सेहत सरोकार : महिलाएं चाहे शहरी हो या ग्रामीण उनके लिए जरूरी है बच्चेदानी, उसे निकलवाने की ना करें नादानी

गर्भाशय संरक्षण कार्यशाला के लिए आए डॉक्टर प्रियंकुर राय ने पत्रकार वार्ता में कहा

भारत में बच्चेदानी निकालने के प्रकरणों में हो रही है चिंताजनक वृद्धि

बच्चेदानी निकालने से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर होता है विपरीत असर

सर्वाइकल सहित 14 प्रकार के कैंसर से बचाव के लिए महिलाओं को लगवाना चाहिए वैक्सीन

पद्मश्री डॉक्टर लीला जोशी ने बालिकाओं में हीमोग्लोबिन की कमी पर व्यक्त की चिंता

सभी गायनेकोलॉजिस्ट का कहना – बदलनी होगी अपनी राय, जेठानी को जैसा हुआ वैसा देवरानी को हो, यह जरूरी नहीं

हरमुद्दा
रतलाम, 30 जून। महिलाएं चाहे शहरी हो या ग्रामीण हो। उनके लिए बच्चेदानी जरूरी है। उसे निकालने की नादानी कतई नहीं करनी चाहिए। यदि ऐसा करते हैं तो अन्य कई जटिल रोगों का जन्म हो जाता है। महिलाओं को अपनी सेहत का विशेष रूप से ध्यान रखते हुए वैक्सीन भी लगवानी चाहिए। ऐसा करने से सर्वाइकल कैंसर की संभावना भी खत्म हो जाती है। यदि कोई सर्जन डॉक्टर बच्चादानी निकालने के लिए कहता है तो गायनेकोलॉजिस्ट से संपर्क करें। बच्चेदानी की समस्याओं को बिना सर्जरी के दवाई के माध्यम से पूर्ण तरह ठीक किया जा सकता है। चिंता की बात यह है कि भारत में बच्चेदानी निकालने की संख्या में काफी वृद्धि हो रही है।

यह बात फेडरेशन ऑफ़ गायनेकोलॉजिस्ट सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के सिलीगुड़ी से डॉक्टर प्रियंकुर राय ने पत्रकारों से चर्चा में कहीं। फेडरेशन ऑफ़ गायनेकोलॉजिस्ट सोसाइटी ऑफ़ इंडिया, इंटीग्रेट हेल्थ एंड वेलबिंग तथा रतलाम आब्स्टेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजिस्ट सोसायटी के संयुक्त प्रयास से गर्भाशय संरक्षण कैंपेन चलाया जा रहा है। इसी के तहत रविवार को कार्यशाला का आयोजन किया गया था।

यह थे मौजूद

पत्रकार वार्ता के दौरान पद्मश्री डॉक्टर लीला जोशी, उज्जैन की डॉक्टर जया मिश्रा, रतलाम आब्स्टेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजिस्ट सोसायटी की अध्यक्ष डॉक्टर सुनीता वाधवानी, सचिव डॉक्टर अदिति राठौर, डॉक्टर आशा सराफ, डॉक्टर अनामिका अवस्थी, डॉक्टर मितेश पुरोहित, डॉक्टर डॉली मेहरा मौजूद थी।

कैंसर को कर सकती है महिलाएं अवॉइड वैक्सीन लगवाकर

डॉ. रॉय

डॉ. रॉय  ने कहा कि सर्वाइकल, ब्रेस्ट सहित 14 प्रकार के कैंसर को वैक्सीन लगाकर अवॉयड कर सकते हैं। यह 9 से 15 साल की बालिकाओं और 15 से 45 तक के महिलाओं को लगाई जा सकती है। बाजार में यह वैक्सीन 1000, 3000, 10000 रुपए में उपलब्ध है इस वैक्सीन के कोई साइड इफेक्ट नहीं है। पहले वैक्सीन लगाने के पश्चात दो माह तथा तीसरी वैक्सीन उसके 4 माह बाद लगानी चाहिए। देश में विगत डेढ़ दशक से इस वैक्सीन का उपयोग हो रहा है। सरकारी अस्पतालों में 2025 में उपलब्ध होगा।

बच्चेदानी को लेकर महिलाओं में अवेयरनेस नहीं

पद्मश्री डॉक्टर जोशी

पद्मश्री डॉ. लीला जोशी ने कहा कि बच्चेदानी को लेकर महिलाओं में अवेयरनेस नहीं है। परेशानी वाली बात यही है कि बच्चेदानी की सर्जरी की संख्या काफी बढ़ गई है। यह ठीक नहीं है। खासकर गांव की महिलाओं में तो यह मांग हो गई। जरा सा कुछ होता है तो वह यही रट पकड़ लेती है की बच्चेदानी निकाल दो। सभी समस्याओं की जड़ खत्म हो जाएगी, मगर ऐसा नहीं है। बच्चेदानी निकालने के पश्चात अन्य कई प्रकार की मुसीबतें उनको घेर लेती है। बालिकाओं को हीमोग्लोबिन के बारे में भी सोचना चाहिए। उन्हें समय पर दवाई लेनी चाहिए ताकि आगे दिक्कत ना हो। इस मामले में गांव की आंगनवाड़ी की आशा और उषा कार्यकर्ताओं को भी सजग रहकर उन्हें सही सलाह देना चाहिए ताकि बच्चेदानी की सर्जरी को रोका जा सके।

