धर्म संस्कृति : मुमुक्षु संयम बन गए नूतन मुनिराज पूज्य श्री सिद्धर्षिचन्द्रसागर जी म.सा., ऐतिहासिक प्रसंग के साक्षी बने देशभर से आए समाजजन
⚫ बंधु बेलड़ी प्रशिष्यरत्न के हाथों प्राप्त की परमानंदी प्रव्रज्या
⚫ खचाखच भरे पंडाल में दीक्षा देखने के लिए हजारों उमड़े
⚫ पांच घंटे से अधिक समय तक चला दीक्षा महोत्सव
⚫ विजय तिलक लगाकर संयम पथ पर प्रस्थित किया
⚫ प्रव्रज्या पाते ही संयम की आँख ख़ुशी से भर आई
⚫ पिता ने की नूतन नाम की उदघोषणा
हरमुद्दा
रतलाम, 12 जून। रतलाम के युवा मुमुक्षु संयम पालरेचा अब नूतन मुनिराज पूज्य श्री सिद्धर्षिचन्द्रसागर जी म.सा. के नाम से जाने पहचाने जाएंगे। उन्होंने आचार्य श्री बंधु बेलड़ी प्रशिष्यरत्न गणिवर्य श्री पदम-आनंदचन्द्रसागर जी म.सा. के करकमलों से परमानंदी प्रव्रज्या ग्रहण की । दीक्षा लेते ही साधु जीवन में आजीवन पंच महाव्रत का पालन करने का संकल्प लिया। रतलाम में विगत दो माह में पांचवी , सागर समुदाय में दो वर्ष में चौथी एवं बंधु बेलड़ी परिवार में 128 वीं दीक्षा है । हजारों की संख्या में देश के विभिन्न प्रान्तों एवं मालवा अंचल से पहुंचे समाजजन इस ऐतिहासिक प्रसंग के साक्षी बने।
विजय तिलक लगाकर संयम पथ पर प्रस्थित किया
दीनदयाल नगर स्थित आचार्य देव श्री जिनचन्द्रसागरसूरि विरति वाटिका आगमोद्धारक नगरी में 12 दिवसीय दीक्षा महोत्सव बुधवार को सौल्लास सम्पन्न हो गया । बंधु त्रिपुटी पू.आ.श्री अशोक-जिन-हेमचन्द्रसागर सूरीश्वर जी म.सा. के शुभाशीष से दीक्षार्थी गणिवर्यश्री की निश्रा में चल समारोह के साथ नाचते झूमते दीक्षा स्थल पर पहुंचे ।
माता पिता प्रवीण कविता पालरेचा एवं परिजन दीक्षा उपकरण से सुसज्जित छाप लेकर चल रहे थे । शुभ मुहूर्त में दीक्षा विधि प्रारम्भ हुई । कोई पांच घंटे से अधिक समय तक परमात्मा के समक्ष दीक्षा विधि चली । परम्परानुसार गुरु भगवंत को पालरेचा परिवार ने प्रवज्या भेंट की । लाभार्थी मातुश्री दौलतबाई आनंदीलाल लुनिया परिवार एवं परिजनों ने दीक्षार्थी को विजय तिलक लगाकर संयम पथ दिग्विजयी होने की मंगलकामना की ।
प्रव्रज्या पाते ही संयम की आँख ख़ुशी से भर आई
जैसे ही मुमुक्षु संयम को प्रव्रज्या प्रदान करने की शुभ मंगल घड़ी आयी वैसे ही वे उत्साह और उमंग से भरे दीक्षा वातावरण में परमात्मा के समक्ष झूम उठे । आँखों में ख़ुशी के आंसू और अंतर में संयम जीवन के प्रति अहोभाव संजोय संयम भाई गुरु भगवंत के समक्ष प्रव्रज्या प्रदान करने की विनती लेकर पहुंचे । उन्हें मंगल मुहूर्त में परमानंदी प्रवज्या प्रदान की गई । जिसकी वे विगत वर्षों से प्रतीक्षा कर रहे थे । हाथों में प्रव्रज्या थामे मुमुक्षु संयम भाई ने परमात्मा की परिक्रमा करते हुए सम्यक्त्व के पराक्रम को अभिव्यक्ति दी । हाथों में केसरिया धर्म पताकाएं थामे उपस्थित जनमेदनी ने दीक्षार्थी के जयघोष से विरति वाटिका को गूंजा दिया । अक्षत से उन्हें वधाया गया ।
