साहित्य सरोकार : “मौनता का श्राप”
⚫जंगलों पर अत्याचार, बेजुबानोंपर अत्याचार, नदियों को माता कहकर भी गंदा करना, प्रकृति पर अत्याचार शिवजी बोले, यह मौनता का श्राप है पुत्र। ⚫
⚫ इन्दु सिन्हा “इन्दु”
भगवान देख रहे हो या नहीं ?
हाँ, विनायक देख भी रहा हूँ और सुन भी रहा हूँ।
क्या पिताजी सुन रहे हो आप ? गणेश जी बोले,
रोती बिलखती छाती कूटती माँ का रुदन देख रहा हूँ,जवान लाशें, से एक साथ उठती अर्थिया, महादेव ने शांत चित्त से कहा।
नदियों का विकराल रूप भोले बाबा बोले,
मैं देख रहा हूँ पिताजी,
प्रथम पूजे जाने वाले देवता के दस ग्यारह दिन उत्सव के बाद बेदर्दी से मूर्तियों को फेंक देना, मूर्तियों का टूटना टूटना, कहीं भी पड़े रहना, छोड़ देना,
क्यो पिताजी क्यों ? गणेश जी चिंतित थे।
जंगलों पर अत्याचार, बेजुबानो ऊपर अत्याचार, नदियों को माता कहकर भी गंदा करना,
प्रकृति पर अत्याचार शिवजी बोले,
यह मौनता का श्राप है पुत्र,
घोर कलयुग की शुरुआत, माता क्रोधित है।
गणेश जी नदी में बहते हुए अपनी मूर्ति के टुकड़े देखते रहे।
⚫ इन्दु सिन्हा “इन्दु”
रतलाम (मध्यप्रदेश)