बच्चेदानी निकालने से महिलाओं के मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर होता है विपरीत असर

डॉ. वाधवानी

डॉ. वाधवानी ने कहा कि गर्भाशय महिलाओं का सबसे जरूरी प्रजनन अंग होता है जिसे किसी बीमारियों की वजह से निकाला जाता है और इस ऑपरेशन को हिस्टोरेक्टोमी (Hysterectomy) कहते हैं। इसमें फैलोपियन ट्यूब, ओवरी, सर्विक्स तथा अन्य प्रजनन अंग का भी निकालना शामिल है। समय के साथ भारत में कम उम्र की महिलाओं में भी गर्भाशय निकालने के मामलों में वृद्धि देखी गई है। गर्भाशय निकालने से महिलाओं में मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है।

हार्ट अटैक तक की संभावना बढ़ जाती है बिना बच्चेदानी वाली महिलाओं में

डॉ. मिश्रा

डॉ. जया मिश्रा ने कहा कि बच्चेदानी निकालने से महिलाओं को कई प्रकार के अन्य रोग हो जाते हैं जिसमें हारमोंस का इन बैलेंस होना। हड्डी का कमजोर होना तो है ही। इसके साथ ही बच्चेदानी निकालने के पश्चात ऐसी महिलाओं में हार्ट अटैक की संभावनाएं काफी बढ़ जाती है। इसलिए बच्चेदानी की छोटी-मोटी बीमारियों का उपचार बिना सर्जरी के संभव है।

कई भ्रांतियां के चलते करती है महिलाएं ऐसा

डॉ. मेहरा

डॉ. डाली मेहरा ने कहा कि अधिकांश मामलों में यही होता आया है कि जब जेठानी जी का गर्भाशय 24 साल की उम्र में निकाल दिया गया था तो मेरी उम्र तो 34 साल की हो गई है। मेरा भी निकल सकता है या पड़ोसियों के कहने पर भी बच्चेदानी निकलवाई जाती है। या फिर अब तो बच्चे हो गए हैं। अब बच्चों की जरूरत नहीं है। इसके साथ ही पूजा करने या खाना बनाने में दिक्कत आती है तो बच्चेदानी निकलवा लेते हैं ताकि माहवारी की कोई दिक्कत ही ना हो और घर का कार्य प्रभावित न हो। अन्य भ्रांतियां के चलते भी महिलाएं ऐसा करती हैं, जो की उचित नहीं है। ज्यादा माहवारी होने की समस्या का निदान दवाई से संभव है।

सोच बदलो सेहत सुधारो

डॉ. अवस्थी

डॉ. अनामिका अवस्थी का कहना था कि महिलाएं चाहे शाह शायरी हो या ग्रामीण उनको अपनी सोच को बदलना होगा। मानसिकता बदलनी होगी। पुरानी सोच को बदलकर अपनी सेहत सुधारना जरूरी है क्योंकि बच्चेदानी निकालने के बाद ही कई सारे रोग बढ़ जाते हैं।

नियमों के खिलाफ है बच्चेदानी को निकलवाना

डॉ. पुरोहित

शासकीय चिकित्सालय से सेवानिवृत डॉ. मितेश पुरोहित का कहना है कि वैसे शासकीय नियमों के तहत बच्चेदानी नहीं निकलना चाहिए मगर जानकारी के अभाव में ऐसा धड़ल्ले से हो रहा है जो की उचित नहीं है। इस मामले में गायनेकोलॉजिस्ट और सर्जन को समझाना चाहिए कि वह बच्चेदानी निकलवाने की जीत ना करें। कई मामलों में तो महिलाओं के पति ही सामने आते हैं और डॉक्टर से कहते हैं की बच्चेदानी निकाल दो उसमें सम्बन्धित महिला तक की राय नहीं ली जाती है कि उसे क्या करवाना है और क्यों करवाना है जबकि यह ठीक नहीं है। दवाई से भी उपचार संभव है।

अतिथियों का सम्मान कर भेंट किए स्मृति चिह्न

डॉ. रॉय द्वारा गर्भाशय के संरक्षण तथा गर्भाशय निष्कासन (Hysterectomy) को कैसे सही जानकारी तथा सही चिकित्सीय सलाह से रोका जा सकता, इस पर व्याख्यान दिया। कार्यशाला में गर्भाशय निष्कासन (Hysterectomy) के बढ़ते हुए ऑपरेशन दर तथा उससे होने वाले दुष्प्रभाव जैसे कम उम्र में ओस्टियोपोरोसिस, मेनोपॉज इत्यादि के बारे में जानकारी सांझा की। डॉक्टर मिश्रा ने कार्यशाला में भी प्रोजेक्टर के माध्यम से व्याख्यान को समझाया। कार्यशाला में आए अतिथियों का सम्मान पर स्मृति चिह्न भेंट किए गए। संचालन सचिव डॉक्टर अदिति राठौर ने किया।

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