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जो हँसकर जीते हैं उन्हें मिलता हर क्षण प्रभु का आनंद : राष्ट्रसंत ललितप्रभजी

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🔲 राष्ट्रसंतों का त्रिपोलिया गेट पर धूमधाम से हुआ मंगल प्रवेश

🔲 घर को कैसे स्वर्ग बनाएं पर बुधवार को होगा सत्संग प्रवचन

🔲 राजेन्द्र कोठारी
रतलाम 17 मार्च। राष्ट्रसंत ललित प्रभजी महाराज ने कहा कि जीवन प्रभु का प्रसाद है। जिन्हें जीने की कला आती है, उनका जीवन बांस नहीं संगीत पैदा करने वाली बांसुरी बन जाता है। हम रोकर जीते हैं या हँसकर यह हमारे ऊपर निर्भर है। जो रोकर जीते हैं वे हर दिन मरने की सोचते हैं, पर जो हँसकर जीते हैं वे हर क्षण को प्रभु का प्रसाद मानकर आनंद भाव से जीते हैं।

संतप्रवर मंगलवार को श्री जैन श्वेतांबर खरतरगच्छ श्री संघ द्वारा जीने की कला पर आयोजित चार दिवसीय प्रवचन माला के पहले दिन त्रिपोलिया गेट स्थित खरतरगच्छ उपाश्रय में सैकड़ों श्रद्धालु भाई बहनों को संबोधित कर रहे थे।

शुकराना के भाव से भरे रहेंगे तो हमें थोड़ा भी बहुत लगेगा

उन्होंने कहा कि हमें सुबह उठने के बाद और सोने से पहले प्रभु को शुकराना अवश्य समर्पित करना चाहिए। जिसकी कृपा से हमें दुनिया का सबसे दुर्लभ मनुष्य जीवन मिला, जीने की व्यवस्था मिली और जीवन में कुछ कर गुजरने की सोच बनी। अगर हम शुकराना के भाव से भरे रहेंगे तो हमें थोड़ा भी बहुत लगेगा और शिकायत के भाव से भरे रहेंगे तो सब कुछ भी थोड़ा ही लगेगा।

तकरार हटाएं और प्यार बढ़ाएं

उन्होंने कहा कि जो लोग प्यार से जीते हैं उन्हें जीते जी भी याद किया जाता है और मरने के बाद भी, पर जो लड़ लड़ कर जीते हैं वे जीते जी भी खटकते हैं और मरने के बाद बहुत जल्दी भुला दिए जाते हैं। जीवन को आनंद पूर्ण तरीके से जीने के लिए जरूरी है कि हम तकरार हटाएं और प्यार बढ़ाएं। हमें गुस्सा करने, नाराजगी दिखाने, गाली देने या नफरत करने का हक है, पर हम उसकी लिमिट अवश्य बनाएं। उसे सेकंड या अधिकतम मिनटों में खत्म करने की कोशिश करें। अगर हम घंटों तक नफरत और नाराजगी में जिएंगे तो इंसान के तल से गिरकर पशु के तल पर पहुंच जाएंगे।

