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साहित्य सरोकार : अनुवाद में रचना की समझ और अंतर्दृष्टि आवश्यक

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डॉ. सीएल शर्मा ने कहा

प्रो. रतन चौहान की तीन किताबों का विमोचन हुआ

हरमुद्दा
रतलाम, 11 फरवरी। अनुवाद सरल कार्य नहीं है । इसे करने के लिए मूल रचना के भीतर प्रवेश करना होता है । उसे समझने के अंतर्दृष्टि चाहिए । कई भाषाओं का ज्ञान आवश्यक है और रचना के भाव समझना भी ज़रूरी है । ऐसा श्रमसाध्य कार्य कर प्रो. रतन चौहान ने हिंदी और अंग्रेजी दोनों साहित्य को समृद्ध किया है। यह कार्य कई पीढियां को शिक्षित और प्रेषित करता रहेगा।


यह विचार प्राध्यापक एवं चिंतक डॉ.सी. एल. शर्मा ने व्यक्त किए। डॉक्टर शर्मा जनवादी लेखक संघ रतलाम द्वारा आयोजित वरिष्ठ कवि एवं अनुवादक प्रो. रतन चौहान की तीन किताबों के पुस्तक विमोचन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि मौजूद थे।

समारोह पूर्वक हुआ विमोचन

विमोचन करते हुए अतिथि

रतलाम प्रेस क्लब भवन पर आयोजित समारोह में वरिष्ठ कवि प्रो. चौहान द्वारा  अनुवादित छायावादी युग के प्रवर्तक सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की महत्वपूर्ण कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद ‘ द सिंफनी अनडाईंग’ , वरिष्ठ शाइर वक़ार सिद्दीक़ी की ग़ज़लों का अंग्रेज़ी अनुवाद ‘द सोल एंड द स्प्रिंग्स ऑफ टाइम’ तथा अंग्रेज़ी आलेखों के संग्रह पर केंद्रित किताब ‘ए ग्लिम्प्स ऑफ लिटरेचर’ का विमोचन किया गया ।

दो भाषाओं के बीच पुल बनाने का कार्य किया प्रोफेसर चौहान ने

श्री डीके शर्मा संबोधित करते हुए

शिक्षाविद् एवं चिंतक प्रो.डी.के.शर्मा ने कहा कि पढ़ने-लिखने का जो भाव पिछली पीढ़ियों में रहा है वह आज की पीढ़ी में देखने को नहीं मिलता है। आजकल तो साहित्य से जुड़े हुए लोग भी साहित्य का अध्ययन नहीं करते। प्राध्यापक भी साहित्य का गहन अध्ययन नहीं करते । इस कारण इस क्षेत्र में नए लोग नहीं आ पा रहे हैं । अनुवाद का कार्य कर रतन चौहान ने दो भाषाओं के बीच एक पुल बनाने का काम किया है।

निराला जैसी सादगी है प्रोफेसर चौहान में

प्रोफेसर भांभरा विचार व्यक्त करते हुए

पूर्व प्राध्यापक प्रो. पदमा भांभरा ने कहा कि निराला जैसे महाकवि की रचनाएं जो हिंदी में पढ़ने में ही काफी कठिन लगती हैं ,ऐसी रचनाओं का अंग्रेजी में अनुवाद करना बहुत मेहनत का काम है। यह कार्य वही व्यक्ति कर सकता है जिसमें पढ़ने के ललक हो , जिसके जीवन में निराला जैसी सादगी हो और जो अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ हो। चौहान साहब ने यह कार्य कर पूरे साहित्य जगत को समृद्ध किया है।
विशेष अतिथि चिंतक डॉ. जी. पी. डबकरा ने कहा कि साहित्य सदैव समझ के नए द्वार खोलता है। इन पुस्तकों से भी पाठकों की समझ का विस्तार होगा।

जिसे मिलते हैं साहित्य के संस्कार वह भाग्यशाली

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि एवं चिंतक डॉ.एन. के. शाह ने कहा कि साहित्य के संस्कार जिसे मिलते हैं वह भाग्यशाली होता है। ये किताबें रचनाकारों को संस्कार प्रदान करेंगी। प्रो.चौहान ने कहा कि व्यक्ति से महत्वपूर्ण सृजन होता है। इस राह पर मिलने वाली बाधाओं और आनंद की उन्होंने चर्चा की।

प्रोफेसर चौहान का किया स्वागत सम्मान

रंगकर्मी कैलाश व्यास ने प्रो.चौहान का परिचय देते हुए उनके सादगीपूर्ण जीवन के संस्मरण सुनाए। इस अवसर पर आशीष दशोत्तर ने निराला की रचनाओं तथा सिद्दीक़ रतलामी ने वक़ार सिद्दीक़ी की रचनाओं का पाठ किया, जिनका अंग्रेज़ी अनुवाद प्रो रतन चौहान ने प्रस्तुत किया। प्रारंभ में जलेसं अध्यक्ष रणजीत सिंह राठौर, सचिव सिद्धीक़ रतलामी सहित उपस्थित जनों ने अतिथियों एवं प्रो रतन चौहान का स्वागत, सम्मान किया। संचालन युसूफ़ जावेदी ने किया। आभार रणजीत सिंह राठौर ने व्यक्त किया।

इनकी उपस्थिति रही

समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार श्याम माहेश्वरी, प्रणयेश जैन, डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला, डॉ. खुशाल सिंह पुरोहित, डॉ. गीता दुबे, डॉ. पूर्णिमा शर्मा, डॉ. धर्मराज वाघेला, मुस्तफ़ा आरिफ़, डॉ. ऋतम उपाध्याय, गीता राठौर, विष्णु बैरागी, महावीर वर्मा, अनीस खान, ओमप्रकाश मिश्र, सुनील व्यास, जीके शर्मा, डॉ. मोहन परमार, नरेंद्र सिंह पंवार, जितेंद्र सिंह पथिक, श्याम सुंदर भाटी, संजय परसाई सरल, सत्यनारायण सोढ़ा सहित सुधिजन मौजूद थे।

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