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पद्मश्री डॉ. लीला जोशी के प्रोजेक्ट “12/12 /12” की बदौलत बालिकाएं हुई तंदुरुस्त

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🔳 करीब चार लाख महिलाएं एवं बालिकाएं हुई रक्तअल्पता से मुक्त

🔳 पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयनित 81 वर्षीय डॉक्टर लीला जोशी की ‘हरमुद्दा’ से खास चर्चा
रतलाम, 26 जनवरी। रत्नपुरी रतलाम की रत्न पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयनित 81 वर्षीय डॉक्टर लीला जोशी की ‘हरमुद्दा’ से खास चर्चा की। डॉ. लीला जोशी के प्रोजेक्ट 12 12 12 की बदौलत जिले की 4 लाख महिलाएं और बालिकाएं रक्त अल्पता से मुक्त हुई है यह यह उपलब्धि कोई 1 सप्ताह, 1 माह, 1 साल, में नहीं अपितु 17 साल के अथक सेवा भावना की बदौलत मिली है। डॉ. जोशी का एक ही लक्ष्य है कि महिलाओं में रक्त अल्पता की कमी ना हो साथ ही बालिकाएं भी इससे ग्रसित ना हो।

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डॉ. लीला जोशी ने प्रोजेक्ट 12/12/12 की जानकारी देते हुए डॉ. जोशी ने बताया कि बालिकाओं के शरीर में 12 वर्ष की उम्र तक 12 प्रतिशत हिमोग्लोबिन होना जरूरी है। यदि 12 वर्ष में भी हिमोग्लोबिन की कमी है। तो जब छात्रा 12वीं कक्षा में रहे, तब तक हिमोग्लोबिन का यह आंकड़ा 12 प्रतिशत हो जाना चाहिए अन्यथा जब गर्भावस्था होती है, तब जच्चा और बच्चा दोनों को दिक्कत होती है और असमय मृत्यु तक हो जाती है। स्कूल स्तर से 2007 में शुरू किए गए इस प्रोजेक्ट का असर यह रहा कि लाखों बच्चियां रक्त अल्पता की बीमारी से मुक्त हैं।

श्री सेवा संस्थान से संकल्पित सेवा का सफर शुरू

डॉ. लीला जोशी ने बताया कि सेवानिवृत्ति के पश्चात 1997 में रतलाम आकर जैन दिवाकर हॉस्पिटल की शुरुआत की। डॉ. जोशी ने आदिवासी क्षेत्र के अलावा झुग्गी झोपड़ी क्षेत्रों में सेवा का संकल्प अभियान 2003 में शुरू किया। इसके बाद से आदिवासी महिलाओं की रक्त अल्पता से हुई मृत्यु दर को कम करने के लिए संकल्पित अभियान चलाकर आदिवासी क्षेत्रों में शिविर का आयोजन किया गया। महिलाओं को पौष्टिक आहार, आयरन की गोली देते हुए उन्हें रक्त अल्पता की समस्या से मुक्ति दिलाई। खासकर गर्भवती महिलाओं पर विशेष ध्यान दिया गया ताकि प्रसूति के दौरान और बाद में हीमोग्लोबिन की कमी न रहे। जच्चा और बच्चा स्वस्थ प्रसन्न, सेहत मंद रहे। इसके सार्थक परिणाम मिले और आज जिले में गर्भवती महिलाओं में इस प्रकार की समस्या नहीं रही। साथ ही गर्भवती महिलाओं की प्रसूति के दौरान मृत्यु दर काफी कम हुई। इसके साथ ही गरीब महिलाओं के लिए भी अभियान चलाया। शहर के झुग्गी झोपड़ी क्षेत्रों में जाकर उन्हें सेहत के प्रति जागरूक कर हिमोग्लोबिन बढ़ाने के प्रयास किए। इसमें भी सफलता के कदम बढ़ते गए।

डॉ. जोशी का सम्मान कर अनेक संस्थाएं हुई है गौरवान्वित

सरल, सहज, मृदुभाषी, आत्मीय मुस्कान से अभिवादन करने वाली रतलाम की डॉ. जोशी का नाम पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयनित होने पर रतलाम गौरवान्वित है। समाज सेवा में अग्रणी डॉ. जोशी को देशभर में अनेक संस्थाओं ने सम्मानित कर अपनी संस्था का गौरव बढ़ाया है। ऐसी विभूति को पाकर रतलाम धन्य है। गरीबों की मसीहा रतलाम की रत्न डॉ. जोशी का ध्येय केवल और केवल चिकित्सा के माध्यम से सेवा का ही रहा है।

🔳 2016 में 100 सफल महिलाओं में चुनी गईं और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सम्मानित किया

🔳 2013 में एनीमिया के खिलाफ जंग के लिए डॉ. जोशी को रेलवे मंत्रालय का विशिष्ट सेवा सम्मान

🔳 2014 में वुमन प्राइड अवॉर्ड, फिल्म अभिनेत्री माधुरी दीक्षित ने मुंबई में दिया

🔳 2014 स्त्री रोग विशेषज्ञ की राष्ट्रीय संस्था फोग्सी (प्रेसिडेंट फेडरेशन ऑफ ऑबस्ट्रेटिक एंड गायनेकोलाजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया का सम्मान

एक परिचय : डॉ. लीला जोशी

🔳 जन्म : 20 अक्टूबर 1938

🔳 पिता : स्व. जमनादत्त जोशी

🔳 माता : पार्वतीदेवी जोशी

🔳 जन्म स्थान- रतलाम

🔳 प्राथमिक शिक्षा- 1950 से 53 तक रेल्वे स्कूल, रतलाम

🔳 हाई स्कूल : गंगापुर सिटी 1954

🔳इंटर साइंस : महारानी कॉलेज, जयपुर 1956

🔳मेडिकल शिक्षा : एमजीएम कॉलेज, इन्दौर 1961

🔳 1962 में रेलवे चिकित्सालय कोटा में सेवाएं प्रारंभ। सेवाकाल में मेडिकल सुपरिटेंडेंट बनी।

🔳 1991 में रेलवे मंत्रालय दिल्ली में एग्जीक्यूटिव (हेल्थ)डायरेक्टर पदस्थ हुईं। फिर मुंबई में मेडिकल डायरेक्टर बनीं।

🔳1996 अंत में आसाम से चीफ मेडिकल डायरेक्टर के पद से सेवानिवृत हुईं।

🔳 1997 से रतलाम में चिकित्सा सेवा में सक्रिय

🔳 परिवार : डॉ. जोशी की चार बहने व दो भाई। चंद्रकला पंत, प्रमिला जोशी, गायत्री तिवारी, प्रतिभा पांडे, भाई प्रोफेसर एसएन जोशी व कृष्णचंद्र जोशी।

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