स्वर्ग और नर्क हमारी हथेली में

उन्होंने कहा कि स्वर्ग आसमान में या नर्क पाताल में नहीं बल्कि हमारी हथेली में ही है। अगर हम अतीत को देखते रहेंगे तो नर्क की आग में झुलसते रहेंगे, हमें अतीत की यादों में खोए रहने की बजाय भविष्य के ऊंचे और अच्छे सपने देखने चाहिए और वर्तमान को उसके लिए समर्पित करना चाहिए ताकि हम आने वाले कल में स्वर्ग के सुंदर चित्रों को उकेर सकें। गुस्सा करने से बचने की सलाह देते हुए संत प्रवर ने कहा कि गुस्सा करने से नरक का द्वार खुलता है।अगर आप बुजुर्ग हैं तो गुस्से को बंद करें और जवान हैं तो गुस्से को बंद करें। याद रखें, सिकंदर बनकर पूरी दुनिया को जीतना सरल है, पर महावीर बनकर अपने क्रोध और कषाय को जीतना सबसे बड़ी विजय है। अगर हम अपनी ह्यूमन लाइफ को हैवन लाइफ बनाना चाहते हैं तो हमें 3h को सदा ठीक रखना चाहिए : हैड,  हार्ट एंड हैंड। केवल पढ़ाई में ऊंचे अंक हासिल कर लेना या बहुत सारे रुपए कमा लेना ही सफलता नहीं है, वरन विपरित वातावरण में धैर्य और शांति बनाए रखना भी बहुत बड़ी जीवन की सफलता है। गुस्सा आने पर चिल्लाने में जितनी ताकत लगती है उससे 10 गुनी ताकत चुप रहने में लगानी पड़ती है। हम माइंड से गर्मी हटाएं और नरमी बढ़ाने की कोशिश करें। जैसे गरम सूर्य को कोई नहीं देखता वैसे ही गर्म इंसान को कोई पसंद नहीं करता है।

गुस्से को मारना है तो मुस्कान को बढ़ाएं

जीवन में मुस्कान बढ़ाने की सीख देते हुए संत प्रवर ने कहा कि अगर गुस्से को मारना है तो मुस्कान को बढ़ाएं। जैसे जैसे मुस्कान आएगी वैसे वैसे गुस्सा विदा होता चला जाएगा। गुस्से से जहां हमारी स्मरण शक्ति और भाग्य शक्ति कमजोर हो जाती है वहीं मुस्कान से हमारे जीवन की खुशियां 100 गुना बढ़ जाती है। मुस्कुराता हुआ इंसान सबको प्यारा लगता है और गुस्से से भरा इंसान सबको नागवारा लगता है। हम उस चेहरे के इंसान बनें जिसे देखकर सबके दिलों में हंसी और खुशी बढ़ जाए।

व्यक्तित्व को धूमिल करता क्रोध

उन्होंने कहा कि प्रेम सबसे कीजिए, पर गुस्सा किसी पर मत कीजिए। क्रोध आपके व्यक्तित्व को धूमिल करता है, वहीं प्रेम उसे और अधिक निखारता है। क्रोध की बज़ाय शांति को तवज़्ज़ो दीजिए। ईष्र्या की बज़ाय सम्मान की भावना पैदा कीजिए और चिंता की बज़ाय खुशमिजाज रहने की कोशिश कीजिए। सहनशीलता बढ़ाइए। छोटी-छोटी बातों में हताश मत होइये। चिड़-चिड़ापन आपके रिश्तों में खटास घोलेगा। मुस्कुराइए और सबसे प्रेमचारा बढ़ाइए। उन्होंने कहा कि जो चंदन घिसता है वह भगवान के चरणों में चढ़ता है जो लकड़ी अकड़ी हुई रहती है वह केवल जलाने के काम आती है। छोटी-मोटी बातों को लेकर तकरार मत कीजिए। आप सही हैं तब भी बहस मत कीजिए। राई का पहाड़ बनाने से केवल रंजिश ही बढ़ती है। चेहरे के सौंदर्य पर ज़्यादा ध्यान देने की बज़ाय अपने जीवन को सुन्दर बनाने का प्रयास कीजिए। जीवन की सुन्दरता कुरूप चेहरे को भी ढक देती है। जीवन में दूसरों को झुकाने की नहीं, स्वयं झुकने की भावना रखिए। आम ज्यों-ज्यों पकता है त्यों-त्यों डाली झुकती है। अकड़ी डालियों पर तो खट्टी कैरी ही लगा करती है। उनके प्रति सदा धन्यवाद-भाव रखिए जिन माता-पिता से आप पैदा हुए हैं, अपने उन बड़े भाई-बहिनों के प्रति जिन्होंने आपको पाला है, उस धर्मपत्नी के प्रति जिससे आपको जीवन का सुकून मिला है और उन कर्मचारियों के प्रति जिनकी बदौलत आपके पास दौलत है। अपनी प्रशंसा और औरों की निंदा की आदत से बचिए आत्म-प्रशंसा आपको अहंकारी का पद दे सकती है और निंदा आलोचक का। सदा मधुर वचनों का उपयोग कीजिए। कड़वी बात का भी मधुर जवाब दीजिए। जैसे पिस्तौल से छूटी गोली और माँ के पेट से निकला बच्चा वापस भीतर नहीं जा सकता वैसे ही बोले हुए वचन को वापस लौटाया नहीं जा सकता। याद रखिए, हर बात सोचने की तो होती है, पर बोलने की नहीं होती। जो सोचा है वह मत बोलिए अपितु बोलने से पहले यह भी सोच लीजिए कि क्या बोला जाए और कितना बोला जाए।

