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अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर विशेष : दुनिया को आरोग्य देने वाला “योग” नाथ संप्रदाय की मुख्य देन

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योग को सही मायने में ‘स्वयं और दुनिया के साथ सामंजस्य में रहने का विज्ञान’ कहा जाता है। यह न केवल हमारे शरीर को फिट रखने के लिए है बल्कि हमारे मन और आत्मा को सक्रिय रखने में भी हमारी मदद करता है। यह अभ्यास शरीर, मन और आत्मा को एक साथ जोड़ता है और जीवन के प्रति हमारे दृष्टिकोण, व्यवहार और दृष्टिकोण को बदलकर हमें खुश, शांतिपूर्ण और संतुष्ट रहने में सक्षम बनाता है। इसी विषय पर नीति संप्रदाय के सिध्दी कर्मयोगी परिवार का सकारात्मक सदभावनिक विचार से ध्यान का मार्ग प्रशस्त करने वाले ध्यानगुरु रघुनाथ येमुल गुरुजी का पढ़िए विशेष आलेख।

ध्यानगुरु रघुनाथ येमुल गुरुजी

योग को सही मायने में ‘स्वयं और दुनिया के साथ सामंजस्य में रहने का विज्ञान’ कहा जाता है।  यह न केवल हमारे शरीर को फिट रखने के लिए है बल्कि हमारे मन और आत्मा को सक्रिय रखने में भी हमारी मदद करता है। यह अभ्यास शरीर, मन और आत्मा को एक साथ जोड़ता है और जीवन के प्रति हमारे दृष्टिकोण, व्यवहार और दृष्टिकोण को बदलकर हमें खुश, शांतिपूर्ण और संतुष्ट रहने में सक्षम बनाता है। यह हमें अधिक सकारात्मक, आशावादी और खुशमिजाज बनाता है। योग व्यक्तियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और यह दुनिया पर सकारात्मक प्रभाव भी डाल सकता है। योग एक भारतीय आध्यात्मिक और शारीरिक अभ्यास या अनुशासन है, जिसकी उत्पत्ति प्रागैतिहासिक काल से हुई है। कुछ लोगों की सोच के विपरीत, योग केवल स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती को बेहतर बनाने के उद्देश्य से किया जाने वाला व्यायाम नहीं है, बल्कि यह आत्म-साक्षात्कार के बारे में भी है।

नाथ संप्रदाय की सौगात

आज जितने भी आसन, प्राणायाम, ध्यान प्रचलित हैं, इन सभी पर आदि गुरु मत्स्येंद्रनाथ, गुरु गोरखनाथ सहित 84 सिद्धों के आसनों की छाप और प्रेरणा दिखाई देती है। प्राचीन काल से गोरखपुर नाथ पंथ का केंद्र रहा है।

गोरखनाथ ने अपनी रचनाओं तथा साधना में योग के अंग क्रिया-योग अर्थात तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणीधान को अधिक महत्व दिया है। इनके माध्‍यम से ही उन्होंने हठयोग का उपदेश दिया। गोरखनाथ शरीर और मन के साथ नए-नए प्रयोग करते थे। जनश्रुति अनुसार उन्होंने कई कठ‍िन (आड़े-त‍िरछे) आसनों का आविष्कार भी किया।

हठयोग का सिद्धांत

शरीर, मन और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित करने में योग की बड़ी भूमिका है। महर्षि पतंजलि ने योग को एक व्यवस्थित रूप दिया। वहीं नाथ पंथ और गुरु गोरखनाथ ने योग को विस्तृत रूप देकर उसे जन-जन तक पहुंचाने का कार्य किया। गुरु गोरखनाथ ने ही हठयोग का सिद्धांत बनाया। इसके माध्यम से उन्होंने शरीर शुद्धि, आचरण शुद्धि, व्यवहार शुद्धि और जीवन शुद्धि का मार्ग प्रशस्त किया।

