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मालव केसरी की जन्म जयंती पर शीश नवाने समाधि पर उमड़े गुरुभक्त

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हरमुद्दा
रतलाम, 2 फरवरी। सागोद रोड़ स्थित श्री सौभाग्य जैन तीर्थ एवं जनकल्याण परिसर में अनेक साधु-साध्वी भगवंतों के सानिध्य में मालव केसरी श्री सौभाग्यमलजी म सा का जन्मोत्सव मना। समाधि पर शीश नवाने कई गुरूभक्त पंहुचे। श्रमण संघीय मंत्री राष्ट्र संत श्री कमल मुनिजी म सा ने उन्हें संबोधित करते हुए मालव केसरी के जीवन से प्रेरणा लेकर समाज को संगठित रखने का आह्वान किया। अभिग्रहधारी,उग्रविहारी,तपकेसरी श्री राजेश मुनि जी म. सा. ने कहा कि मालव केसरी का जीवन विपरीत परिस्थितियों में कष्टों के बीच आगे बढने की प्रेरणा देता है।

प्रवर्तक श्री प्रकाशमुनि जी की प्रेरणा से आयोजित इस जन्म जयंती महोत्सव में नासिक, इंदौर, खाचरौद, बदनावर, उज्जैन, दाहोद, नागदा, जावरा सहित अनेक स्थानों से गुरूभक्त पहुंचे थे। महोत्सव के आरंभ में मंगलाचरण श्री अरुण मुनिजी ने किया। इसके बाद राजमल चोपड़ा एवं स्नेहलता धाकड़ ने स्तवन प्रस्तुत किए। मधुर व्याख्यानी श्री चारुप्रज्ञाजी ने कहा कि जन्म जयंती उन्हीं की मनाई जाती है, जिन्होंने जन्म सार्थक बनाया है । संयम पथ पर चलना हर किसी के लिए संभव नहीं होता, सिर्फ महापुरुष ही सयंम का मार्ग अपनाते है। महासती सुदर्शनाजी ने कहा कि  गुरुदेव के नाम में ही सौभाग्य था। हम एक भाग्य ले कर आये है, जबकि गुरुदेव तो सौ भाग्य ले कर आये थे।  महासती श्री दिव्यांशी श्रीजी ने-गुरुवर का दर्शन सुहाना लगता है,भक्तो का भी मन दीवाना लगता है-स्तवन प्रस्तुत किया। उपप्रर्वतिनी श्री मंगलप्रभाजी ने कहा कि मालवकेसरी का जैसा नाम था, वैसे ही गुण के वे धारक थे। श्रमण संघ की एकता में उनका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।

