कमलनाथ सरकार फ्लोर टेस्ट से परेशान, प्रदेश के लाखों विद्यार्थी दे रहे इम्तिहान, उनकी सेहत का नहीं सरकार को ध्यान

🔲 हेमंत भट्ट

कोरोना वायरस से चहुओर हाहाकार मचा हुआ है। सोमवार को कमलनाथ सरकार फ्लोर टेस्ट से हुई परेशान। मगर प्रदेश के लाखों विद्यार्थी दे रहे इम्तिहान। उनकी सेहत का नहीं सरकार को ध्यान। इस मुद्दे पर जनप्रतिनिधि, जिला प्रशासन के अधिकारी, सामाजिक संगठन की चुप्पी कर रही हैरान। बुलंद आवाज उठाते हुए परीक्षा को तत्काल स्थगित कर आगे बढ़वाने का चलाएं अभियान। युवा वर्ग का भविष्य और सेहत बनी रहे आसान।

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कदम-कदम और पल-पल पर बढ़ती जा रही सतर्कता

यह विडंबना नहीं तो और क्या है? देश के साथ प्रदेश में कोरोना वायरस को लेकर कदम कदम और पल पल पर सतर्कता बरती जा रही है। एहतियात के तौर पर धारा 144 लगाई गई है। कोई चार व्यक्ति एक स्थान पर इकट्ठे खड़े नहीं हो सकते। सामाजिक कार्यक्रम प्रतिबंधित है। सामूहिक भोज प्रतिबंधित है। सिनेमाघर, होटल, रेस्टोरेंट, मेले, पूजा अर्चना स्थलों आदि पर भी आने-जाने से रोक लगाई गई है। लोगों के संपर्क से दूर रहने का आह्वान किया जा रहा है।

मंदिर जाने तक पर लगा दी है रोक

अमूमन तो भक्त भगवान से अपनी खैरियत मांगने जाता है लेकिन अब भक्त खैरियत से रहे इसलिए भगवान से वह दूरी बना रहा है। ताकि भगवान के दर्शन और आशीर्वाद बाद में भी ले सके। अभी कोरोना से जो से बचना है।
इसीलिए जागरूको ने मंदिर जाने तक पर रोक लगा दी है।
मुंबई का सिद्धिविनायक मंदिर, शिर्डी का साईं मंदिर, कामाख्या देवी मंदिर, उज्जैन का महाकाल मंदिर आदि पर दर्शनार्थियों की रोक लगा दी गई है। आम और खास कोई भी भक्त मौजूद नहीं रहेंगे।

नए साल का नहीं होगा लड्डू बाफले से का स्वागत

शासन और जिला प्रशासन के आह्वान पर संस्था और समाजजनों ने भारतीय नए वर्ष, नव संवत्सर, गुड़ी पड़वा पर होने वाले सामूहिक गोठ के आयोजन को भी निरस्त कर दिया गया है। इस बार नए साल का स्वागत लड्डू बाफले की गोठ से नहीं होगा। घर में ही नए साल का स्वागत करके घर का भोजन करेंगे। इतना ही नहीं छोटे-छोटे आयोजन पर भी सरकार की नजर है। वह बार-बार लगातार आमजन से आह्वान कर रही है कि कोई भी ऐसे आयोजन न किए जाए जहां पर 15-20 लोगों की भीड़ भाड़ हो जाए। हर एक व्यक्ति इधर-उधर आने जाने से बचे। जितना हो सके घर में रहे या यदि बाहर जाना भी हो रहा है तो सेनीटाइजर से हाथ धोएं।

बना दिया लोगों को पारिवारिक

कोरोना वायरस ने तो लोगों को पारिवारिक बना दिया है। इधर उधर घूमने वाले लोग घर परिवार को ज्यादा समय देने लगे हैं। पारिवारिक हो गए हैं। साथ ही भारतीय संस्कार को भी तवज्जो देने लगे हैं। हाथ मिलाने की बजाय दूर से राम-राम कर रहे हैं। अच्छा है। जितना पालन होगा उतना ही स्वस्थ रहेंगे। कोई टेंशन, कोई दिक्कत सेहत को लेकर नहीं होगी

परीक्षा देने के लिए मजबूर हैं विद्यार्थी, संक्रमण का खतरा उन्हें भी

मगर प्रदेश सरकार ने तो लाखों युवाओं को माध्यमिक शिक्षा मंडल भोपाल की व अनेक विश्वविद्यालयों की वार्षिक परीक्षा देने के लिए मजबूर कर दिया है। उनकी सेहत पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जबकि एक परीक्षा केंद्र पर एक हजार विद्यार्थी मौजूद रहते हैं और एक कक्ष में 50 से 60 विद्यार्थी परीक्षा दे रहे हैं। 3 घंटे से अधिक समय तक सभी परीक्षार्थी एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं। साथ ही परीक्षक भी उसी रूम में परीक्षार्थियों पर नजर जमाए हुए हैं। उनको भी कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने का खतरा है।

लाखों विद्यार्थियों के सेहत की चिंता नहीं

वही हाल में करीब 200 विद्यार्थी परीक्षा में शामिल हो रहे हैं। ऐसे में जब भी परीक्षा केंद्र जा रहे हैं तो उन्हें ना कोई सैनिटाइजर से हाथ धुलवा रहे हैं। न ही उनकी सेहत का कोई ख्याल रखा जा रहा है। ऐसे में यदि कोई परीक्षार्थी इस से पीड़ित वहां पर पाया जाता है तो कोरोना वायरस का फैलने का अंदेशा बढ़ जाता है। लेकिन सरकार को लाखों विद्यार्थियों के सेहत की चिंता नहीं है। वे तो बस परीक्षा संपन्न करवाना चाहती है। आखिर जान रहेगी तो परीक्षा तो अगली बार भी दी जा सकेगी लेकिन परीक्षा को आगे बढ़ाने में सरकार को क्या दिक्कत है? यह समझ से परे है। इस बारे में चिंतन करना चाहिए। देश और प्रदेश के प्रबुद्ध लोगों को चाहिए कि वे सरकार को मजबूर करें कि परीक्षा महीना या 15 दिन आगे बढ़ा देंगे तो युवाओं का भविष्य बेहतर हो जाएगा मगर परीक्षा के दौरान यदि कुछ अनहोनी हो गई तो इसका जिम्मेदार कौन होगा?

ताकि युवा वर्ग का भविष्य और सेहत बनी रहे

उल्लेखनीय है कि जितना ध्यान कोरोना वायरस से बचने के लिए शहरों में दिया जा रहा है और लोग जागरूक हो रहे हैं। उतना ग्रामीण अंचलों में नहीं। अतः अधिकांश विद्यार्थी परीक्षार्थी ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में आते हैं तो वे ज्यादा संक्रमण के शिकार होते हैं और वे वायरस को फैलाने में परिवहन का कार्य करेंगे जबकि शासन बार-बार लगातार अपील कर रहा है कि कम से कम यात्रा करें। कम से कम इधर-उधर जाएं। लेकिन सरकार ही परीक्षार्थियों को एक गांव से दूसरे शहर भेजने को आतुर है।

आखिर क्यों है चुप्पी ?

इस मुद्दे पर जनप्रतिनिधि, जिला प्रशासन के अधिकारी, सामाजिक संगठन चुप्पी साधे हुए हैं। शासन प्रशासन को चाहिए कि इस दिशा में वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत कराते हुए परीक्षा को तत्काल स्थगित कर आगे बढ़ाया जाए ताकि युवा वर्ग का भविष्य और सेहत बनी रहे।

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