शख्सियत : एंड्रायड फोन के जरिये, ज्ञान विज्ञान ही नहीं, साहित्य की दुनिया भी अब मुठ्ठी में हो चुकी क़ैद
⚫ नई कविता की सशक्त हस्ताक्षर वंदना रविंदर का कहना
⚫ नरेंद्र गौड़
’फेसबुक, वाट्स एप, मेसेंजर और यूट्यूब की दुनिया सिर्फ मनोरंजन का जरिया नहीं होकर ज्ञान प्राप्ति का बेहतरीन साधन भी है। यह आप पर निर्भर है कि इन संसाधनों का इस्तेमाल किस रूप में करते हैं। आज दुनिया के तमाम सवालों के जवाब गुगल के माध्यम से खोजे जा सकते हैं। वहीं यूट्यूब एक ऐसा जरिया है जिसके माध्यम से आपको लगेगा कि दुनिया मुट्टी में समा गई है। एंड्राइड फोन इक्कीसवीं सदी का नायाब अजूबा और चमत्कार भी है।’
यह बात नई कविता की सशक्त हस्ताक्षर वंदना रविंदर ने कही। इन्होंने कहा कि आज हर छोटे बड़े आदमी के पास एंड्रायड न सही, लेकिन बटन वाला सामान्य फोन जरूर मिल जाएगा। बस अखरने वाली बात यही है कि मोबाइल कम्पनियों ने डॉटा के रेट बहुत अधिक रखे हैं। सरकार को चाहिए कि कम से कम दाम पर डाटा उपलब्ध कराने की दिशा में आवश्यक कदम उठाये। वहीं मोबाइल के दाम भी जहां तक हो सके सस्ते से सस्ते होना चाहिए। सरकार ऐसी योजना ला सकती है जिसमें लोगों को किश्तों पर मोबाइल फोन बेचे जाएं। एक समय था जबकि साइकल और रेडियो खरीदने का सपना प्रत्येक मध्यवित्तीय आदमी देखता था, वहीं आज उसकी जगह मोबाइल फोन ले चुका है।
मार्टिन कूपर ने बनाया पहला मोबाइल
एक सवाल के जवाब में वंदना जी ने बताया कि मोटरोला कंपनी की अपनी टीम के साथ मार्टिन कूपर ने सन् 1973 में पहला मोबाइल फोन बनाया था, लेकिन उसका वजन दो किलोग्राम था। न्यूयार्क की सड़क पर जब खड़े होकर मार्टिन कूपर ने उसी फोन से पहली कॉल की थी, तो उन्हें यह अंदाजा नहीं था कि उनकी खोज कितनी भारी सफलता अर्जित करेगी। भारत में के जनक होने का श्रेय सैम पित्रोदा को जाता हैं, जो कि एक भारतीय इंजीनियर और उद्यमी हैं। उन्होंने मोबाइल फोन की शुरूआत सहित भारत में दूर संचार के क्षेत्र में विकास के जरिए क्रांति ला दी है।
कविता कोश में श्रेष्ठ रचनाएं
एक सवाल के जवाब में वंदना जी ने बताया कि भारतीय सेलुलर फोन का इतिहास लगभग ढ़ाई दशक पुराना है। पहली सेलुलर कॉल बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने 31 जुलाई 1995 को मोदी टेल्स्ट्रा नामक मोबाइल ब्रांड का उपयोग करके तत्कालीन केंद्रीय दूरसंचार मंत्री सुखराम को की थी। इसकी समस्त अवधारणा सेैम पित्रोदा की है। वंदना जी ने बताया कि ’कविता कोश’ एक ऐसा माध्यम है जिसके जरिये हम नये से नये और पुराने से पुराने साहित्यकारों की रचनाओं को पढ़ सकते हैं।
महंगी किताबें खरीदन की जरूरत नहीं
वंदना जी का कहना था कि आज आधुनिक कविता पढ़ने के लिए आपको महंगी किताबें पत्र-पत्रिकाएं खरीदने की जरूरत नहीं है, आप कविता कोश सर्च कीजिए और साहित्य आपकी आंखों के सामने होगा। यह आप रास्ते चलते या बस ट्रेन में सफर करते हुए भी पढ़ सकते हैं। इसी तरह अगर आप कवि, कथाकार, उपन्यासकार है और चाहते हैं कि आपकी रचना जनता तक पहुंचे, वहीं आर्थिक क्षमता नहीं भी है तो अपनी रचनाएं धीरे-धीरे फेसबुक के हवाले करते जाइए। आप अपना पाठक समुदाय बना सकते हैं।
मोबाइल के जरिये ठगी भी
वंदना जी का कहना था कि मोबाइल फोन के जरिये ऐसा नहीं कि सर्वत्र अच्छा ही अच्छा है। अब तो यह ठगी का भी माध्यम बन चुका है। इस गोरखधंधें में लोग करोड़ों रूपयों से हाथ धो बैठे हैं। आपके पास किसी अनजान आदमी का फोन आता है और वह बातों ही बातों मे आपका बैंक एकाउंट नम्बर तथा कोड पता कर लेता है। बाद में पता चलता कि आपके खाते में एक भी रूपया नहीं है।
कर चुकी नेट की परीक्षा उत्तीर्ण
वंदना जी का जन्म कानपुर में श्री सुशीलकुमार मोर्य और श्रीमती स्व. रामजानकी के यहां हुआ। इन दिनों आप कानपुर में ही रह रही हैं। इन्होंने इतिहास विषय लेकर एमए किया है, वहीं आप नेट की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर चुकी हैं। आप एक विद्यालय में शिक्षक हैं और छात्र-छात्राओं का ज्ञान किस प्रकार बढाया जाये, इस दिशा में अनेक प्रयोग करती रहती हैं। आपकी ‘स्त्री’ शीर्षक कविता अमर उजाला में प्रकाशित हुई जिसे पाठकों ने बहुत सराहा। इन्होंने कक्षा नौ में पढ़ते समय से ही साहित्य लेखन प्रारंभ कर दिया था। लेखन की प्रेरणा इन्हें अपने पिता से मिली। इनका कहना है कि पिताजी की लायब्रेरी में बहुत- सी किताबें हुआ करती थी, जिन्हें पढ़कर इन्होंने लिखना प्रारंभ किया। वहीं इनके घर उन दिनों 5-6 अखबार तथा पत्रिकाएं नियमित आया करते थे। आरंभिक भाषा ज्ञान इन्हें पढ़कर ही प्राप्त हुआ। वंदना जी की रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं।
चुनिंदा कविताएं
मन है तुम्हें भिगोने का
मन है तुम्हें भिंगोने का
भर भर आंसू रोने का
मन है तुम्हें भिगोने का
घनघोर घटा थी छाई नभ में
लेकिन गहराई मेरे मन में
जो निर्झर- निर्झर, नदी- सी बहती
वो बहती बन के नीर नयन में
बांधा तुमसे जो मन का बंधन
तो क्या डर है कुछ खोने का
भर भर आंसू रोने का
मन है तुम्हें भिंगोने का
मेरी पीड़ा से तुम अनजान नहीं
मत कहो कि तुमको भान नहीं
क्या व्यथा कथा है मेरे मन में
तुम इतने भी नादान नहीं
क्या एहसास नहीं है
कुछ भी तुमको-
मेरे होने ना होने का?
भर- भर आंसू रोने का
मन है तुम्हें भिगोने का।
कितने पत्र
कितने पन्ने जो मैंने
स्याही से रंग डाले
तुम्हारे लिए
कितने पन्ने जिनमें उढ़ेल डाले
मैंने वह हजारों जज्बात
जिन्हें मैं नहीं कह पाई कभी
तुम्हारे सामने
कितने पन्ने जिनमें अंकित हैं
मेरे वो अल्फाज
जो आते- आते होठों पर
रुक गए कहीं भीतर
कितने पन्ने जिन पर मैंने
अपने अश्कों से लिखा था
तुम्हारा इंतजार
हां अभी और भी हैं
ना जाने ऐसे कितने पन्ने
जिनमे भरा है
मेरे तुम्हारे भविष्य का
सुनहरा संसार
वे पन्ने जो कभी न पहुंच पाए
तुम्हारे हाथों तक
आज भी रखे हैं मैंने संभाल कर
जिन्हें दुनिया पत्र कहती है
अब नहीं है उनका कोई मोल
पर मेरे लिए है अनमोल क्योंकि वे हैं
मेरे और तुम्हारे प्रेम के सूत्रधार।
स्वत्व
बनाई है मैंने एक नई राह
किया है अपने एक सपने को साकार
एक मंजिल तो पाई है अभी मैने
था जिसका मुझे बरसों से इंतजार
हो हासिल कुछ ऐसा
जो हो खुद से बनाया
बनूं ऐसा तरु ,जो दे किसी को छाया
बढ़ाया है एक कदम
अभी और भी है चलना
सूरज- सा मुझे उगना है
फिर शाम- सा भी है ढलना
अगर क्षितिज की हो ख्वाहिश
तो सफर बड़ा लंबा है
रुकना, चलना ,गिरना, संभालना
यही तो जिंदगी से पंगा है
गिरकर फिर से उड़ने की
ख्वाहिश अगर जिंदा है
उस अनंत गगन का
वही स्वत्व परिंदा है।
स्त्रीः मुझे जी लेने दो
एक लम्बा ही सही
मुझे जिंदगी जी लेने दो
भटकी हुई लहर कोई
किनारा ढूंढ ले!
बेसहारा कोमल लताएं
सहारा ढूंढ ले
विष पिया है सदियों से
बूंद भर अमृत पी लेने दो
एक लम्हा ही सही मुझे
जिंदगी जी लेने दो
धीरज मेरा वजूद है
अंतस में है अंधेरा
किसी गहरी धुंध से ढ़ंका है
आसमान मेरा
बड़ी दूर कोई रोशनी है
उसे पलकों में सी लेने दो
एक लम्हा ही सही
मुझे जिंदगी जी लेने दो
दुःशासन अभी और भी हैं
चित्कार करते
बाहुबली बने हैं
अब भी झूठा दंभ भरते
नाजुक बहुत है चीर
कोई नया वस्त्र भी लेने दो
एक लम्हा ही सही
मुझे जिंदगी जी लेने दो
अपना नहीं है कुछ भी
जो भी है पराया
जिंदगी भर लुटाया मगर
हिस्से में कुछ नहीं आया
मांगा नहीं जहां सारा
थोड़ी-सी जमीं लेने दो
एक लम्हा ही सही
मुझे जिंदगी जी लेने दो।