खरी खरी : कुछ तो शर्म करो जिम्मेदार, कुत्ते ने ले ली आत्मनिर्भर की जान, आखिर कब तक मां खोएगी अपने लाल?, नगर निगम की नाकामी से अर्पित हो गया बाजना का बाबू, ऐसे अधर्मी संचालक के स्कूल में नौनिहाल, फिर भी यातायात बदहाल
हेमंत भट्ट
लगता है शहर के जिम्मेदारों को आम जनता से कोई सरोकार नहीं है। न कोई उनमें शर्म बची है। ना वफादारी और न ही इमानदारी। मवेशी बाजार में घूम रहे हैं। कुत्तों की टोलियां जानलेवा हमला कर रही है। मां अपने लाल को खो रही है। ना तो सड़क पर आमजन सुरक्षित हैं और न ही स्कूल में बच्चियों की अस्मत। एक दिन, एक सड़क यातायात सुधार के बावजूद उस मार्ग की यातायात व्यवस्था फिर भी बदहाल है। पुलिस प्रशासन के जिम्मेदार और नगर निगम केवल नौटंकी करने के सिवाय कुछ नहीं कर रहे हैं। खबर छप गई। प्रमोशन मिल जाते हैं। इंक्रीमेंट बढ़ जाता है।
नगर निगम की नाकामी के चलते सांड के हमले से घायल सितंबर की 25 तारीख को जहां बुजुर्ग मां-बाप ने अपने बेटे को खोया, वही अक्टूबर के पहले सप्ताह में बाजना का बाबू अर्पित हो गया। वेदव्यास कॉलोनी के निजी अस्पताल में बाबू के पिता विजय का उपचार चल रहा था। 29 सितंबर की रात को जब पिता के लिए वह दूध लेने के लिए बाइक से निकल रहा था, तभी वेदव्यास कॉलोनी के मुहाने पर कुत्तों ने हमला किया, जिनसे बचने में बाबू गिरा। आसपास के लोगों ने तत्काल उसे अस्पताल भिजवाया और उपचार शुरू हुआ। परिजन इस बात से अनभिज्ञ थे। अस्पताल में पिता और परिजन इंतजार कर रहे थे कि बाबू दूध लेकर आएगा लेकिन काफी समय हो गया। तब जो अस्पताल ले गए थे उन्हीं ने सूचना दी कि आपके परिजन का एक्सीडेंट हो गया और जिला अस्पताल में है। सर में चोट लगने के कारण बाबू को इंदौर रेफर कर दिया गया। जिंदगी और मौत के बीच लड़ते हुए आखिरकार 6 अक्टूबर को 26 वर्षीय बाबू ने दम तोड़ दिया। आदिवासी अंचल के बाजना में बाबू एक होनहार आत्मनिर्भर व्यवसायी था। पूरे क्षेत्र में, गांव-गांव में बाबू अपनी कार्यशैली, व्यवहार और मददगार के तौर पर प्रसिद्ध था। बाबू के पिता रिटायर्ड शिक्षक हैं। घर में सबसे लाडला बाबू ही था। बाबू की मां मनोरमा की आंखों के आंसू अभी भी नहीं थम रहे हैं। कई बार अनंत में खोई रहती है।
यक्ष प्रश्न यही है कि आखिर कब तक नगर निगम की नाकामी की बली आम जन चढ़ते रहेंगे। कभी सांड का हमला, कभी कुत्तों का हमला, कभी वाहनों से हमला, पुलिस का हमला। वेदव्यास कॉलोनी में तो कुत्तों की टोलियां जब देखो, तब आक्रामक मुड़ में ही रहती है। आखिर अव्यवस्था की भेंट में आमजन कब तक चढ़ता रहेगा? जिम्मेदार तनख्वाह और भ्रष्टाचार का रुपया लेकर मक्कारी कब तक करते रहेंगे? लगता है इन पर अंकुश लगाने वाला कोई मां का लाल सरकारी महकमें में पैदा नहीं हुआ है। कहने को तो इंसान है मगर सब के सब छुट्टे सांड की तरह बने हुए हैं। अपनी जिम्मेदारी का कोई एहसास नहीं है। इन सब की आत्मा मर गई है। जनप्रतिनिधियों की चुप्पी भी कई सवालों को जन्म देती है। फील्ड वाले ऑफिस में मजे मार रहे हैं।
पूरी हुई जांच जिम्मेदार पर नहीं कोई आंच
