मुद्दे की बात : “जेसीबी साहित्य पुरस्कार” के खिलाफ देश-विदेश के लेखक, अनुवादक  लामबंद

(21 नवंबर 2024 को जारी किए गए मूल अंग्रेजी वक्तव्य का असद जैदी व्दारा किया गया त्वरित हिंदी अनुवाद)

नरेंद्र गौड़

हम, निम्नलिखित हस्ताक्षरकर्ता, जेसीबी साहित्य पुरस्कार के गहरे पाखंड को उजागर करने के लिए स्वयं को बाध्य महसूस करते हैं। इस कंपनी ने भारत और फिलिस्तीन में लोगों के घरों और आजीविका के साधनों के भयानक विनाश में प्रमुख भूमिका निभाई है। हम इस पुरस्कार की आड़ में इस कंपनी की राज्य प्रायोजित हिंसा में सक्रिय हिस्सेदारी को छिपाने और लीपापोती करने की कोशिशों की घोर निंदा करते हैं।


जेसीबी (इंडिया) ब्रिटिश निर्माण उपकरण निर्माता जेसीबी की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है, जो ब्रिटिश कंजर्वेटिव पार्टी के सबसे प्रभावशाली आर्थिक मददगारों में से एक रही है। भारत में अति-दक्षिणपंथी हिंदू वर्चस्ववादी परियोजनाओं में जेसीबी उपकरणों का उपयोग इस संदर्भ में कोई आश्चर्य की बात नहीं है। कई वर्षों से हिंदूवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार ने विभिन्न भारतीय राज्यों में मुस्लिम घरों, दुकानों और प्रार्थना स्थलों को ध्वस्त करने के लिए एक व्यवस्थित अभियान में लगातार जेसीबी बुलडोजर का इस्तेमाल किया है। इस बदनाम परियोजना को  ’बुलडोजर न्याय’ कहा जाता है। यही बुलडोजर और बैकहो लोडर अवैध कब्जे वाले फिलिस्तीन में घरों को ध्वस्त करने और सैटललर बस्तियों के विस्तार के लिए भी जिम्मेदार हैं। जेसीबी के एजेंट और इजराइल के रक्षा मंत्रालय के बीच इस आशय का एक अनुबंध  है। इसकी फिलिस्तीनियों के जातीय सफाए के लिए इजराइल के निरंतर प्रयासों में एक महत्वपूर्ण भूमिका है। आश्चर्य की बात नहीं है कि जेसीबी कंपनी कब्जे और विस्थापन के लिए कश्मीर में भी अपना समर्थन देती है, जहां इसके उपकरण कश्मीरी घरों को ध्वस्त करने के लिए तैनात किए जाते हैं।

जेसीबी वेबसाइट के अनुसार, साहित्य के लिए ’जेसीबी पुरस्कार’ का उद्देश्य ’भारतीय लेखन का जश्न मनाना’ है। इसने भारतीय सामाजिक और बौद्धिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से एक निर्मायकों का समूह चुन रखा है। विविधता की यह वकालत एक ऐसी पाखंडी कंपनी की ओर से है, जो गरीब और हाशिए पर पड़े इतने सारे भारतीयों के जीवन को उजाड़ने के लिए जिम्मेदार है। इस उत्पीड़न के शिकार मुख्यतः मुस्लिम, दलित और दूसरे बेसहारा लोग हैं। कश्मीर और फिलिस्तीन का तो जिक्र ही क्या!


जेसीबी पुरस्कार की वेबसाइट पर कंपनी की देश के सामाजिक और आर्थिक जीवन में लंबे समय से भागीदारी का भी उल्लेख किया गया है। हालांकि, यह भागीदारी वास्तव में बेहद विनाशकारी रही है। अप्रैल और जून 2022 के बीच, एमनेस्टी इंटरनेशनल के शोधकर्ताओं ने पाया कि पांच भाजपा शासित राज्यों- असम, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश और आम आदमी पार्टी (आप) शासित दिल्ली में अधिकारियों ने सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं या मुसलमानों के खिलाफ अधिकारियों द्वारा भेदभाव के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के बाद प्रतिशोधात्मक ’सजा’ के तौर पर ध्वंस किया। (दिल्ली में, भाजपा केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा तोड़फोड़ की गई।) 128 दस्तावेजीकृत तोड़फोड़ों में से, जेसीबी के उपकरणों के बार-बार उपयोग के कम से कम 33 मामलों की पुष्टि की गई।


जेसीबी पुरस्कार वेबसाइट ‘सांस्कृतिक विरासत’ के संरक्षण और विश्व मंच पर भारतीय लेखकों को मान्यता और शोहरत दिलाने का दावा करती है। लेकिन, वैश्विक स्तर पर मानव जीवन के विनाश के लिए जिम्मेदार एक कंपनी द्वारा दिये गये पुरस्कार किसी देश के साहित्य का सार्थक उत्सव नहीं हो सकते। यही तबाही और विनाश भारत और उसके बाहर जेसीबी की सच्ची विरासत है।


हम जेसीबी के इस पाखंड की निंदा करते हैं, जहां एक ओर हाशिए पर पड़े, वैविध्यपूर्ण लेकिन अल्पज्ञात लेखकों के लिए साहित्य पुरस्कार जारी करने की बात की जाती है, जबकि उसी समय में यह प्रतिष्ठान ‘दंडस्वरूप’ इतने सारे लोगों के जीवन और आजीविका को नष्ट करने में भागीदार बना हुआ है। बुलडोजर विध्वंस के माध्यम से, जेसीबी हाशिए पर पड़े उन्हीं समुदायों को दंडित कर रहा है, जिन्हें वह साहित्य पुरस्कार के माध्यम से पुरस्कृत करने और ऊपर उठाने का दावा करता है। हम लेखक, साहित्यिक समुदाय के समर्थन के ऐसे कपटपूर्ण दावों के साथ नहीं हैं। यह पुरस्कार जेसीबी के हाथों पर लगे खून को नहीं धो सकता। इस देश के उदीयमान लेखक इससे बेहतर के हकदार हैं।

(मालूम हो कि इस विरोध पत्र पर देश विदेश के हजारों लेखकों, अनुवादकों और बुध्दिजीवियों के हस्ताक्षर है। जिन्हें असद जैदी की फेसबुक वॉल पर देखा जा सकता है।)

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