कार्य से बनता है व्यक्ति महापुरुष

महासती श्री पदमिनीजी ने कहा कि जन्म से कोई महापुरूष  नहीं होता, अपने कार्य से ही व्यक्ति महापुरुष बनता है। मालवकेसरीजी इसका जीवंत उदाहरण है। मुमुक्षु परीजी दुग्गड़ ने भी भाव व्यक्त किए। श्री सौभाग्य जैन साधना एवं जनकल्याण परिसर के अध्यक्ष सुरेंद्र गादिया ने जन्म जयंती उत्सव में अनेक संत-सतियाजी के सानिध्य को गुरूभक्तों का सौभाग्य बताया। श्री जैन दिवाकर वर्धमान स्थानकवासी श्रावक संघ नीमचौक के अध्यक्ष प्रेमकुमार जैन ने 7 फरवरी को होने वाले दीक्षा महोत्सव का आमंत्रण दिया। सर्किल जैल रतलाम के डिप्टी जेलर डीपी प्रसाद ने 4 फरवरी को जिला जेल में कैदियों को जीवन परिवर्तन का मार्गदर्शन देने का आग्रह किया। इस अवसर पर श्री सौभाग्य जैन साधना एवं जनकल्याण परिसर के पदाधिकारियों ने मुमुक्षु परिजी दुग्गड का बहुमान किया।
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कार्यक्रम का संचालन रखब चत्तर एवं सौरभ मूणत द्वारा किया गया। इस दौरान संत-सतियाजी, श्री सौभाग्य जैन साधना एवं जनकल्याण परिसर के अध्यक्ष श्री गादिया, सचिव आनंदीलाल गांधी, श्री धर्मदास जैन मित्र मंडल ट्रस्ट के सचिव रमण लाल बोहरा,श्री सौभाग्य जैन नवयुवक मंडल के अध्यक्ष निलेश मेहता, सचिव राजेश बोर्दिया, गुरु श्री सौभाग्य प्रकाश युवक मंडल के अध्यक्ष हर्ष मूणत, सचिव सौम्य चत्तर, श्री धर्मदास जैन श्री संघ के कार्यकारिणी सदस्य रंगलाल चोरडिया,  रखब चत्तर, आजाद मेहता,राजमल चोपड़ा, सुभाष भंडारी, श्री सौभाग्य जैन महिला मंडल अध्यक्ष कांता चोरडिया,सचिव मीना भंडारी,श्री सौभाग्य अणु बहु मंडल सचिव मोना बोर्दिया, श्री सौभाग्य प्रकाश बालिका मंडल अध्यक्ष काविशा मूणत व सचिव श्रुति मूणत आदि मौजूद थे।
महकने वाला कभी नहीं बुझता-राजेशमुनिजी
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जन्म जयंती महोत्सव में अभिग्रहधारी, उग्रविहारी, तपकेसरी श्री राजेश मुनि जी म. सा. ने कहा कि अगरबत्ती और दीपक दोनो जलाए जाते है, लेकिन अगरबत्ती बुझती नहीं, अपितु महकती है, जबकि दीपक बुझ जाता हैं। गुरूदेव मालवकेसरी श्री सौभाग्यमलजी का जीवन ऐसा ही महकने वाला रहा। उनसे प्रेरणा लेकर सभी अपने जीवन को महकाने का प्रयास करें। मालवकेसरी ऐसे महापुरूष थे, जिन्होंने संघ एवं समाज की एकता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया, उनका अनुसरण करने से जन्म सार्थक होगा। उन्होंने कहा कि जन्म और मौत के बीच ज्यादा जीवन जीने वाला ही महापुरूष बन सकता है। विपरीत परिस्थितियों में लोग मायूस होकर आत्म हत्या जैसे कदम उठा लेते है,लेकिन मालव केसरी का जीवन कठिन स्थितियों को जीतकर आगे बढने और पूरे समाज को नई दिशा देने वाला रहा है।
नफरत से परिवर्तन नहीं आता- राष्ट्र संत
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राष्ट्र संत श्री कमलमुनिजी ने महोत्सव में कहा कि कोई भी पंथ, समुदाय हो, उसमें रहने वाले को अपने त्याग-तप अपने स्तर पर परंपरा से करना चाहिए, लेकिन जब समाज और संगठन का अवसर आए, तो एकजुट रहना चाहिए। परिवर्तन नफरत से नहीं आता, अपितु समस्या का समाधान करने से आता है। भगवान महावीर ने चंडकौशिक से दोस्ती की, संत विनोबा भावे चंबल में डाकू-लुटेरों के बीच उन्हें अपना भाई बताकर गए। इससे चंडकौशिक और डाकू-लुटेरों का जीवन बदल गया। दो हजार का नोट यदि बच्चे को दो, तो वह फाड सकता है, लेकिन बडा उसे संभालकर रखेगा। इसी प्रकार साधु-संत धर्म के रूप में जो सीख देते है, उसे दो हजार के नोट की तरह संभालकर रखने की जरूरत हैं। मालवकेसरीजी ने पूरा जीवन एकता के लिए समर्पित किया। उनकी जन्म जयंती पर सभी संगठन और समाज को मजबूत करने का संकल्प ले, तभी यह महोत्सव सार्थक होगा।

 

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