साहित्य सरोकार : नमकीन शहर के चटपटे लोग

वैसे भी रतलामियो  की थाली में सेंव होती ही है, बिना सेंव की थाली अधूरी होती है, अपशकुन माना जाताहै। जैसे दुल्हन बिना सिंदूर के। थाली बिना सेंव की अच्छी नहीं  लगती। पीढ़ियां दर पीढ़ियां लगी है साब सेंव पर। सेंव सा ही नमकीन रतलामियों  का दिल भी है तीखा चटपटा। मिठास बची कहाँ दिलो में। चटपटे जरूर है लेकिन धोखेबाज नहीं  है भोले है रतलामी लोग। ⚫

इन्दु सिन्हा “इन्दु”

सेंव, सोना, साड़ी के लिए देश ही नहीं विदेश में भी अपना नाम शुद्ध सुनहरी अक्षरों में दर्ज करवा चुका रतलाम किसी पहचान का  मोहताज नहीं है। शुध्द सुनहरी अक्षरों में इसलिए लिखा है, किसी दूसरे शहर का गोल्ड शुध्द हो या नहीं हो?रतलाम का गोल्ड सौ टका शुद्ध होता है। इसलिए नाम भी शुध्द सुनहरी अक्षरों में लिखा जाए। दूसरे शहर के सोने से नाम क्यो लिखें?

रतलाम की सेंव का ये आलम है साहब, जब जब ट्रेन स्टेशन पर रुकती है। रतलाम तो साहब जंक्शन है, इसलिए ट्रेनों का जमवाड़ा लगता ही है।  पैसेंजर तुरंत ही उतर कर स्टेशन के नजदीक बनी दुकानों पर दौड़ लगाते है। स्टेशन के नजदीक कई प्रसिद्द दुकानें हैं। ट्रेन छूटने के पहले हाँफते हाँफते नमकीन के पैकेट पकड़े कोच में दाखिल होते है। मानो जैसे कोई पहाड़ की चोटी से उतरकर आए  हों। वैसे ट्रेन के कोच में भी रतलामी नमकीन के पैकेट बेचने वाले आते हैं पर स्टेशन के पास की नमकीन की दुकानों से खरीदने का”मज़ा”ही कुछ ओर है।  गरम-गरम सिंकती सेव की खुशबू जब नाक में जाती है,तो कस्टमर मानो पगला जाते है। कस्टमर सब्जी,दाल की कटोरी को दूर कर देता है,सिर्फ सेंव पराठे ही सूतता है। वैसे भी रतलामियो  की थाली में सेंव होती ही है,बिना सेंव की थाली अधूरी होती है अपशकुन माना जाताहै। जैसे दुल्हन बिना सिंदूर के। थाली बिना सेंव की अच्छी नही लगती।


रतलामी बिना  नमकीन के पैकेट के किसी को मिठाई  नही  देते हैं। रतलामी नमकीन के बिना मिठाई की मिठास भी मज़ा नही देती। नमकीन के कुछ पैकेट भी साथ में दिए जाते है नहीं तो आरोप लग जाता है मिठाई देने की तमीज नहीं है। इसलिए रतलामी नमकीन जरूरी है।
रतलामियो के इश्क,प्यार में भी मिठास कम नमकीनियत ज्यादा है। सैकड़ों साल पुराना इतिहास है रतलामी सेंव का। सुना है कोई मुगल शाही परिवार आया था।  उस परिवार को एक दिन सेवइयां खाने की इच्छा हुई। बेसन से बनाई गई सिवईयां।  जिसमे धीरे धीरे बाद में मसाले एड होते गए रूप रंग बदलता गया।


सेंव अब विदेशों में भी अपनी धाक जमा चुकी है। ये प्रिय स्नैक्स बन चुका है, लेकिन रतलामी ठहरे शुध्द देसी लोग वो स्नैक्स की बजाय सेंव ही कहते है। अपनापन सेंव में झलकता है| नमकीन की दुकानों पर जो लंबी-लंबी कतारें लगती है,उसका नजारा ही कुछ ओर होता है। कस्टमर में मुँह में आये पानी को गले मे उतारते रहते है।


नमकीन का चटपटापन तीखापन हर रतलामी की जुबान पर महसूस होगा। होना भी चाहिए मिठाई में कीड़े जल्दी पड़ जाते है। नमकीन में नही। उतरती गर्म गर्म कचौरी दुकान पर आप देख सकते है,जब कचौरी के दिल को खोलकर उसमें हरी और मीठी चटनी को भरा जाता है रतलामी सेंव से ही डेकोरेट किया जाता है नही तो सुबह लड़ाई झगड़े हो जाते है।


क्यो भिया सेंव नी है तेरे पास,सेंव डाल ज्यादा,
झन्नाट बना रे,गर्म तेल थोड़ा डाल सेंव ज्यादा डाल,
तेल से निकली कचौरी को जब गर्म तेल से भरते है तो खुश हो जाती है कचौरी,मानो”स्पा सेंटर” में हो।
जब दही डाली जाती है तो उसे फेशियल सा लगता है।सेंव, हरा हरा धनिया से जब डेकोरेट किया जाता है तो मेकअप हो जाता है। कचौरी धन्य हो उठती है।  उसके बाद रतलामी भिया,भेन के होठों से लगकर जब मुँह के रास्ते पेट मे पहुँचती है तो चारो धाम हो जाते है कचोरी के।
साब,ऐसा कोई व्यंजन नही जिसमे रतलामी नमकीन ना हो। पोहे और सेंव की यारी सदियों पुरानी है। इन दिनों पोहे ने भी घोषणा कर दी है सिर्फ रतलामी सेंव ही डाली जाए बाकी सेंव को इंट्री नही दी जाएगी।


पानी पूरी का तीखा पानी हो या छोले टिकिया का कुरकुरापन, सेंव इतराती हुई जरूर मिलेगी।
घर घर मे रतलामी सेंव मिलेगी ही साथ ही दिलो में भी बसी है बस दिल मे झाँकना आना चाहिए। घरों में परोसे गए नाश्ते की प्लेटों के साथ एक प्लेट रतलामी नमकीन की मिलेगी ही।
सेंव हर दिल अज़ीज है मजदूर हो,आदिवासी मजदूर,झुग्गी झोपड़ी हो,या मंहगी बड़ी लंबी कार वाले,सेंव सबकी प्रिय है। झुग्गी झोपड़ियों में भी जिस दिन सब्जी नही बनी,बच्चे को दौड़ा देंगे,बजा रे छोरा, दस रुपये की सेंव ला रे,रोटी उसी से खानों है, छोरा खुश, दौड़ जाता है,सेंव लेने को।


हर स्वाद में लहसुन,अजवायन पालक टमाटर,लौंग,काली मिर्च में सेंव मिलेगी आपको। आए  दिनरिसर्च हो रहे है सेंव पर। पीढ़ियां दर पीढ़ियां लगी है साब सेंव पर।
सेंव सा ही नमकीन रतलामियो का दिल भी है तीखा चटपटा। मिठास बची कहाँ दिलो में। चटपटे जरूर है लेकिन धोखेबाज नही है भोले है रतलामी लोग। प्यार की मिठास के साथ सेंव से नमकीन।

⚫ इन्दु सिन्हा “इन्दु”
कहानीकार/ कवियत्री
रतलाम (मध्यप्रदेश)

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