वेब पोर्टल हरमुद्दा डॉट कॉम में समाचार भेजने के लिए हमें harmudda@gmail.com पर ईमेल करे खरी खरी : प्रधानमंत्री जी, मुख्यमंत्री जी… चर्चा तो है पेड़ों के कब्रिस्तान से वितरित हुए पौधे, वह भी शहर से दूर… आखिर क्या चाहते हैं जिम्मेदार -

खरी खरी : प्रधानमंत्री जी, मुख्यमंत्री जी… चर्चा तो है पेड़ों के कब्रिस्तान से वितरित हुए पौधे, वह भी शहर से दूर… आखिर क्या चाहते हैं जिम्मेदार

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🟥 हेमंत भट्ट

पर्यावरण सुधार और पौधारोपण के उद्देश्य को लेकर देश और प्रदेश सरकार ने पौधा वितरण कार्यक्रम शुरू किया है, जिसे रविवार को रतलाम में भी अमली जामा पहनाया गया, मगर पौधों का वितरण उस स्थान से किया गया, जहां पर पेड़ों का कब्रिस्तान बना हुआ था। यानी कि उन्होंने साफ-साफ संकेत तो दे दिए हैं कि आप कितनी भी मेहनत करोगे, हम इसी तरह आपके पौधे को वृक्ष बनने के बाद काटकर ऐसे ही यहां पर फेंक देंगे। प्रधानमंत्री जी और मुख्यमंत्री जी, आप तो मेहनत कर रहे हैं लेकिन आपकी पार्टी के मंत्री और पदाधिकारी ही योजनाओं की धज्जियां उड़ाने पर तुले हुए हैं।

कटे हुए पेड़ का कब्रिस्तान
वितरण के लिए रखे हुए पौधे

विधायक से कैबिनेट मंत्री का सफर तो तय कर लिया लेकिन शहर के प्रति जिम्मेदारी के मामले में देखा जाए तो कुछ भी नहीं है। लगता है किसी भी आयोजन को लेकर कोई दूर दृष्टि और सोच समझ शहर के जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों में नहीं बची है। चाहे महापौर हो, निगम अध्यक्ष हो, पार्षद हो, पार्टी के जिला अधिकारी हो, सबको झांकी, झांकी और झांकी बनाने से फुर्सत नहीं है। इनका एक ही मकसद है आयोजन कर लो। उसके फोटो खिंचवा लो। टेंट और माइक वाले जो अपने हैं, उनको खजाने से राशि लूटा दो और अपना कमीशन ले लो। बस यही तक उनका कार्य रहता है। इसके बाद उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं होती। सब के सब सिर्फ उसकी खानापूर्ति में ही लगे हुए हैं। उनको कोई फिक्र नहीं है आने वाली पीढ़ी की।

शायद पर्यावरण प्रेमियों की परीक्षा

रविवार को शहर से दूर त्रिवेणी मेला प्रांगण के पास मानस भवन के बाहर पौधा वितरण कार्यक्रम किया गया। वैसे तो आयोजन का समय 11 बजे दे रखा था। पर्यावरण के प्रति चिंता रखने वाली कई सारी संस्थाएं और लोग सही समय पर आयोजन स्थल पर पहुंच गए थे। करीब 1 घंटे तक इंतजार के बाद भी मंच को गरिमा देने वाले अतिथि नदारत ही थे। उमस भरे माहौल में पौधा लेने के लिए शहर से दूर स्थान पर आए लोगों का यही कहना था कि आखिर इतनी दूर पौधा वितरण का स्थल क्यों रखा गया ? क्या नेहरू स्टेडियम के आस-पास ऐसा आयोजन नहीं हो सकता था। लगता है पर्यावरण प्रेमियों की परीक्षा ली गई है कि पौधे लेने के लिए लोग इतनी दूर आएंगे या नहीं। और आने वालों ने जब यहां कटे हुए पेड़ों के ढेर का नजारा देखा तो यह आपस में यही चर्चा करते हुए नजर आए कि आखिर यह सब क्या है?

नन्हे बालक के सब्र का इम्तिहान

पौधा लेने आया करीब 5 वर्ष का बालक पौधा हाथ में लेने की जिज्ञासा में था। कभी टेबल के पास जा रहा था फिर मां के पास आ रहा था। ऐसा करते हुए उसे 45 मिनट हो गए। फिर कुर्सी से खेलने लगा मां ने उसे डांट पिलाई चुपचाप बैठ जा वरना पौधा नहीं मिलेगा। बच्चा चुप हुआ और फिर से कहने लगा आखिर कब मिलेगा पौधा? वह रविवार को खेलने की बजाय पौधा रोपण के लिए पौधा लेने आया, मगर उसे इतना इंतजार करना पड़ेगा। सब्र का इम्तिहान देना पड़ेगा। उसने सोचा नहीं था। इधर उसकी मां भी परेशान की बार-बार कह रही थी यहां से पौधे मिले तो घर जाकर खाना बनाएं। पौधे लेकर घर जाने में ढाई बज गई।

खामोश रहकर जीत रहे थे कटे हुए हजारों पेड़

पौधा लेने की आस में वहां घूमने वाले चर्चारत थे कि आयोजन स्थल भी ऐसा चुना, जहां पर पहले से ही पेड़ों का कब्रिस्तान बना हुआ है यानी कि समझदार को इशारा काफी है। जिस स्थान पर पौधा वितरण करना था, वहीं पर हजारों की संख्या में कटे हुए पेड़ पड़े हुए थे जो कि खामोश होकर चीख रहे थे कि आप पर्यावरण के प्रति कितनी भी मेहनत कर लो, पौधे लगा लो, उन्हें बड़ा कर लो, पेड़ बना दो, मगर असली जगह तो पुन: यहीं पर है।

कटे हुए पेड़ मौन थे, सोच रहे थे आखिर वे कौन थे

छोटे-छोटे तने वाले से लेकर मोटे मोटे तनों वाले कटे हुए पेड़ अपनी बर्बादी पर मौन थे कि आखिर कौन थे जिन्हें हम अच्छे नहीं लगे। हमारा अस्तित्व, हमारा वजूद नेस्तनाबूत कर दिया। और उसके बाद भी हमारी उपयोगिता किसी को जलाने के काबिल भी नहीं समझी। यानी कि हम चिता की लकड़ी बनने के काबिल भी नहीं रहे।

दिखावा, दिखावा और केवल दिखावा

कटे हुए पेड़ की पीड़ा कोई नहीं समझ पा रहा है कि आखिर उन्हें किस बात की सजा मिल रही है जबकि सजा तो उन्हें मिलनी चाहिए जिन्होंने अपने दिलों को पत्थर बना दिया है। उन पर आरी चलाई है। उनमें शहर के प्रति वफादारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी कुछ भी नहीं बची है। बस दिखावा, दिखावा और दिखावा ही है। सहृदयता तो बिल्कुल भी नहीं है।

जिक्र करो, फिक्र करो, बस काम मत करो

लगता है जिम्मेदारों को केवल एक ही मंत्र याद है “काम मत कर, मत कर, मत कर। काम का फिक्र कर, फिक्र कर, फिक्र कर और फिक्र का जिक्र कर, जिक्र कर, जिक्र कर। बस काम मत कर, मत कर, मत कर।

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