पिता ने की नूतन नाम की उदघोषणा
प्रवज्या प्राप्त करने के बाद वे संयम वेश धारण कर दीक्षा स्थल पर पहुंचे । विधिविधान से नियत क्रियाएँ संपन्न करवाई गई । नूतन मुनिराज के रूप में उनके गुरु ने उनका नामकरण पूज्य श्री सिद्धर्षिचन्द्रसागर जी म.सा. किया, जिसकी उद्घोषणा जीव मैत्री परिवार के सभ्य उनके सांसारिक पिता प्रवीण पालरेचा ने की । नूतन मुनिराज की नाम पट्टिका का अनावरण करतल ध्वनि ने साथ किया गया । इस अवसर पर दीक्षा महोत्सव को सफल बनाने के लिए विरति वाटिका के लाभार्थी मातुश्री सीताबेन कांतिलाल शाह परिवार अनावल वाला, जैनानंद नवयुवक मंडल, समकित परिवार, जीव मैत्री परिवार, नवकार परिवार, पार्श्वनाथ सेवा समिति विभिन सहित संगठनों एवं परिवारों का श्री देवसुर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ एवं निमंत्रक नगीन कुमार प्रवीण कुमार पालरेचा परिवार ने बहुमान किया । संचालन प्रवीण गुरूजी इंदौर एवं गणतंत्र मेहता ने किया । संगीतकार संयम राठोर रहे।
भीषण गर्मी में पैदल रतलाम आए
इस भव्य समारंभ को पू.साध्वी श्री अर्चितगुणाश्रीजी म.सा, साध्वी श्री स्वर्णज्योति श्रीजी म.सा, साध्वी श्री मेघवर्षाश्रीजी म.सा, श्री रत्नरिद्धिश्रीजी म.सा.एवं साध्वी श्री रतनवृद्धिश्रीजी म.सा.आदि विशाल श्रमण श्रमणी वृन्द ने निश्रा प्रदान की । दीक्षा महोत्सव को निश्रा प्रदान करने के लिए देश के विभिन्न स्थानों से साधु साध्वी जी भगवंत भीषण गर्मी में पैदल विहार कर रतलाम पहुंचे थे । यंहा सैलाना राजवंश से विक्रम सिंह – चन्द्राकुमारी परिवार, मातुश्री सीताबेन कांतिलाल शाह परिवार अनावल वाला आदि विशिष्टजनों की गरिमापूर्ण उपस्थिति रही।
सन्तति को संत बनने के लिए सम्मति
दीक्षा की पूर्व संध्या पर मुमुक्षु संयम भाई को बड़े ही भाव विव्हल कर देने वाले वातावरण में विदाई दी गई । उन्होंने अपने माता पिता एवं दीदी – जियाजी के चरण वंदन कर आशीर्वाद लिया । पिता ने अपने लाडले को भीगी आँखे से गले लगाया तो माँ ने बेटे का सिर गोद में रखकर दुलार किया । अक्षत से वधामणा करते हुए उन्होंने इकलौते बेटे को संत बनने के लिए सम्मति प्रदान की । सुर और स्वर लहरियों के बीच जीव मैत्री परिवार ने भी उन्हें विदाई दी । मुमुक्षु ने अपने उद्भोधन में संयम जीवन की यात्रा के बारे में बताया । संवेदनाकार मोंटू भाई एवं संगीतकार पर्व जैन नवकार परिवार इंदौर रहे ।
साधु बन पहली बार घर जाएंगे
साधु जीवन अंगीकार कर नूतन मुनिराज बने पूज्य श्री सिद्धर्षिचन्द्रसागर जी म.सा.गुरुवार को संयम जीवन की पहली सुबह में पहली बार अपने सांसारिक निवास काटजू नगर पर पगलिये करने जाएंगे । सुबह गुरु भगवंत की निश्रा में श्रमण श्रमणी वृन्द के साथ वे दीक्षा स्थल से विहार कर काटजू नगर आएंगे। यहां उनके दर्शन वंदन के साथ व्याख्यान होंगे । जिसके बाद शाम को वे श्री करमचंद उपाश्रय हनुमान रूंडी के लिए प्रथम विहार करेंगे।