शख्सियत : कला की विधाएं व्यक्ति को मानवीय बनाने में सक्षम

पूर्व पुलिस अधीक्षक डॉ. लक्ष्मी कुशवाह का कहना
नरेंद्र गौड़
’कविता लिखना, चित्रकारी, नृत्य, संगीत सहित कला की अन्य विधाएं मनुष्य को संवेदनशील और मानवीय बनाने में सक्षम हैं। आज लोग अमानवीय और असंवेदनशील हो रहे हैं, इसके लिए फिल्में, सभी कुछ पाने की जल्दी के साथ आर्थिक सामाजिक परिस्थितियां जिम्मेदार हैं।’

यह कहना है पूर्व पुलिस अधीक्षक डॉ. लक्ष्मी कुशवाह का। इनका मानना है कि श्रेष्ठ कविता की पहचान यही है कि उसे बार- बार पढ़ने की इच्छा जागृत हो। एक से अधिक बार पढ़ने पर कविता का विशद् अर्थ मिलता है। कविता में ऐसा बहुत कुछ होता है जो प्रत्यक्षतः कहा गया नहीं होता, किंतु यही महत्वपूर्ण भी होता है। कई बार इस अनकहे को समझने के लिए हम कविता में पुनः झांकते हैं। श्रेष्ठ कविताओं में अक्सर कवि अनुपस्थित होता है। कविता में कवि जितना अनुपस्थित दिखता है, वह उतना ही अधिक उपस्थित होता है।
अमूर्त माध्यमों से व्यक्त होते हैं विचार
एक सवाल के जवाब में डॉ. कुशवाह ने कहा कि विचार अमूर्त होता है। कवि विचार को मूर्त माध्यमों से व्यक्त करता है। कविता की बिम्ब पृष्ठि में विचार संदर्भित हो जाते हैं। अर्थ के आलोक में अथवा कविता की अनुगूंज में केंद्रीय विचार ध्वनित हो जाता है। एक श्रेष्ठ कविता हमें एक नहीं अनेक बार पढ़ने को मजबूर करती है। मसलन बाबा नागार्जुन की कविता ’अकाल के बाद’ यह कविता हमें प्रेरित करती है कि हम भी ऐसी कविता लिखें।
श्रेष्ठ कविता समाज सापेक्ष
डॉ. कुशवाह ने कहा कि श्रेष्ठ कविता के विभिन्न संदर्भ जन-जीवन में निहित होते हैं। एक हरे भरे पौधे की जड़ें जिस तरह जमीन में फैली रहती हैं, ठीक उसी तरह एक श्रेष्ठ कविता के संदर्भ सूत्र उसका तंतु जाल जन-जीवन में फैला होता है। जीवन की बाहरी और अंतः क्रियाएं कविता में अपनी जगह बना लेती हैं। कविता कवि के विचारों से संयुक्त होकर उन्हें पुनः हमारे समक्ष प्रस्तुत करती है। कविता के संदर्भ हमें फिर अपने व्यापक परिप्रेक्ष्य के समक्ष ला खड़ा करते हैं। कविता की जड़ें समाज में होती हैं और समाज सापेक्ष होना आधुनिक ही नहीं असल कविता की भी पहली शर्त हैं।
कविता साहित्य की कठिन विधा
डॉ. लक्ष्मी का कहना था कि कविता साहित्य की सर्वाधिक कठिन विधा हैं। अच्छी कविता आसानी से नहीं लिखाती। अनेक बार कोई विचार दीमाग में लगातार चलता है, लेकिन कविता का रूप नहीं ले पाता और कभी अचानक कोई कविता लिखा जाती हैं। इसे टपकी हुई कविता कहते हैं और अगर उसे तुरंत लिख नहीं लिया गया तो वह फिर हाथ नहीं आती। कविता लिखना भी एक प्रकार की साधना है।
सामाजिक कार्यों में इन दिनों व्यस्त
डॉ. कुशवाह, पुलिस अधीक्षक, पुलिस प्रशिक्षण शाला उमरिया से सेवा निवृत्त होने के बाद सामाजिक कार्यों में व्यस्त हैं। कविता आज से नहीं बरसों से लिखती रही हैं। बीए, एलएलबी, मास्टर डिग्री इन सॉशल वर्क, मास्टर डिग्री इन योग, रेकी प्राकृतिक चिकित्सा (एन डी) के अलावा आप पशु संचारक (पशु संवादक) भी हैं। म०प्र के विभिन्न जिलों में पदस्थ रही हैं। इन्हें पुलिस विभाग में सेवारत् रहते हुए 38 वर्षों का व्यापक अनुभव है।
पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित
डॉ. कुशवाह के अनेक आलेख छप चुके हैं। इनमें महिलाओं के प्रति अपराध एवं कानूनी प्रयास, सब इन्सपेक्टर हेतु केस स्टडी शामिल हैं। साझा कविता व कहानी संकलन भी छपे हैं। काव्य पुस्तिका ’मैना की बैना’ प्रकाशित तथा चर्चित रही है। लिंग भेद एवं महिला सशक्तिकरण को लेकर पुस्तकों का प्रकाशन, डीएसपी के लिये केस स्टडी प्रशिक्षण में केस स्टडी का महत्व को लेकर इनकी कृतियां छप चुकी हैं।
अनेक पुरस्कारों से सम्मानित
डॉ. कुशवाह को कई विशिष्ट सम्मान व पुरस्कार प्रदान किए जा चुके हैं। इनमें भारत सरकार द्वारा गोविन्दवल्लभ पंत पुरस्कार, महिलाओं के प्रति अपराध एवं कानूनी प्रयास के लिये, राज्य स्तरीय कस्तूरबा गांधी पुरस्कार तीन बार (महिलाओं एवं कमजोर वर्गों के प्रति संवेदनशीलता एवं त्वरित कार्यवाही हेतु), वूमैन आवाज सम्मान, भारत सरकार द्वारा प्रदत्त गोविन्दवल्लभ पंत पुरस्कार, नारी शक्ति सम्मान, शब्द शक्ति सम्मान, राजपूत महिला शक्ति अपराजिता सम्मान, भारत के गृहमंत्री अमित शाह द्वारा पुलिस प्रशिक्षण में उत्कृष्ट सेवा सम्मान के अलावा वर्ष 2021 में राष्ट्रपति द्वारा पुलिस पदक, उत्कृष्ट सेवा के लिये विशिष्ट सम्मान एवं अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
डॉ. लक्ष्मी कुशवाह की कविताएं
गौरैया कहां गई?
कहाँ गई गौरैया अब तुम
आती क्यों नहीं?
चिन- चिन करके घर में
शोर मचाती क्यों नहीं?
दाना दुनका डाल दिया है
छत आँगन में
यूँ ही पड़ा रह गया
बिखरा तुम खाती क्यों नहीं?
झाड़ू रख छोड़ा है मैंने
पीछे आँगन में
आकर तिनका तोड़
घरौंदा तुम बनाती क्यों नहीं?
तरह – तरह के पक्षी
हमको दिखते तो हैं!
तुम जैसे अंगना आके
वो फुदकते ना हैं
बहन, बेटियों- सी क्या
अब तुम हो गई हो?
लंबी उड़ारी भर- भर
क्या परदेस गई हो?
सुना है हमने तुम पर भी
संकट छाया है
गौरैया बचाओ जैसा
एक नारा आया है!
आकर इस नारे को
तुम झुठलाती क्यों नहीं?
कहाँ गई गौरैया अब तुम
आती क्यों नहीं?
कहाँ गई गौरैया अब
तुम आती क्यों नहीं?
नारी
ना जाने कौन से मुहूर्त में
ईश्वर ने नारी को बनाया
रीझ जाये कोई भी उस पर
ऐसे गुणों से सजाया
नारी के बिना क्या हालत होती
इस जगत की?
ये सोच फिर उसे ममतामयी बनाया
रस्ते ऊबड़ – खाबड़ हों
या हो कँटीले
तकलीफ जो भी मिले
चुपचाप ये सह ले
स्त्रीत्व पे अपने कभी आँच
न आने दे
कहीं पत्थर- सा कठोर
कहीं उसे रबर- सा
लचीला बनाया
कहीं करुणा का सागर
कहीं आग का दरिया बनाया
कभी नर्म कभी शक्ति का पुंज बनाया
ऐसा लगता है जैसे
परमात्मा ने सभी खूबियों को
एकत्रित कर
अपनी इस अनुपम कृति नारी को
किसी विशेष मुहूर्त में
विशेष मिट्टी से
अपने ही हाथों से रचकर
अनमोल संतुलित
शक्ति का रूप बनाया
वक्त
वक्त बड़ा ही है बलवान
समय पे कर ले जो पहचान
संभल के करता है जो काम
उसी के बनते हैं सब काम
मुसीबत जितनी भी आ जाये
संग समय के ही वो जाये
कौन है अपना कौन पराया
वक्त ने ही तो ये समझाया
अगर चले विपरीत हवायें
मन को थामे न घबरायें
थम ही जाएँगे तूफान
वक्त करे है दवा का काम
वक्त न आये वक्त से पहले
चाहे कोई कुछ भी कर ले
लिखा भाग्य में जो कुछ अपने
वक्त ही देगा कर्म तो कर ले।