शहर के नामी साईं श्री एकेडमी में मासूम के साथ जो हरकत हुई, वह कभी भी माफी योग्य नहीं है। फिर भी ऐसे अधर्मी स्कूल संचालक पर कोई असर नहीं होता है क्योंकि कई परिजन दबी जबान में कह रहे हैं कि हमारे बच्चे के साथ भी ऐसा हुआ है मगर सामाजिक व्यवस्थाओं के डर से हमने अपना मुंह नहीं खोला। बस यही कारण है कि अधर्मी स्कूल संचालक बच्चों के मामले में हो रही गंदी हरकत के बावजूद सीना ताने घूमता रहा।
मर गया जमीर, खत्म हो गई इंसानियत
लगता है पैसे की भूख में जमीर मर चुका है। इंसानियत खत्म हो गई है। ऐसे लोग तो चुल्लू भर पानी में भी डूब मरने के लायक नहीं है। अभी भी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता का यही मानना है कि ऐसे स्कूल से निकलवाना ही बेहतर होगा, मगर बीच सत्र में कौन से स्कूल में जाएं, यही संशय है। अव्वल बात तो यह कि वहां पर जो शिक्षक शिक्षिकाएं कार्य कर रहे थे, क्या उनकी आत्मा उन्हें नहीं कचोट रही है कि ऐसी संस्थाओं में उनको कार्य करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। जमीर गवारा नहीं करता है फिर भी बेरोजगारी के दौर में रोजगार छोड़ना उनके लिए नामुमकिन है।
शासन को करना चाहिए स्कूल राजसात
शहर के बुद्धिजीवियों का यह मानना है कि कोर्ट के आदेश के बाद बुलडोजर नहीं चलाना है, मगर ऐसे स्कूलों को तो शासन द्वारा राजसात कर लिया जाना चाहिए और अपने प्रबंधन के हिसाब से स्कूल का संचालन करवाना चाहिए। तभी समाज के ऐसे भेड़ियों को सबक मिलेगा। धन कमाने की दौड़ में वह मासूम के साथ गंदी हरकत नहीं होगी। मगर दिक्कत तो यह है कि जांच की आंच का कोई असर नहीं। कुछ खाना पूर्ति करने के बाद फिर स्कूल में धतिंग बाजी शुरू होगी।
पुलिस महकमें और यातायात अमले की सबसे बड़ी नाकामी
गणेश प्रतिमा स्थापना में हुए बवाल के बाद रतलाम आए नए पुलिस अधीक्षक ने पिछले एक बखवाड़े से शहर में सड़कों की यातायात व्यवस्था सुधारने का मुद्दा उठाया है मगर वह केवल नौटंकी ही साबित हो रहा है क्योंकि पूरा यातायात अमला शहर की यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करने में नाकाम साबित हो रहा है। भले ही एक दिन एक सड़क यातायात सुधार का अभियान पुलिस अधीक्षक द्वारा चलाया जा रहा है मगर उनके जाने के बाद ही यातायात की बदहाल व्यवस्था साफ नजर आती है। लेकिन आम जनता के लिए यह कुछ भी अच्छा नहीं है। वह हर घंटे हर मिनट जाम में फंस रहा है। खासकर जाम की स्थिति पैदा करने वाले ऑटो रिक्शा और मैजिक वाले ही हैं जो कि यातायात को बद से बदतर बनाने पर दृढ़ संकल्पित है। इन पर कार्रवाई नहीं होना ही पुलिस महकमें और यातायात अमले की सबसे बड़ी नाकामी है।
बस नौटंकी के सिवा कुछ नहीं
जिन मार्ग पर एक ऑटो रिक्शा तक नहीं आसानी से निकल सकता है, उन मार्गों पर बेधड़क बड़ी-बड़ी बसे स्कूली बच्चों को लेकर फंस रही है। अतिक्रमण पर तो बिल्कुल भी आंच नहीं आई है। सड़कों पर अभी भी फ्लेक्स और सामान पड़े हुए हैं। सड़कों पर चलना दूभर है। बस नौटंकी के सिवा कुछ नहीं हो रहा है। यह बात जरूर है कि नौटंकी की खबर छप गई और ऊपर पहुंच गई कि पुलिस अधीक्षक अच्छा काम कर रहे हैं। मिल जाएगा प्रमोशन, बढ़ जाएगा इंक्रीमेंट, उनका और उनके जैसे अन्य कर्मचारियों का।