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आंखों देखी : टीवी के जमाने भी नहीं छूटा इनका रेडियो प्रेम, फेरी लगाकर बेचते हैं हींग

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साइकिल के हैंडिल पर ट्रांजिस्टर

नीम के पेड़ पर चढ़कर एफएम सुनना

नरेंद्र गौड़
रतलाम, 13 जून। टीवी, फेसबुक, वाट्स एप, इंस्ट्राग्राम, मेसेंजर जैसे अति आधुनिक संसाधनों के दौर में रेडियो अतीत का हिस्सा हो चुका है और उससे जुड़े किस्से इतिहास बन चुके हैं, लेकिन आज भी अनेक लोग मिल जाएंगे जो रेडियो, ट्रांजिस्टर के शौकिन हैं। हालांकि ऐसे लोग बहुत खोजने पर ही मिल सकते हैं।

देवीसिंह का ट्रांजिस्टर प्रेम

रतलाम में प्रसिध्द बरवड़ हनुमान मंदिर के पास विधायक सभाग्रह है, वहीं हमें ट्रांजिस्टर शौकिन देवीसिह मिल गए। सभाग्रह बहुत बड़ा है और आसपास मैदान है, जहां बच्चे क्रिकेट खेला करते हैं। हनुमान मंदिर परिसर में पानी की कोई कमी है नहीं, और आसपास चना चबैना सहित किराने का सामान आसानी से मिल जाता है। इस सभाग्रह में दिहाड़ी मजदूरों के अलावा ऐसे घुमंतुओं को भी सपरिवार देखा जा सकता है जो रात बिताने के लिए यहां अपना डेरा डाल देते हैं। रतलाम बांसवाड़ा टूलेन निकट होने के कारण आवागमन के संसाधन भी आसानी से मिल जाते हैं। सभाग्रह में आयोजन जिन दिनों होते हैं, तब जरूर इन लोगों को परेशानी होती है, वरना आमतौर पर यह परिसर खाली रहता है। रात के समय लाइटें जल जाती हैं। यहां कुछ लोग ऐसे भी मिल जाएंगे जो अपना सामान एक पोटली में बांधकर उसे भगवान भरोसे छोड़ मजदूरी करने चले जाते हैं और रात को यहां सोने आ जाते हैं। इस तरह यह छोटा-सा रैनबसेरा कहा जा सकता है।

उद्घोषक को आवाज सुनकर पहचान जाते हैं

इसी सभाग्रह में रेडियो सुनते हुए आराम कर रहे सत्तर वर्षीय देवीसिंह से हमारी मुलाकात हुई। कहने लगे वह बरसों से रेडियो के शौकिन हैं। यह ट्रांजिस्टर उन्होंने सात साल पहले तीन सौ रूपए में खरीदा था, इसमें तीन सेल लगते हैं। इसके पहले भी उनके पास एक ट्रांजिस्टर था जिसके खराब होने पर इसे खरीदना पड़ा। अतीत के दिनों में गोता लगातेे हुए देवीसिंह बता रहे थे कि किसी जमाने में रेडियो सिलोन से बिनाका गीत माला कार्यक्रम आया करता था, जिसे अमीन सयानी पेश करते थे। वह बिना नागा उसे सुना करते थे। इसके अलावा विविध भारती से हवामहल कार्यक्रम में एक से बढ़कर एक नाटक प्रसारित होते थे,  जिन्हें वह बराबर सुना करते थे। विविध भारती और आकाशवाणी इंदौर उनके पसंदीदा रेडियो स्टेशन हैं। किसी जमाने में खेती गृहस्थी कार्यक्रम आया करता था जिसे नंदाजी भेराजी की जोड़ी समां बांध दिया करती थी। देवीसिंह ने दावा किया कि वह आवाज सुनकर बता सकते हैं कि यह किस एनाउन्सर की आवाज है।

रेडियो सुनते हुए लग जाती नींद

कहने लगे कि आकाशवाणी इंदौर के प्रकाश शुजालपुरकर, सिध्दनाथ सौलंकी, प्रवीण नागदेव, उमेश कुलकर्णी आदि की आवाज अब सुनाई नहीं देती, शायद रिटायर हो चुके होंगे। इंदौर आकाशवाणी के प्रोग्राम में भी बदलाव आ गया है, लेकिन जो भी हो रेडियो का शौक उनसे छूटता नहीं है। हालांकि सेल का खर्चा जरूर अखरता है। अनेक बार रेडियो सुनते हुए नींद भी लग जाती है और यही कारण है कि बुढ़ापे के बावजूद उन्हें नींद नहीं आने को लेकर कभी कोई शिकायत नहीं हुई। रेडियो उन्हें जीवनी शक्ति देता है और वह आज भी रोमांटिक गाने सुनकर खुद को जवान अनुभव करते हैं।

फेरी लगाकर बेचते हैं हींग

अपने रोजगार धंधे के बारे में देवीसिंह बताने लगे, वह फेरी लगाकर हींग बेचने का धंधा करते हैं और यहीं उनकी छोटी-सा आय का जरिया है। रतलाम ही नहीं आसपास के देहातों में वह टूर लगाते हैं, जहां उनके नियमित ग्राहक हैं। प्रतापगढ़ राजस्थान से बढ़िया किस्म की हींग लाते हैं और कारोबार करते हैं। इसीमें उनका खाना खर्चा आराम से निकल जाता है। तीन बेटे हैं जो अपना छोटा-मोटा धंधा कर लेते हैं। बेटियों की शादी हो चुकी है। बरसों पहले पत्नी दिवंगत हो चुकी। एक सवाल के जवाब में बताया कि पास ही उनका घर है, लेकिन घर कम ही जाते हैं। दिन में हींग बेचने के बाद यही सभाग्रह में डेरा डाल देते हैं, बेटे लोग घर से खाना ले आते हैं। चाय की तलब लगी तो पास ही दुकानें हैं।

साइकिल के हेंडिल पर ट्रांजिस्टर

रेडियो शौक की बात चली तो शाजापुर के लोग कवि सैयद अली ’ऋषि’ को आज भी याद करते हैं। वह प्रातःकालीन भ्रमण के समय ट्रांजिस्टर अपनी साइकल के हैंडिल पर लटका लिया करते और हवाखोरी के साथ गीतों का मजा भी लेते चलते थे। शिक्षक की नौकरी से निवृत्त होने के बाद उनका रेडियो प्रेम और परवान चढ़ गया था। उनकी भावनाएं संप्रदायवाद से ऊपर उठकर थी, पांच वक्त नमाज पढ़ने मस्जिद जाते तो रास्ते में पड़ने वाले मंदिरों के सामने भी सिर झुकाना नहीं भूलते। आकाशवाणी इंदौर से उनकी कविताएं यदाकदा प्रसारित हुआ करती थी। पांच-छह बरस पहले ही वह दिवंगत हुए हैं, लेकिन उनका रेडियो प्रेम आज भी लोग भूले नहीं हैं।

नीम के पेड़ पर चढ़कर रेडियो सुनना

इसी तरह शाजापुर जिले में ही मोमन बडोदिया के निकट बड़ागांव है, जहां टावर नहीं होने के कारण एफएम रेडियो प्रसारण सुनना कठिन है। इस कारण एक रेडियो प्रेमी नीम के पेड़ पर चढ़ जाता है और घंटे दो घंटे अपना मनोरंजन करने के बाद उतरता है। पेड़ ऊंचा होने की वजह से एफएम रेडियो प्रसारण आराम से सुनाई देता है। खेद की बात है कि आज भी जिला होने के बावजूद शाजापुर में एफएम रेडियो प्रसारण नहीं सुना जा सकता। विधायक, सांसद मंत्रियों से अनेक बार मांग की जा चुकी है, लेकिन नतीजा नहीं निकला।

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