पुस्तक समीक्षा : कविता कृष्णपल्लवी ने एक किलो साढ़े तीन सौ ग्राम वजनी महाग्रंथ छापकर रचा कीर्तिमान

अन्वेषा वार्षिकी’ का प्रथम अंक
535 पेज की पत्रिका हिंदी में पहली बार
नरेंद्र गौड़
धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान जैसी बड़े और धनाड्य घरानों की पत्रिकाएं एक के एक बंद होते जाने के बाद अस्तित्व में आए लघु पत्रिका आंदोलन पर भी संकट के बादल गहरा रहे हैं। अपनी शर्तों पर प्रगतिशील जनवादी रचनाएं छापने वाली पत्रिकाएं आज भीषण आर्थिक तंगी का सामना करते हुए बहुत सी दम तोड़ चुकी हैं। छपाई का लगातार बढ़ता खर्च, कागज के दाम में बढ़ोतरी और विज्ञापन नहीं मिलने की वजह से लघु पत्रिकाएं निकालना बहुत कठिन ही नहीं असंभव हो चला है। दूसरी तरफ सरकार भी प्रतिबध्द सोच की रचनाओं को प्रकाशित करने के लिए भला क्यों मदद करने लगी? क्योंकि इनमें तो सत्ता के गुणगान के बजाए उसकी कारगुजारियों को लेकर खरी -खरी आलोचना होती है।

आलोचकों व्दारा प्रशंसा
ऐसे में कवयित्री और एक्टिविस्ट कविता कृष्णपल्लवी ने निश्चय ही 535 पेज की पत्रिका ’अन्वेषा 2024 विशेषांक’ का प्रकाशन कर इतिहास रच दिया है। एक विध्नसंतोषी और कुंठित कवि तथा उसके लग्गू-भग्गुओं को छोड़, हिंदी के पाठकों तथा आलोचकों व्दारा इस अंक की प्रशंसा की जा रही है। इतने भारी भरकम अंक के लिए रचनाएं जुटाना एवरेस्ट पर चढ़ाई जितना ही श्रमसाध्य रहा होगा। एक तरफ घर परिवार की जिम्मेदारी, सरकार के गलत कदमों के खिलाफ आंदोलनों में भाग लेते हुए प्रकाशन का दायित्व निर्वाह करना आसान नहीं है।
खरीदकर पढ़ने की प्रवृत्ति रही नहीं
एक तरफ जहां टीवी, फेसबुक, वाट्सएप सहित इंटरनेट के दूसरे संसाधनों ने पाठकों को पढ़ने के बजाए दर्शक दीर्घा में धकेल दिया है, ऐसे निर्मम समय में पत्रिका खरीदने की प्रवृत्ति दमतोड़ रही है। चंद पाठक ही बचे हैं जो आज उत्साह से पत्रिकाएं मंगाते हैं। वरना बड़े घरानों के अखबारों में ही ढ़ेरों पन्ने होते हैं, उन्हें पूरा पढ़ने बैठो तो दिन बीत जाता है।
छपे अक्षर नैपत्थ में जा रहे
बहुत- सी पत्रिकाएं ऑन लाइन होने के कारण कुछ देर अंगुलियां चलाने भर से पूरी पत्रिका और अखबार पढ़े जा सकते हैं, ऐसे में छपे हुए अक्षर नैपत्थ में जा रहे हैं। बावजूद इसके हंस, वर्तमान साहित्य, कथादेश, वसुधा, समय के साखी, उद्भावना, समयांतर, पक्षधर, बनास जन, अकार, तद्भव, समकालीन जनमत जैसी लधु पत्रिकाएं अनेक संकट और विपरित हवा का सामना करते हुए छप रही हैं। विनीत तिवारी के संपादन में ’प्रगतिशील वसुधा’ का 102 वां अंक छपा है जिसके 355 पेज में हिंदी की श्रेष्ठतम रचनाएं पढ़ी जा सकती हैं।
अनेक मोर्चों पर आंदोलन में व्यस्त