औरों को सम्मानित होते देखकर
खुशी का करें अनुभव

उन्होंने कहा कि हर जगह सम्मान पाने की कोशिश मत कीजिए। औरों को सम्मानित होते देखकर
खुशी अनुभव कीजिए। इससे बढ़कर आपका सम्मान क्या हो सकता है कि आप अपने हाथों औरों को सम्मान दे रहे हैं।जीवन में विनम्रता की आदत डालिये। कुँए में उतरने वाली बाल्टी यदि झुकेगी तो ही पानी भरकर ला पायेगी। जीवन का भी यही गणित है जो नमेगा वह सबको गमेगा। दादागिरी तो हम मरने के बाद भी कर सकते है लोग पैदल चलेंगे और हम उनके कंधो पर। अपने हाथों से औरों का सदा भला करने की कोशिश कीजिए। सदा याद रखिए कि औरों का हित करने वाला दैवीय मार्ग का अनुयायी होता है जबकि स्वार्थ से घिरा हुआ इंसान भगवत्-कृपा से वंचित होता है। विपत्ति आये तो कोई आपत्ति मत कीजिये। उसका धैर्य पूर्वक सामना कीजिये। अग्नि से गुजरकर सोना और अधिक निखरता ही है।

थावरिया बाजार से निकली सत्संग के लिए शोभायात्रा

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इससे पूर्व संत ललित प्रभ और डॉ. मुनि शांतिप्रिय सागर महाराज के थावरिया बाजार स्थित श्री आदिनाथ जैन मंदिर पहुंचने पर श्रद्धालुओं द्वारा स्वागत किया गया और वहां से सत्संग शोभायात्रा शहर के अनेक मार्गों से होती हुई त्रिपोलिया गेट पहुंची जहां जैन समाज और अन्य समाज के सैकड़ों गुरु भक्तों ने जयकारे लगाकर गुरुदेव का स्वागत किया। राष्ट्रसंतों के अभिनंदन में जगह-जगह अक्षत उछाल कर और श्रीफल चढ़ाकर श्रद्धालुओं ने आशीर्वाद लिया।

यह थे मौजूद

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कार्यक्रम में कांतिलाल चौपड़ा, मनोहर छाजेड़, अशोक एम चौपड़ा, अशोक जे चौपड़ा, चितरंजन लालन, हेमंत बोथरा, विक्रम सिंह कोठारी, पारसमल छाजेड़, राजकुमार संचेती, प्रदीप लालन, वर्धमान सराफ, राजेंद्र सिंह कोठारी, जितेंद्र चौपड़ा, श्रेणिक सराफ, गौरव कांवेडिया, जय सकलेचा, आशीष चौपड़ा, एवं विचक्षण महिला मंडल, विचक्षण बहू मंडल की बहनों सहित अनेक श्रद्धालु उपस्थित थे। संचालन संघ मंत्री हेमंत बोथर ने किया। आभार कांतिलाल चौपड़ा ने माना।

घर को कैसे स्वर्ग बनाएं विषय पर प्रवचन 18 को 

संत प्रवर कल बुधवार को खरतरगच्छ उपाश्रय में सुबह 9 बजे घर को कैसे स्वर्ग बनाएं विषय पर जनमानस को संबोधित करेंगे

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