मालवा मीडिया फेस्ट कार्यशाला : पाकिस्तान के निर्माण के दौरान महात्मा गांधी चुप क्यों रहे?
⚫ टीवी पत्रकार एवं चर्चित पुस्तक” हे राम” के लेखक प्रखर श्रीवास्तव ने कहा
⚫ सक्षम संचार फाउंडेशन के बैनर तले दो दिवसीय कार्यशाला का समापन
⚫ जनता की जिज्ञासाओं को भी शांत किया श्री श्रीवास्तव ने
⚫ समापन पर हुआ प्रमाण पत्र वितरण
हरमुद्दा
रतलाम, 24 जनवरी। ‘विभाजन के समय महात्मा गांधी चुप क्यों थे? वह कहते थे कि पाकिस्तान मेरे शरीर के ऊपर से चलकर ही बनेगा। लेकिन वह तब भी वह चुप थे, जब पाकिस्तान के निर्माण का प्रस्ताव आया।
यह यह बात टीवी जर्नलिस्ट एवं चर्चित पुस्तक “हे राम” पुस्तक के लेखक प्रखर श्रीवास्तव ने कही। सक्षम संचार फाउंडेशन के बैनर तले मालवा मीडिया फेस्ट का आयोजन शनिवार को शुरू हुआ था जिसका समापन रविवार को हुआ। समापन पर श्री श्रीवास्तव विशेष रूप से मौजूद थे। उनसे “हे राम” पुस्तक पर चर्चा पत्रकार एवं लेखक हीरेन जोशी ने की। चर्चा में पकड़ श्रीवास्तव ने बेबाकी से सच्चाई से रूबरू करवाया। तथ्यात्मक बातें बताकर मौजूद लोगों की जिज्ञासाओं को बढ़ाया।
प्रामाणिक और ऐतिहासिक दस्तावेज है पुस्तक “हे राम”
यह पुस्तक सिर्फ गांधी और गोडसे की कहानी नहीं है, बल्कि ये एक प्रामाणिक ऐतिहासिक दस्तावेज़ है, जो गांधी हत्याकांड के साथ-साथ उस दौर में हो रही घटनाओं को बेनकाब करता है। ध्यान रहे, ये आज से पहले कभी सामने नहीं आया है। शरणार्थियों के दर्द, मुस्लिम तुष्टिकरण का पूरा सच और देश के विभाजन के गुनहगारों को जानने के लिए इस पुस्तक को पढ़ा जाना चाहिए।”
पुस्तक “हे राम” के बारे में
गांधी हत्याकांड का सच सिर्फ इतना भर नहीं है कि 30 जनवरी 1948 की एक शाम गोडसे बिड़ला भवन आया और उसने गांधी को तीन गोली मार दीं। दरअसल, गांधी हत्याकांड को संपूर्ण रूप से समझने के लिये इसकी पृष्ठभूमि का तथ्यात्मक अध्ययन अति आवश्यक है। इस पुस्तक में गांधी की हत्या से जुड़े एक पूरे काल खंड का बारीकी से अध्ययन किया गया है। आज़ादी के आंदोलन का अंतिम दौर, मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की मांग, सांप्रदायिक दंगे, देश का विनाशकारी विभाजन, लुटे-पिटे शरणार्थियों की समस्या, मुस्लिम तुष्टिकरण की पराकाष्ठा, पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने के लिये गांधी का हठ, हिंदुओं के मन में पैदा हुआ उपेक्षा और क्षोभ का भाव, सत्ता और शक्ति के लिए कांग्रेस के तत्कालीन नेतृत्व में पड़ी फूट जैसी कई वजहों से गांधी हत्याकांड की पृष्ठभूमि तैयार होती है।
यह सभी मुद्दे गांधी हत्या के लिए बराबरी से जिम्मेदार
गोडसे की चलाई तीन गोलियों की तरह ये सब मुद्दे भी गांधी की हत्या के लिए बराबरी से जिम्मेदार हैं। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि जब-जब गांधी की हत्या की बात होती हैं तो इन मुद्दों पर चुप्पी साध ली जाती है। कभी इस विषय पर भी गंभीर चर्चा नहीं होती है कि “पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा” ये कहने वाले गांधी ने विभाजन के खिलाफ कोई आमरण अनशन या कोई आंदोलन क्यों नहीं किया? इस पुस्तक में इस मुद्दे पर तथ्यों के साथ चर्चा की गई है। साज़िश की तह तक पहुंचने के लिए पुस्तक के लेखक ने पुलिस की तमाम छोटी-बड़ी जांच रिपोर्ट, केस डायरी, गवाहों के बयान और पूरी अदालती कार्रवाई से जुड़े हज़ारों पन्नों का बहुत ही बारीकी से अध्ययन किया है। कुल मिलाकर इस पुस्तक को मानक इतिहास लेखन की दृष्टि से देखा जाए तो लेखक प्रखर श्रीवास्तव ने प्राथमिक स्रोतों का उपयोग बहुत परिश्रम, सावधानी और समझदारी से किया है।
कोई बड़ी बात नहीं हे राम कहना
चर्चा के दौरान श्री श्रीवास्तव ने कहा महात्मा गाँधी के अंतिम तीन शब्द ‘हे राम’ पर कहा, “हे राम, मुझे लगता है ये कोई बड़ी बात नहीं है। अगर हमें चोट लगती है, तो भी हम ‘हे राम’ कहते हैं”। उन्होंने कहा की शायद तुष्टीकरण, विभाजन रोकने में विफल रहने और हिंदू प्रवासियों की दुर्दशा उनकी हत्या के कारण हो सकते है।
पहल जुमला आया कि गांधी जी नहीं चाहते थे पाकिस्तान का रोका जाए निर्माण
श्री श्रीवास्तव ने बताया कि सात साल 10 महीने की समय सीमा के दौरान जब पाक बनाने का संकल्प आया, तब गांधी कहते रहे कि पाकिस्तान मेरे शरीर पर गुज़रकर ही बनेगा, लेकिन जब पाक बनने का समय आया, तब भी वे चुप रहे, यहां तक कि जब पाक के लिए प्रस्ताव पारित किया गया। तब भी पाकिस्तान के गठन को गांधी ने चुपचाप मंजूरी दे दी। यह पहला राजनीतिक जुमला था कि गांधी कभी नहीं चाहते थे कि पाकिस्तान का निर्माण रोका जाए। उन्होंने आगे कहा, गांधी को अनशन के लिए जाना जाता है, लेकिन उन्होंने पाकिस्तान के निर्माण के दौरान अनशन क्यों नहीं किया, जबकि वे कहते थे कि पाक मेरे शरीर पर गुजरने के बाद ही बनेगा। लगभग 90 मिनट की चर्चा में विस्तृत रूप से ऐसी ऐसी बातें बताई जिससे सभागार अचंभित रह गया।
श्रोता दर्शक की जिज्ञासा को भी किया शांत
जब श्रीवास्तव से पूछा गया कि क्या इतिहास को बदलने की कोशिश की जा रही है तो उन्होंने कहा, ”इतिहास को बदलने की कोशिश नहीं की जा रही है बल्कि इतिहास को सही करने की कोशिश की जा रही है”। सभागार में मौजूद श्रोता दर्शकों निसर्ग दुबे, वैदेही कोठारी, विवेकानंद चौधरी, रुचि श्रीमाली सहित अन्य ने प्रश्न पूछ कर अपनी जिज्ञासों का समाधान करवाया। समापन पर श्री श्रीवास्तव को स्मृति चिह्न फोटो जर्नलिस्ट राकेश पोरवाल ने भेंट किया।
“मालवा एवं मीडिया” पर हुई सार्थक चर्चा
इसके पूर्व “मालवा एवं मीडिया” पर सार्थक चर्चा का आयोजन किया गया। मंच पर चर्चा में पत्रकार नीरज शुक्ला, मुकेश पुरी गोस्वामी, पत्रकार एवं लेखक आशीष दशोत्तर, पत्रकार एवं साहित्यकार वैदेही कोठारी मौजूद रहे।
पत्रकारों से चर्चा रुचि श्रीमाली ने की। सभी को स्मृति चिह्न अनिला कंवर, सीमा अग्निहोत्री, अर्चना शर्मा, हेमंत भट्ट ने भेंट किए। समापन पर प्रमाण पत्र वितरित किए गए। आयोजन में अदिति दवेसर, अनिला कंवर, प्रवीणा दवेसर, सीमा अग्निहोत्री, तुषार कोठारी, सतीश त्रिपाठी सहित अन्य सुधीजन मौजूद रहे। संचालन आशीष दशोत्तर ने किया।