गोरखपुर (उप्र) में जन्मी कविता कृष्णपल्लवी राजनीति शास्त्र में एमए हैं। छात्रों तथा युवाओं से जुड़ी समस्या को लेकर उनके पक्ष में लम्बे समय तक संघर्ष करती रही कविता जी मजदूरों के हक की लड़ाई में विभिन्न मोर्चों पर अपने साथियों के साथ डटी रहीं। वहीं स्त्री मोर्चे पर भी सक्रिय हैं। इनकी राजनीतिक तथा सामाजिक सक्रियता लगातार बनी रहती है। ’सांस्कृतिक मंच अन्वेषा’ की आप संयोजक हैं। वर्ष 2006 से नियमित लेखन करती आई कविता जी की अनेक रचनाएं अधिकांश पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही है। नेपाली, मराठी, बंगला, अंग्रेजी, और फ्रेंच भाषाओं इनकी रचनाओं के अनुवाद हो चुके हैं। वर्ष 2019 में इनका संकलन ’नगर में बर्बर’ परिकल्पना लखनऊ से प्रकाशित और चर्चित रहा है। समय सापेक्ष लेकिन पतनशील रचनाओं के आभिजात्य का परित्याग करती कविताओं की वजह इनका संकलन बहुत सराहा गया। इनका वादा है कि ’अन्वेषा’ का प्रकाशन भविष्य में नियमित होगा, यह प्रथम अंक है।
फ़िलिस्तीनी कविताएं
जकरिया मोहम्मद, खालिद जुमा, महमूद दरवेश, समीह अल कासिम, गस्सान कानाफानी, अहलाम बशारत, नूर हिंदी, हनान अशरावी, शैखा हुसैन हेलावी, मुसाब अबू तोहा, मोहम्मद मूसा, बतूल अबू अकलीन, शाहद अलनामी, मरियम अल आगा खतीब, रिफअत अल-अरीर, सारा इगेलन, मोमेन मूसा, फेवा हसनत, लुबना अहमद गजा, हिब्रा अबू नादा, रशीद हुसैन, दारीन तातूर और अब्दुलकरीम अल-करमी की कविताएं ’अन्वेषा’ के इस अंक को बार-बार पढ़ने और सहजने लायक बनाती हैं।
हिंदी के 107 कवियों की कविताएं
इसके अलावा असद जैदी, विष्णु नागर, कुमार अम्बुज, शशि प्रकाश, कात्यायनी, अमिताभ बच्चन, विनोद पदरज, सविता सिंह, शरद कोकास सहित 107 हिंदी के श्रेष्ठ कवियों की सशक्त रचनाएं हैं। इन कविताओं का मूल स्वर यह है कि हमें एक नए युध्द विरोधी आंदोलन की जरूरत है। आज दुनिया में शीत युध्द के दौर से भी ज्यादा बड़े युध्द का खतरा मंडरा रहा है। हालांकि जिन कारणों ने दुनिया को युध्द के कगार पर ला खड़ा किया है, उन्हीं ने पहले से अधिक शांति के आंदोलन के लिए स्थितियां भी बनाई हैं। फिर भी इस शांति आंदोलन को संगठन एकता और वैचारिक स्पष्टता की आवश्यक्ता है।
अनेक सवालों को उठाने का प्रयास
रूस युक्रेन युध्द, इजराइल और फिलिस्तीन युध्द, पाकिस्तान की तरफ से देश को कमजोर बनाने के लिए आतंकी कारगुजारियां, भारत में बढ़ती भुखमरी, बेरोजगारी, वोट की खातिर फैलाए जा रहे धार्मिक उन्माद और हिंदू मुस्लिम के बीच भेद भाव जैसे अनेक सवाल प्रकारांतर से उठाने की कोशिश ‘अन्वेषा’ की संपादक कविता कृष्णपल्लवी और सह संपादक अपूर्व मालवीय ने प्रकाशित रचनाओं के जरिए की है।
विश्व के अनेक देशों की रचनाएं
‘अन्वेषा’ के इस दुर्लभ अंक में एशिया के देशों के अलावा तुर्किए, अफ़गानिस्तान, ईरान सहित अरब देशों की कविताएं हैं। लातिन अमेरिका और कैरेबियन देशों की कविताएं भी हैं। साथ ही रूसी और पूर्वी यूरोपीय देशों के कवियों की कविताएं एक साथ हिंदी की किसी पत्रिका में प्रकाशित हुई हैं। पश्चिम यूरोपीय देशों की कविता कनाडा की समकालीन कविता, आलेख तथा महत्वपूर्ण किताबों की समीक्षा सहित ढेरों पठनीय सामग्री है।
संपादकीय संपर्क
इस अंक का मूल्य 500 रूपए, डाक पार्सल खर्च- 100 रुपए अतिरिक्त। संपादकीय संपर्क-मुकेश प्रसाद, दून बास्केट, लोअर नेहरू ग्राम, सिध्द विहार, रायपुर, देहरादून (उत्तराखंड)-248001. फोन-9643149900
मुख्य वितरक-जनचेतना, डी-68, निराला नगर, लखनऊ-226020. फोन-9721481546