आने-जाने के सब रास्ते अवरुद्ध हैं, तो क्या यही है तीसरा विश्वयुद्ध

आने-जाने के सब रास्ते अवरुद्ध हैं, तो क्या यही तीसरा विश्वयुद्ध है

1584448133280_______________

हाथ मिलाने पर रोक लगी हुई है
तो दिल मिलाने पर भी लगी होगी,
साँस लेने और छोड़ने पर है कड़ी पहरेदारी
तो जीना-मरना अपने हाथ में नहीं है।
स्कूल बंद, काॅलेज बंद,
बाग-बगीचों में गहरा सन्नाटा,
मंदिरों में भक्तविहीन प्रतिमाएँ
अकेले ढोल पीट रही हैं,

विषाणुओं की सरकार

काबिज है इस वक्त भूमंडल पर,
छबिगृहों के चिर परिचित अंधेरे में
अब रंगीन प्रकाश की किरणों का
आवागमन नहीं,
इधर से उधर और उधर से इधर
आने-जाने के सब रास्ते अवरुद्ध हैं,
तो क्या यही तीसरा विश्वयुद्ध है।

रेलगाड़ियाँ दौड़ रही हैं खाली-खाली,
घरों में दुबके हुए हैं दुनिया भर के
शेर, चीते, सफेद हाथी, चतुर सियार।
हवाई जहाज से उतरे हुए मेहमानों को लेने
कोई नहीं पहुँच रहा अनजाने डर में।
पूरा संसार पेटी में बंद होने को है,
जब भी खोल कर देखेंगे बच्चे इस पेटी को,
क्या पता ? भीतर से रेगिस्तान ही निकले।
कलिंग जैसा ही कुछ मचा हुआ है यहाँ-वहाँ
और इधर नहीं कोई बुद्ध है,
तो क्या यही तीसरा विश्वयुद्ध है।

अफरा-तफरी मची है,
सियासत का पारा बहुत गरम है,
किसी के भी कंधे पर पाँव रख कर
चढ जाना चाहता है कोई भी कभी भी
और नीचे टांग खींचने वालों का हुजूम।
मौत का इतना बड़ा कुआ
दिखाया जा रहा है इन दिनों
पर किसी की रूह नहीं काँपती,
क्योंकि वह लापता है कुछ समय से।
कोई जप रहा है मृत्युंजय,
कोई हवन में घी उंड़ेल रहा है।
जल्लादों के बीच खड़ा हुआ इंसान
अपनी गर्दन बचाये रखने के जतन में है,
जल अशुद्ध है, हवा भी कहाँ शुद्ध है,
तो क्या यही तीसरा विश्वयुद्ध है।

प्रकृति के सब दस्तावेज जले हुए,
त्यौहारों के सब वंदनवार मुरझाये हुए,
बच्चे सहमे हुए, माँ घबरायी हुई,
पिता आदमी से बचते हुए लौट रहे देर रात,
दवाखानों की शाम का सूरज उदास है,
हलवाई ने छोड़ दिया
तरह-तरह की मिठाइयाँ बनाना,
मक्खियाँ भिनभिना रही हैं
भोजनालयों में, होटलों में, शादीघर में।
नाचने-गाने पर बंदिश, मिलने-जुलने पर बंदिश,
सबके सब आक्रमण की मुद्रा में है,
तोप के मुँह खुले हुए, तलवारें खींची हुईं,
आदमी क्रुद्ध है, औरतें क्रुद्ध हैं,
तो क्या यही तीसरा विश्वयुद्ध है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *