साहित्य सरोकार : दीपोत्सव की बेला में, चौबारे अपने सजा कर, गरीब का आला न भूल जाना”
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दीपोत्सव की बेला में,
फर्ज भूल न जाना कहीं।
चौबारे अपने सजा कर,
गरीब का आला न भूल
जाना।
एक दीप श्रद्धा-भक्ति का,
एक दीप सुसंस्कृति का
।है समर्पण सनातन का,
श्री चरणों में विश्वास का।
रीति-नीति के माँडणे हों,
हो त्योहारों की रंगोली।
विधि-विधान के दीपक हों,
हो नैतिकता की बाती
दीपोत्सव के उल्लास में,
मानवता बरकरार रहे।
उदासियों के अँधेरे,किसी
गली में न रह जाए कहीं ।
नशे, जुए, धुएँ में पैसे
उड़ाने से पहले, बेबस की
आह भी सुन लेना।
झूठन हजारों की फेंकने
से बेहतर,भूखो को रोटी दे आना।
एक दीप विश्वास का,
शहीदों की मजार पर।
दीप आस्था का जलाना,
निर्बल की आस पर।
भूल न जाना ज्ञान का
मंदिर, जहाँ जीवन रौशन
किया।पंच-दिवस जरूर,
दीप वहाँ जला आना।
⚫ डॉ. नीलम कौर