समसामयिक : नए एक्सटेंशन वाली दिशा में आगे बढ़ते मोहन यादव

भाजपा की सरकारें असरकारी तरीके से यह जता चुकी थीं कि वे इस दिशा में अपने किए और कहे के बीच अधिक अंतर की गुंजाइश नहीं रखती हैं। अब यही काम डा. मोहन यादव कर रहे हैं और उसके चलते ही यह कहा जा सकता है कि वह अपनी पार्टी की नीति को एक सिरे से पकड़कर उसे नए सिरे से उल्लेखनीय रूप देने की दिशा में आगे बढ़ चले हैं।

प्रकाश भटनागर

किसी अच्छे काम को आगे ले जाना समझदारी है। वैसे भी मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री भले ही बदले हों लेकिन सरकार में वहीं राजनीतिक दल है जिसकी प्रदेश में जड़े बहुत गहरी जम चुकी हंै। इसलिए ऐसे में किसी काम को सिरा पकड़कर सिरे से नया तथा उल्लेखनीय रूप देना उस समझदारी में चार चांद लगाने जैसा है। मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार ने हाल ही में इस तरह की नीति और नीयत, दोनों का एक बार फिर ठोस तरीके से परिचय दिया है।

प्रदेश में उज्ज्वला योजना का लाभ पा रही 46 लाख लाड़ली बहनों को गैस सिलेंडर पर सब्सिडी जारी रखी जा रही है। इस साल अगस्त में तो सभी लाड़ली बहनों को राखी के उपहार के तौर पर ढाई सौ रूपए के शगुन का लाभ भी बरकरार रखा गया है। इस बात में कोई संशय नहीं कि डा. यादव के पूर्ववर्ती शिवराज सिंह चौहान ने अपने समय में ‘ महिला कल्याण से संभावनाओं के निर्माण’ वाला अद्भुत फामूर्ला लागू कर जबरदस्त तरीके से भाजपा को सियासी लाभ दिलाया था। चौहान ने लाड़ली लक्ष्मी से लेकर लाड़ली बहना योजना तक के सफर में अनेक ऐसे पड़ाव स्थापित किए, जिनसे भाजपा को तगड़ा राजनीतिक माइलेज मिला।

यही वजह रही कि जब राज्य में डा. मोहन यादव मुख्यमंत्री बने, तब मुख्य विपक्ष कांग्रेस ने सरकार पर यह कहकर ताबड़तोड़ प्रहार किए कि लाड़ली बहना योजना अब बंद की जा रही है। जाहिर है कि कांग्रेस भी इस बात को भांप चुकी थी कि यदि लोकसभा चुनाव में प्रदेश में भाजपा को कमजोर करना है, तो उसके महिलाओं से जुड़े कार्यक्रमों और लगभग भाजपा का वोट बैंक बन चुकी महिलाओं के लाभ की योजनाओं को ही टारगेट करना होगा। इस दल ने विधानसभा चुनाव से पहले भी महिलाओं को सम्मान निधि और सस्ते सिलेंडर देने की बात कहकर शिवराज की योजनाओं को काउंटर करने का प्रयास किया था। कांग्रेस दोनों ही अवसरों पर असफल रही। खासतौर से लोकसभा चुनाव में ऐसा होने की प्रमुख वजह यह कि डा. मोहन यादव ने इस दिशा में टस से मस हुए बगैर ‘जस की तस धर दीनी चदरिया’ से भी एक कदम आगे जाकर शिवराज के कार्यक्रमों को गति और प्रगति प्रदान की।

लाड़ली बहना योजना तो बदस्तूर जारी है, डा. मोहन यादव ने शुरू में बताए गए और भी महिला-हितैषी निर्णयों के माध्यम से इस दिशा में नए काम शुरू कर दिए हैं। यह एक तरह से वह एक्सटेंशन भी है, जो किसी ‘चले आ रहे’ को ‘चलते ही जाना है’ वाला नवाचार भी प्रदान करता है। इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं। जब सरकार यह बात लागू करती है कि वह गर्भवती महिलाओं को मुफ्त सोनोग्राफी जांच की सुविधा देगी, तो यह शिवराज की जननी सुरक्षा योजना का एक ठोस तथा निर्णायक एक्सटेंशन ही कहा जाएगा।

मामला निश्चित ही सियासी मुनाफे वाला है। वर्ष 2003 में उमा भारती ने प्रदेश के घरों के भीतर तक जाकर राजनीतिक मुद्दों को हवा दी। घरों में बिजली की कमी और सड़कों पर गड्ढों के ऐसे विषय प्रमुखता से उठाए, जो सीधे परिवार से जुड़ी समस्याओं को छूते हैं। दिग्विजय सिंह चुनावी मैनेजमेंट की थ्योरी में मगन रहे और उमा ने अपने ऐसे मुद्दों के जरिए ‘कहानी घर-घर की’ वाली शैली में प्रदेश की जनता के दर्द को सीधे भुना लिया। फिर शिवराज। उन्होंने घर में भी महिलाओं की शक्ति पर खास फोकस किया। नतीजा सामने है। अब डा. मोहन यादव भी इस दिशा में न सिर्फ आगे बढ़ चुके हैं, बल्कि वे नवाचार भी अपना रहे हैं। अब भले ही इसके जरिए महिला वोटरों को भाजपा से जोड़े रखने की रणनीति पर अमल किया जा रहा हो, लेकिन तुष्टिकरण और जात-पात की राजनीति से बहुत अलग यह मामला औरों के मुकाबले ‘अधिक साफ-सुथरा’  कहा ही जा सकता है।

खास बात यह भी कि डा. यादव के आधी आबादी से जुड़े ऐसे फैसले एक पूरे विश्वास को भी आकर देते दिखते हैं। वह यह कि इन कदमों से यह सन्देश और संकेत भी जाता है कि सरकार लाड़ली बहना योजना की राशि को तीन हजार रुपए प्रतिमाह करने की दिशा में भी आगे बढ़ सकती है। आखिर मामला स्त्री शक्ति को और शक्ति देकर खुद के लिए सियासी शक्ति के संचय में वृद्धि करने की कोशिश का जो ठहरा। शिवराज से लेकर डा. मोहन यादव तक को देखते हुए इस दिशा में एक और बात  कही जा सकती है। वह यह कि आखिरकार काम बोलता है।

उत्तरप्रदेश के बीते विधानसभा चुनाव में प्रियंका वाड्रा ने उत्तरप्रदेश में ‘ लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ का नारा दिया। मध्यप्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में इस पार्टी की ऐसे कोशिशों का पहले ही जिक्र किया जा चुका है। लेकिन दोनों ही राज्यों में भाजपा ने कांग्रेस के पंजे से यह मुद्दे छीन लिए। दोनों ही जगह कांग्रेस की इन कोशिशों से पहले भाजपा की सरकारें असरकारी तरीके से यह जता चुकी थीं कि वे इस दिशा में अपने किए और कहे के बीच अधिक अंतर की गुंजाइश नहीं रखती हैं। अब यही काम डा. मोहन यादव कर रहे हैं और उसके चलते ही यह कहा जा सकता है कि वह अपनी पार्टी की नीति को एक सिरे से पकड़कर उसे नए सिरे से उल्लेखनीय रूप देने की दिशा में आगे बढ़ चले हैं।               

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *