की तरफ प्रेरित किया। शाला परिसर में भी विभिन्न प्रजाति के पौधे रोपे गए जो इन दिनों विशाल वृक्ष बन चुके हैं। आपको हरियाणा कवि कॉर्नर से समाज सेविका के रूप में साक्षात्कार देने का भी अवसर मिल चुका है। ’टू मीडिया’ में हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में आप मुख्य अतिथि थी, जहां आपने पर्यावरण विनाश रोकने संबंधी अविस्मरणीय उद्बोधन दिया था। इन दिनों सरोज जी फेसबुक के माध्यम से युवाओं में पर्यावरण जागरूकता एवं समाजसेवा संबंधी अभियान चला रही हैं, इसका नतीजा यह रहा कि यह अभियान आज जनजागृति का रूप ले चुका है। सरोज जी नेमीशरण में जन जागृति गुरूकुल का संचालन भी कर रही हैं। यहां उल्लेखनीय है कि इनके पति डॉ. के.के. शर्मा अपने क्षेत्र में मशहूर होम्योपैथी चिकित्सक हैं। जिनके माध्यम से सरोज जी साधू सन्यासियों सहित अन्य जरूरतमंदों को निःशुल्क होम्योपैथी औषधि का वितरण  करती हैं।

धार्मिक प्रवचन उद्बोधन

श्रीमती सरोज पर्यावरण के अलावा धार्मिक प्रवचन उद्बोधन के कार्यों में भी प्रणप्राण से जुटी रहती हैं। इनका कहना है कि हमारे देश के ऋषि मुनियों ने सदियों पहले वृक्षों के महत्व को जान लिया था और यही कारण है कि पीपल, वटवृक्ष, आम, आंवला तथा तुलसी के पौधे में देवी देवताओं की परिकल्पना की गई, ताकि इनके विनाश का साहस कोई नहीं कर सके। गाय के गोबर से पेड़ पौधों के जीवन के लिए अनिवार्य खाद बनती है, इसलिए गाय में भी देवताओं के वास की परिकल्पना की गई है। सदियों पहले हमारे धर्मशास्त्रों में पेड़ पौधों में प्राण होने की बात कही जा चुकी है। तभी तो शाम के समय पेड़ पौधों की डाल, पत्ती तोड़ना मना है। कहा गया कि यह समय उनके निंद्रामग्न होने का है। आगे चलकर डॉ. जगदीशचंद्र बसु ने इसे सिध्द भी किया कि पेड़ में भी प्राण होते हैं और वे भी कुल्हाड़ी लिए आते व्यक्ति को देखकर सिहर जाते हैं तथा पानी से भरा पात्र लिए किसी को आता देख हर्ष व्यक्त करते हैं। आधुनिक विज्ञान भी आज यह मानता है कि पेड़ सजीव होते हैं।

उत्तराखंड चिपको आंदोलन

एक सवाल के जवाब में सरोज जी ने कहा कि उत्तराखंड की महिलाओं ने 1970 के दशक में चिपको आंदोलन चलाकर अनेक वृक्षों को कटने से बचाया था। महिलाएं पेड़ को काटा जाते देख उसके तने से चिपक जाती थीं। निश्चय ही ऐसी महिलाओं का पर्यावरण की रोकथाम की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान है। सरोज जी ने कहा कि पेड़ कार्बनडाई ऑक्साइड का अवशोषण कर बदले में हमें प्राणवायु अर्थात ऑक्सीजन का उत्सर्जन करते हैं। पेड़ पौधों से अनेक प्रकार की औषधि निर्मित की जाती हैं। हमारे दैनिक भोजन में साग सब्जी से लेकर हम जो अन्न ग्रहण करते हैं वह भी पेड़ पौधों से मिलता है। यह सभी जानते हैं कि वृक्षों की जड़ें भूमि का कटाव रोकती हैं और यही कारण है कि नदियों सहित अन्य जलाशयों के किनारे वृक्ष लगाए जाते हैं। पेड़ों से फल प्राप्त होते हैं। इनसे लकड़ी मिलती है, यह हमारा वातावरण साफ रखते हैं और इनसे छॉया भी मिलती है। पेड़ किसी भी इलाके का तापमान एक से 5 डिग्री तक कम कर सकते हैं। सालभर में एक पेड़ 22 कि.ग्राम तक कार्बन-डाइऑक्साइड सोख लेता है। एक पेड़ की मदद से सालाना 3500 लीटर पानी बरस सकता है। प्रत्येक पेड़ करीब 3700 लीटर पानी रोककर जमीन के भीतर पहुंचाता है।

पचास साल में 5 करोड़

श्रीमती सरोज ने बताया कि 1979 में कलकत्ता यूनिवर्सिटी के प्रो. डॉ. तारक मोहन दास ने एक अध्ययन के बाद कहा था कि एक पेड़ अपने पचास साल के जीवन में 2 लाख डॉलर यानि 5 करोड़ रुपए( 1979 की दर) की सेवाएं देता है। पेड़ों की कटाई के कारण ही बाढ़ के खतरे का सामना करना पड़ता है, लेकिन खेद की बात है कि टू लेन से फोर लेन सड़कों के निर्माण और नई कॉलोनियां विकसित करने की वजह से लाखों वृक्ष काट दिए जाते हैं। एक पौधे को वृक्ष का रूप लेने में कम से कम तीन चार साल लगते हैं। शहरीकरण की दौड़ की कीमत वृक्षों को चुकाना पड़ रही है।

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