शख्सियत : फेसबुकिया साहित्यकारों से भरी पड़ी इंटरनेट की दुनिया
⚫ रचनाकार डॉ. दलजीत कौर का मानना
⚫ हमारे देश का युवा वर्ग पश्चिमी दुनिया की कामयाबी और प्रसिध्दि के मिथक की गिरफ्त में है। उच्च मध्यम वर्ग के किशोर और नौजवान अपने देश की भूखी जनता की भीड़ से बचकर योरप और अमेरिका जाने की कोशिश में हैं। अनगिनत लोग आत्मा गिरवी रख कॉर्पोरेट की नौकरी बजा रहे हैं। कविता, कहानी सहित साहित्य की अन्य विधाएं तकनीक में बदल रही हैं। फेसबुक चलाने वाला हर दूसरा तीसरा व्यक्ति आज साहित्यकार होने का दम भर रहा है। ⚫
⚫ नरेंद्र गौड़
’हम एक अप्रत्याशित और गंभीर संकट के दौर में हैं। हमारा देश आज जिस आर्थिक गैर बराबरी के दौर से गुजर रहा है, वह आजादी के पूर्व ब्रिटिश राज के समय से नहीं देखा गया। सत्तर प्रतिशत राष्ट्रीय संपत्ति केवल दस प्रतिशत लोगों के कब्जे में है। देश के बहुसंख्यक लोग आर्थिक बदहाली में जीवन यापन कर रहे हैं, आज की असल कविता पीड़ित मानवता की पक्षधर है।
यह बात पंजाब की जानी मानी कवयित्री डॉ. दलजीत कौर ने कही। इनका मानना है कि देश की वास्तविकता से बेखबर होकर आज इंटरनेट के कमाल की वजह से फेसबुक का हर दूसरा तीसरा आदमी साहित्यकार होने का दावा कर रहा हैं। ऐसे लोग अपना ’कचरा साहित्य’ फेसबुक, मेसेंजर और वाट्सएप के हवाले कर रहे हैं, वहीं वास्तविक साहित्य बाजार से बाहर हो चुका है। वाट्सएप यूनिवर्सिटी का हर दूसरा तीसरा छात्र आज साहित्यकार होने का दम भर रहा है।’
अनेक चुनौतियों के बीच कविता
इनका मानना है कि भारत में गरीब और भूखे लोग दिन -ब- दिन अनिश्चित परिस्थितियों में जी रहे हैं। आधुनिक कविता इन तमाम परिस्थितियों और चुनौतियों के बीच लिखी जा रही हैं। तमाम संवेदनशील रचनाकारों के लिए यह समय अत्यंत कठिन और जोखिम भरा है। इस घटाटोप अंधकार में कविता के लिए एक उजास और उम्मीद भरा शब्द भी लिखना दूभर है। जाहिर है अपनी परिस्थिति और परिवेश का सामना तो करना ही होगा। यह रचनात्मकता और रचाव की दुनिया की पहली और प्राथमिक शर्त है।
डॉ. दलजीत का परिचय
चंडीगढ़ में जन्मी डॉ. दलजीत की मातृभाषा पंजाबी होने के बावजूद इन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से हिंदी साहित्य में न केवल एमए, वरन् पीएचडी भी किया है। दस वर्ष तक अध्यापन कार्य करने के बाद आप इन दिनों स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य में जुटी हुई हैं। इनकी चर्चित कृतियों में ’हरिशकर परसाईं के साहित्य में व्यंग्य’, ’सोच’ नाम से 52 कविताओं का संकलन, बाल कविता संग्रह ’मस्ती की पाठशाला,’ कविता संग्रह ’सही रास्ते की तलाश’ जिसे चंडीगढ़ साहित्य अकादमी व्दारा वर्ष 2014 में बेस्ट बुक अवार्ड से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा वर्ष 2016 में एक और कविता संकलन ’शायद हंसी खिल जाए’ प्रकाशित हुआ, वर्ष 2014 में पंजाबी में ’चुन्नू मुन्नू’ बाल कविता संकलन प्रकाशित तथा बच्चों में चर्चित हुआ है। पंजाबी में ही ’तारिया दी दुनिया’ नाम से एक और बाल कविता संकलन छपा जिसे वर्ष 2018 में चंडीगढ़ साहित्य अकादमी व्दारा सर्वश्रेष्ठ कृति से सम्मानित किया गया, इनका एक और बाल कविता संकलन ’आंख मिचौली’ प्रकाशित हुआ जिसे वर्ष 2018 भाषा विभाग पटियाला व्दारा सम्मानित किया गया। यहां उल्लेखनीय बात है कि यह सम्मान पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री व्दारा प्रदान किया गया। वर्ष 2020 में इनका एक अन्य बाल कविता संकलन ’जादुई पेंसिल’ एवं व्यंग्य संकलन ’एक गधा चाहिए’ प्रकाशित हुआ जिसे हिंदी के साथ ही पंजाबी पाठकों की भी खूब सराहना मिली है। डायमंड बुक्स के कहानी तथा बाल कहानी संकलन में भी इनकी रचनाएं संकलित हैं।