हठयोग क्या है

हठयोग चित्तवृत्तियों के प्रवाह को संसार की ओर जाने से रोककर अंतर्मुखी करने की एक प्राचीन भारतीय साधना पद्धति है, जिसमें प्रसुप्त कुंडलिनी को जाग्रत कर नाड़ी मार्ग से ऊपर उठाने का प्रयास किया जाता है और विभिन्न चक्रों में स्थिर करते हुए उसे शीर्षस्थ सहस्रार चक्र तक ले जाया जाता है। हठयोग प्रदीपिका इसका प्रमुख ग्रंथ है। हठयोग साधना की मुख्य धारा शैव रही है। यह सिद्धों और बाद में नाथों द्वारा अपनाया गया। मत्स्येन्द्र नाथ तथा गोरख नाथ उसके प्रमुख आचार्य माने गए हैं। गोरखनाथ के अनुयायी प्रमुख रूप से हठयोग की साधना करते थे। उन्हें नाथ योगी भी कहा जाता है। शैव धारा के अतिरिक्त बौद्धों ने भी हठयोग की पद्धति अपनायी थी। इस योग का महत्व वर्तमान काल मे उतना ही है जितना पहले था ।

दुनिया भर में योग का प्रचार

नाथ पंथ और योग के बारे में ओडिशा के केंद्रपाड़ा स्थित नाथ संप्रदाय मठ के योगेश्वर महंत शिवनाथ कहते हैं कि नाथ पंथ का प्रभाव समग्र भारत वर्ष पर था। देश के बाहर अफगानिस्तान, चीन, पाकिस्तान, म्यांमार, नेपाल, भूटान इन देशों पर नाथ संप्रदाय का प्रभाव रहा है। अभी रूस, ब्रिटेन, दक्षिण कोरिया सहित यूरोप के अन्य देशों में योग का प्रचार ज्यादा हो रहा है। दो साल तक लंदन में योग का प्रचार-प्रसार करने वाले महंत शिवनाथ का कहना है कि गुरु गोरक्षनाथ और नाथ संप्रदाय का असर देश के कई राजा-रजवाड़ों पर था। गुरु गोरक्षनाथ की योग, साधना पद्धति और दर्शन से प्रभावित होकर कई राजा उनके शिष्य बने। नेपाल के माहाराजा पृथ्वी नारायण शाह गुरु गोरक्षनाथ के शिष्य थे।

योगी आदित्यनाथ जी का योगदान

सी.एम. योगी आदित्यनाथ जी ने योग के प्रसार के लिए एक और बड़ा काम किया। उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय में महायोगी गोरक्षनाथ शोध संस्थान स्थापित किया। इस शोध संस्थान में दो साल पहले योग पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन हुआ जिसमें देश और दुनिया के योग के विद्वान एवं विशेषज्ञ शामिल हुए। आम जन तक योग पहुंचाने के लिए गोरक्षनाथ मंदिर लगातार सक्रिय है और वह इससे जुड़ी गतिविधियां करता आ रहा है। दुनिया भर में नाथ संप्रदाय के जितने भी मठ और मंदिर हैं वहां भी योग का प्रचार चल रहा है।

शरीर की साधना पर  जोर

‘योग के नाम पर आज जो भी साधनाएं चल रही हैं, वे सभी हठयोग में पहले से मौजूद हैं। योग के जितने आसन हैं उसके प्रणेता मत्स्येंद्रनाथ और गोरक्षनाथ हैं। गोरक्षनाथ के नाम पर गोरक्षासन और मत्स्येंद्रनाथ के नाम पर मत्स्येंद्रासन पाया जाता है। महर्षि पतंजलि ने कभी यह नहीं कहा कि आसन, प्राणायाम करने से रोग दूर होता है बल्कि महायोगी गुरु गोरक्षनाथ ने बताया कि आसन, प्राणायाम से रोग दूर होता है। पतंजलि योग मानसिक साधना धारणा, ध्यान, समाधि के ऊपर जोर देता है जबकि गोरक्षनाथ शरीर की साधना पर ज्यादा जोर देते हैं क्योंकि उनका मानना है कि किसी भी साधना के लिए पहले शरीर का स्वस्थ होना जरूरी है।’

ध्यान गुरु का संकल्प

गुरु गोरखनाथ सम्प्रदाय के परम शिष्य ध्यानगुरु रघुनाथ येमुल गुरूजी कहते है कि विश्व मानव समाज को आरोग्य प्रदान करने वाला योग आज बहुत अधिक प्रचलन में है। गुरु गोरखनाथ की मानव समाज को अद्भुत सौगात योग को हम जन जन तक पहुँचाने के लिए प्रतिबद्ध है । स्वस्थ शरीर के साथ प्रसन्न मन भी होना जरूरी है। जिसके लिए योग सबसे सरल सहज साधन है। नाथ सम्प्रदाय की इस सौगात को समाज अंगीकार करें …हमारा यही प्रयास है।

ध्यानगुरु रघुनाथ येमुल गुरुजी, पुणे

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