बड़े भले हैं वे, मुस्कुराते हैं मीठा-सा, किसी लफड़े में नहीं पड़ते
बड़े भले हैं वे ,
मुस्कुराते हैं मीठा-सा
किसी लफड़े में नहीं पड़ते।
ना ऊधो का लेना
ना माधो का देना ,
दुनिया के दंद-फंद
से दूर ,
दस से पाँच काम पर ,
जो जरूरी है निपटा देते हैं-
बिना वजह कलम नहीं फँसाते ।
बड़े मजे में दिन निकल जाता है ,
दुनिया को तेल लेने भेजकर
अपना वक्त काट देते हैं ।
ना तीन में ना तेरा में ,
बस मैं और मेरी आत्या ,
रेवड़ी भी फिर-फिर कर
उनके हाथों पड़ जाती है ,
निर्णय पर आकर
कलम गड़ जाती है,
कौन बैठे-ठाले की भेगत ले !
अगला कर लेगा ।
बस इसकी टोपी
उसके सिर धर देते हैं ,
इस तरह अपनी
गुजर कर लेते हैं ।
बड़े आराम से
अपना गणित भिड़ा रहे हैं ,
कुल मिला कर
ऐड़े बनकर पेड़े खा रहे हैं ।
क्या पता
हो सकता है !
जो तटस्थ हैं ,
समय लिखे उनका अपराध !!!!!
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🔳 डाॅ. ममता खेड़े 🔳
(लेखिका प्रशासनिक अधिकारी हैं)