पुरस्कारों की लम्बी फेहरिस्त
डॉ. दलजीत कौर को मिले विभिन्न पुरस्कारों की फेहरिस्त भी लम्बी है। इनमें उल्लेखनीय यह कि इनका नाम 251 अंतरराष्ट्रीय श्रेष्ठ व्यंग्यकारों की सूची में शामिल किया जा चुका है। चंडीगढ़ लिटरेरी सोसायटी व्दारा इन्हें कहानी रचना के क्षेत्र में प्रथम पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा इन्हें व्यंग्य, कहानी, कविता तथा बाल साहित्य के क्षेत्र में श्रेष्ठ अवदान के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इनकी रचनाएं देश विदेश की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं।
रचना संसार परिपक्व
डॉ. दलजीत का रचना संसार बहुत विशाल और अत्यंत परिपक्व है। बेहतरीन अंग्रेजी के साथ ही पंजाबी ज्ञान की वजह से न केवल भारत वरन् विश्व साहित्य के पठन-पाठन ने इनकी संवेदनाओं को विकसित और खूब धारदार बनाया है। डॉ. दलजीत का कहना था कि यह समय उनके लिए ही नहीं तमाम संवेदनशील रचनाकारों के लिए अत्यंत कठिन और जोखिम भरा है। इस घटाटोप अंधकार में कविता के लिए एक उजास और उम्मीद भरा शब्द भी लिखना दूभर है। जाहिर है अपनी परिस्थिति और परिवेश का सामना तो करना ही होगा। यह रचनात्मकता और रचाव की दुनिया की पहली और प्राथमिक शर्त है।
पश्चिम की गिरफ्त में युवा
डॉ. दलजीत का कहना है कि हमारे देश का युवा वर्ग पश्चिमी दुनिया की कामयाबी और प्रसिध्दि के मिथक की गिरफ्त में है। उच्च मध्यम वर्ग के किशोर और नौजवान अपने देश की भूखी जनता की भीड़ से बचकर योरप और अमेरिका जाने की कोशिश में हैं। अनगिनत लोग आत्मा गिरवी रख कॉर्पोरेट की नौकरी बजा रहे हैं। वहीं टीवी और इंटरनेट की दुनिया ने लोगों की समझ और संवेदना पर इस कदर हल्ला बोला है कि शब्दों की ताकत बोथरी हो चुकी है। कविता, कहानी सहित साहित्य की अन्य विधाएं तकनीक में बदल रही हैं। फेसबुक चलाने वाला हर दूसरा तीसरा व्यक्ति आज साहित्यकार होने का दम भर रहा है। वह रातों रात कविता, कहानी और विचार लिखकर मित्रमंडल और रिश्तेदारों के हवाले कर वाहवाही लूट रहा है। आज अनेकानेक धार्मिक स्लोगन की भरमार है और मजे की बात यह कि लोग इसे ही साहित्य मानकर चल रहे हैं। ऐसे में असल कविता बाजार से बाहर हो रही है और सर्वत्र नकली और झूठी कविता का बोलबाला है। पाठक कम हो रहे हैं, लेकिन किताबें लगातार छप रही हैं। किसी समय साहित्य से सरोकार रखने वाले लोगों का आदर्श प्रेमचंद, निराला, जयशंकर प्रसाद, नागार्जुन, शील, बच्चन, महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत जैसे रचनाकार हुआ करते थे, लेकिन आज का लिखने पढ़ने वाला व्यक्ति आखिर किसे आदर्श मानकर चले?
डॉ. दलजीत की कविताएं
क्षणिकाएँ
हमदर्द
वह कहता है
मेरा हमदर्द है
मीठी बात भी
करता है
फिर जाने क्यों
हर महफ़िल में
मेरा नाम
भूल जाता है
अमृत
कवि है वह
उसके मन का ज़हर
उसकी कविताओं में
नहीं है
सच में
अमृत होती है
कविता
कमज़ोर
उसके संस्कार ,सहृदयता
मानवता और प्रेम
उसकी कमज़ोरी थे
चालाक लोगों को
वह शख़्स
कमज़ोर लगा
कविता
आजीवन उसने
कविता की बात की
अंत समय में
कविता उससे
मिलने आई
उसके मन का
सकून बन कर
नेकियाँ
कोई उसे मृत
घोषित न कर सका
वह मर कर भी
नहीं मरा
उसकी नेकियाँ
आज भी
ज़िंदा हैं
अभिनेत्री
जितना मैंने जाना
वह अच्छी अभिनेत्री है
मंच पर
मगर उससे भी अच्छी
दुनिया के रंगमंच पर
हमदर्द
लिख कर काग़ज़ पर
उतार लेती हूँ
अपने दिल का दर्द
आजकल इससे अच्छा
हमदर्द नहीं मिलता
⚫ डॉ. दलजीत कौर
चंडीगढ़ ((160036)