ग़ज़ल : सभी मिल आज खाएंगे यहाँ दो जून की रोटी

सभी मिल आज खाएंगे यहाँ दो जून की रोटी।
वरना तो मिले सबको कहाँ दो जून की रोटी।।

दिव्या भट्ट ‘स्वयं’

सभी मिल आज खाएंगे यहाँ दो जून की रोटी।
वगरना तो मिले सबको कहाँ दो जून की रोटी।।

छुड़ा कर हाथ अपनों का कमाने को निकलते हैं,
ठिकाना बन गया मिलती जहाँ दो जून की रोटी।।

कमाए नाम धन दौलत, मगर क्या काम के सारे,
भरे ये पेट बस चाहे जहाँ दो जून की रोटी।।

दिखे संसार सारा खूब सुंदर है अमीरों को,
गरीबी में हुई अक्सर निहाँ दो जून की रोटी।।

खदानों में, घने वन में, गगन तक वो ‘स्वयं’ जाए,
पहुंचता है उसे मिलती वहाँ दो जून की रोटी।।

⚫ दिव्या भट्ट ‘स्वयं’
इंदौर, मध्य प्रदेश

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