मैं सोता रह गया, उधर मेरा नगर महानगर बन गया…
हरमुद्दा
“29 दिसंबर, 2019” का दिन मेरे लिए यादगार बन गया। दरअसल इस दिन मैंने अपने एक पत्रकार मित्र के हाथ में एक स्मारिका देखी। इस पंचवर्षीय स्मारिका को देखते ही लगा जैसे किसी परी ने मुझे गहरी नींद से उठा दिया है। वह कह रही है- “उठो लाल अब आंखें खोलो, पानी लाई हूं मुंह धो लो…। मुझे देखकर इस तरह चौंकने की जरूरत नहीं। मैं रत्नपरी हूं। तुम मुझे रत्नपुरी भी बुला सकते हो। पता है, तुम पांच साल से सो रहे थे। अगर अभी नहीं जगाती तो पांच साल तक और सोते रहते।”
मैं अचरज में पड़ गया और सोचने लगा कि क्या वाकई मैं पांच साल से सोता रहा था? तभी रत्नपरी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और कहा- “वो देखो, बीते पांच साल में तुम्हारा नगर कितना बदल गया है। जहां बसों की आवा-जाही के लिए स्टैंड बना था वहां अब हवाई जहाज और चार्टर्ड प्लेन आते-जाते हैं। अमृतसागर तालाब में जलकुंभी की जगह कमल खिलते हैं और इसमें क्रूज चलते हैं। काटजूनगर और कस्तूरबानगर के नागरिकों के लिए मल्टीलेवल फ्लाईओवर ब्रिज बन गया है और आवाजाही के लिए एयर टैक्सी भी सुलभ है।
और अब गलियां भी स्मार्ट सड़कें बन गई
सभी प्रमुख मार्ग फोरलेन में तब्दील हो चुके हैं और अब गलियां भी स्मार्ट सड़कें बन गई हैं। सड़कें भी ऐसी बनी हैं कि अगले 100 साल तक एक इंच जितना भी पेचवर्क करना नहीं पड़ेगा। पूरे नगर में स्मार्ट एसी सिटी बसें चल रही हैं। पेड़ों की संख्या और हरियाली तो इतनी है कि मई-जून में भी दिन का अधिकतम तापमान 30 डिग्री से ऊपर नहीं जा पाता।
क्या यह सब हो गया
नगर पांच साल से स्वच्छता के मामले में सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रथम स्थान पर ही बना हुआ है। अब घरों से कचरा लेने वाहनों पर कर्मचारी नहीं आते, अब यह काम रोबोर्ट करते हैं। यहां का सीवरेज सिस्टम विश्व में नंबर वन है। बीते चार साल में कहीं भी धूल का एक कण तक नहीं दिखा।
स्ट्रीट लाइट की केबलें अंडरग्राउंड हो चुकी हैं, नलों में आरओ का पानी सप्लाई होता है वह भी मुफ्त।
प्रत्येक वार्ड में हाईटेक और स्मार्ट जोन कार्यालय हैं जहां बैठ कर क्षेत्रीय पार्षद टेली-कॉन्फ्रेंसिंग व वीडियो कॉलिंग के जरिए लोगों की समस्याएं सुनते हैं और तत्काल उनका निराकरण और समाधान भी कर देते हैं। मकान निर्माण की अनुमति तो आवेदन करने के 24 घंटे के भीतर घर पहुंच जाती है।”
मुझे कोसती रही
रत्नपरी की विकास गाथा अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि तभी मेरे मोबाइल की रिंगटोन बज उठी। देखा तो कॉलर आईडी पर मेरी गृहलक्ष्मी का चेहरा नजर आया। मुझे याद आया कि गृहलक्ष्मी को बाजार से घर ले जाना है। सो मित्र से उस पंचवर्षीय विकास स्मारिका की एक प्रति मेरे लिए भी जुटाने का निवेदन कर विदा ली। बाजार से गृहलक्ष्मी को दोपहिया वाहन पर बैठाकर घर पहुंचा। गृहलक्ष्मी पूरा रास्ता गड्ढों और धूल से पटा होने की बात कहकर जिम्मेदारों और मुझे कोसती रही। मैंने उसकी किसी बात पर गौर नहीं किया और बाइक भगाता रहा। दरअसल मुझे अब यकीन हो चुका है कि “मैं पांच साल तक सोता ही रहा और इस बीच मेरा नगर महानगर बन गया।”