वेब पोर्टल हरमुद्दा डॉट कॉम में समाचार भेजने के लिए हमें harmudda@gmail.com पर ईमेल करे आरकॉम कम्पनी हुई दिवालिया, अन्ततः हारे लड़ाई -

आरकॉम कम्पनी हुई दिवालिया, अन्ततः हारे लड़ाई

1 min read

हरमुद्दा डॉट कॉम

मुंबई। रिलायंस कम्युनिकेशन्स या आरकॉम कंपनी दिवालिया हो चुकी है। उसका ये हाल उसके प्रतिद्वंद्वियों ने किया जिनमें उनके बड़े भाई मुकेश अंबानी की जियो का अच्छा-ख़ासा योगदान है। शेयर बाज़ार में भारी घाटे ने आरकॉम की कमर तोड़ दी। पिछले कई साल से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही कंपनी ने अब आख़िरकार कोर्ट में क़र्ज़ की समस्या के समाधान के लिए अर्जी लगाई है.

सात अरब डॉलर के क़र्ज़ के नवीनीकरण में नाकाम होने के बाद रिलायंस ने यह घोषणा की है. 13 महीने पहले क़र्ज़दाताओं ने इस पर सहमति जताई थी लेकिन बात नहीं बन पाई.

दिसंबर 2017 में क़र्ज़ नवीनीकरण की प्रक्रिया तब फंस गई जब अनिल अंबानी के कारोबार के ख़िलाफ़ क़ानूनी लड़ाई और विवादों का सिलसिला बढ़ता गया.

आरकॉम ने पिछले हफ़्ते शुक्रवार की रात एक बयान जारी किया और कहा कि वो नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल, इंडिया बैंकरप्सी कोर्ट में दिवालियापन के नए नियमों के तहत क़र्ज़ की समस्या का समाधान करना चाहती है।अनिल अंबानी

यह नया नियम 2016 में प्रभाव में आया था. इसके तहत नौ महीने के भीतर मामले को सुलझाना होता है.

क़र्ज़ चुकाने में नाकाम रहने वाली कंपनी इस अवधि में अपनी संपत्ति बेच क़र्ज़ चुकता करती है. इस नए नियम के तहत आरकॉम सबसे बड़ी कंपनी के रूप में अपने क़र्ज़ों का निपटारा करेगी.

आरकॉम का कहना है कि बैंकरप्सी कोर्ट में जाने का फ़ैसला सभी शेयरधारकों के हित में है क्योंकि इससे निश्चितता और पारदर्शिता तय अवधि में सामने आ जाएगी.

दिसंबर 2017 में अंबानी ने आरकॉम के क़र्ज़दाताओं से पूर्ण समाधान की घोषणा की थी. अनिल अंबानी ने कहा था कि उनकी कंपनी 3.8 अरब डॉलर की अपनी संपत्ति बेच कर्ज़ों का भुगतान करेगी. इसमें जियो को मुहैया कराई गईं सेवाएं भी शामिल थीं.

लेकिन शुक्रवार की बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज से आरकॉम ने कहा कि कर्ज़दाताओं को प्रस्तावित संपत्ति बिक्री से कुछ भी नहीं मिला है और कर्ज़ से निपटारे की प्रक्रिया अब भी बाधित है.

कंपनी ने अपने बयान में कहा है कि वो अपने 40 विदेशी और भारतीय क़र्ज़दाताओं में सहमति बनाने में नाकाम रही. कंपनी ने कहा कि इसके लिए 40 बैठकें हुईं लेकिन बात नहीं बनी और साथ में भारतीय अदालती व्यवस्था में क़ानूनी उलझनें बढ़ती गईं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed