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तो बुढ़ापे में हमारे भाग्य का खराब होना तय : राष्ट्रसंत ललितप्रभजी

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🔲 राष्ट्रसंतों की प्रेरणा से कई लोगों ने गुटखा, सिगरेट शराब का किया आजीवन त्याग

🔲 राजेन्द्र कोठारी

रतलाम 18 मार्च। राष्ट्रसंत ललितप्रभजी महाराज ने कहा कि सुंदर मकान का निर्माण पत्थरों से होता है, सुंदर शहर का निर्माण पेड़ों से होता है, पर सुंदर मानव जाति का निर्माण नई पीढ़ी को संस्कारित करने से होगा। अगर हमने बच्चों को भाग्य के भरोसे छोड़ दिया तो बुढ़ापे में हमारे भाग्य का खराब होना तय है।

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संतप्रवर बुधवार को श्री जैन श्वेतांबर खरतरगच्छ श्री संघ द्वारा जीने की कला पर आयोजित चार दिवसीय प्रवचन माला के दूसरे दिन त्रिपोलिया गेट स्थित खरतरगच्छ उपाश्रय में सैकड़ों श्रद्धालु भाई बहनों को संबोधित कर रहे थे।

तो सारे तीर्थों का मिलेगा पुण्य

राष्ट्रसंत ने कहा कि पालीताणा या तिरुपति तीर्थ की हजारों सीढ़ियां चढ़कर यात्रा बाद में करें पहले जिनसे आपकी बोलचाल बंद है उनके घर की 4 सीढ़ियां चढ़कर उन्हें गले लगा कर आएं तो आपको घर बैठे दुनियाभर के सारे तीर्थों की यात्रा करने का पुण्य फल मिल जाएगा और संवत्सरी पर्व धन्य हो जाएगा। उन्होंने कहा कि इस दुनिया में कोई भी दूध का धुला हुआ नहीं है, गलतियां सबसे होती है, पर ईश्वर उन्हीं की गलतियों को माफ करता है जो दूसरों की गलतियों को माफ करने का बड़प्पन दिखाता है। 36 इंच का सीना उसी का होता है जो माफी मांगने और माफ करने के लिए तैयार रहता है। उन्होंने कहा कि जीवन में हो चुकी गलतियों का प्रायश्चित करना बहुत जरूरी है। जैसे गंगा में डुबकी लगाने से तन निर्मल होता है वैसे ही प्रायश्चित की गंगा में डुबकी लगाने से अंतर्मन निर्मल व पवित्र हो जाता है। प्रायश्चित किए बिना पापों से छुटकारा नहीं मिल सकता। उपवास से बड़ा धर्म है प्रायश्चित और प्रायश्चित से बड़ा धर्म है क्षमा मांगना। उन्होंने कहा कि क्षमापना से अतीत को तो सुधारा नहीं जा सकता पर वर्तमान को अवश्य संवारा जा सकता है। क्रोध को समाप्त करने का कीमिया मंत्र है क्षमा। उन्होंने जैन की  नई परिभाषा देते हुए कहा कि जिसके जीवन में सदाचार का संचार है, अहिंसा जिसका अलंकार है, जिसे जीव मात्र से प्यार है, जिसके जीवन में वात्सल्य और सरलता है, विनय और विनम्रता है, जो हर हाल में नेक और एक है, जिसके जीवन में विनय और विवेक है, जो आतंकवादी नहीं अनेकांतवादी है, अन्यायी नहीं अहिंसा का अनुयाई है, जिसके चिंतन में महावीर समाए हैं, जो महावीर का फैन है वही सच्चा जैन है।

नई पीढ़ी को कार देने से पहले दीजिए संस्कार

उन्होंने कहा कि बेहतर विश्व के लिए हमें शिक्षा के साथ साथ संस्कार निर्माण पर भी ध्यान देना होगा। यद्यपि शिक्षा विकास की नींव है। पिछले 50 सालों में शिक्षा के कारण जो विकास हुआ है, वह हजारों वर्षों के इतिहास में भी नहीं हुआ। लेकिन हमें ध्यान रखना चाहिए कि केवल शिक्षा पर जोर देंगे तो यह दुनिया आगे चलकर पंगु बन जाएगी। रिश्तों में दिनों दिन आ रही टूटन, पति पत्नी के बीच बढ़ते तलाक, भाई-भाई में तकरार, माता पिता की सेवा के प्रति उदासीनता संस्कारों की कमी का ही परिणाम है। घर के बाहर खड़ी कार हमारी समृद्धि की पहचान है, पर घर के अंदर के संस्कार हमारी कुलीनता की परिचायक है। हमने बच्चों को कार नहीं दी तो वे 2 दिन रोएंगे और संस्कार न दिए तो वे जिंदगी भर रोएंगे और हमें भी रुलाएंगे। बच्चों को केवल किताबी कीड़ा न बनाएं वरन उन्हें अच्छे मूल्य और अच्छे संस्कार भी देवें ताकि हम उन पर सदा गौरव कर सकें।

ऊंची शिक्षा के साथ जरूरी संस्कार भी

संतप्रवर ने कहा कि राष्ट्रपति के लिए राष्ट्र का संचालन करना सरल है, पर अपने बच्चे का निर्माण करना कठिन है। अगर आप 100 विद्यालय बनाने का पुण्य प्राप्त करना चाहते हैं तो किसी एक बच्चे को संस्कारित बना दीजिए। उन्होंने अभिभावकों से कहा कि अपने बच्चों को उन विद्यालयों में पढ़ाएं, जहां ऊंची शिक्षा के साथ ऊंचे संस्कार भी दिए जाते हैं, नहीं तो वह पैसा कमाना तो सीख जाएगा, पर परिवार का पालन पोषण करना सीख नहीं पाएगा।

बच्चों के मोह में धृतराष्ट्र न बने

देश के एक अमीर घराने का जिक्र करते हुए संतप्रवर ने कहा कि उन्होंने अपने बेटे को विदेशों में पढ़ाया, महंगी कारें चलाने के लिए दी, उड़ाने के लिए एरोप्लेन दिए, अपने सारे जमीन-जायदाद, कंपनी के सारे शेयर और 14 मंजिला मकान तक दे डाला, पर संस्कार न दिए जिसके चलते आज उसके माता पिता को किराए के प्लेट में रहना पढ़ रहा है और किराया चुकाने के लिए पैसे तक नहीं है। अगर हम भी बच्चों के मोह में अंधे धृतराष्ट्र बन जाएंगे तो हमारी संतानें दुर्योधन और दुशासन जैसी निकल जाएगी।

तो वे माता-पिता उत्तम दर्जे के

उन्होंने माता-पिता से कहा कि आप बच्चों को महंगी बाइक दें, मोबाइल दें, रुपए दें, पर उससे पहले उसका सदुपयोग करने की सीख भी देवें। बच्चों को केवल जन्म देने वाले माता-पिता सामान्य दर्जे के होते हैं, संपति देने वाले मध्यम दर्जे के होते हैं, उन्हें गलत प्रवृत्तियों से जोड़ने वाले अधम दर्जे के होते हैं, पर बच्चों को शिक्षा, संपत्ति के साथ साथ ऊंचे संस्कार देने वाले माता-पिता उत्तम दर्जे के होते हैं।

तो नए युग का निर्माण संभव

उन्होंने कहा कि आज के जमाने में पुरानी पीढ़ी के पास अच्छे संस्कार है और नई पीढ़ी के पास अच्छी शिक्षा है। अगर दोनों आपस में तालमेल बिठाकर चले तो नए युग का निर्माण हो सकता है। उन्होंने कहा कि बच्चों को घर का गमला मत बनाइए कि कोई पानी देने वाला न मिले तो वे सूख जाएँ वरन बच्चों को जंगल का पौधा बनाएं ताकि कोई पानी देने वाला न हो तो भी अपने बलबूते खड़े रह सकें।

नैतिकता के, मानवता के, धार्मिकता के संस्कारों का करें बीजारोपण

संतप्रवर ने माता-पिता से कहा कि बच्चों को विनम्रता के संस्कार देवें। जो विनम्र होता है वही विजेता बनता है। बच्चों को प्रणाम करना सिखाएं, उनसे दादा दादी के पांव दबवाएं, उन्हें स्वच्छता रखने का संस्कार देवें, प्रतिदिन स्नान करने, धुले हुए कपड़े पहनने, खाने से पहले हाथ धोने, नाखून साफ रखने और कहीं पर भी गंदगी न फैलाने की सीख देवें। बच्चों में नैतिकता के संस्कार, मानवता के संस्कार, धार्मिक संस्कारों का भी बीजारोपण करें।

अ से अदब, आ से आत्मविश्वास 

संतप्रवर ने अ से अनार, आ से आम, उ से उल्लू वाली वर्णमाला की बजाय अ से अदब करो, आ से आत्मविश्वास रखो, इ से इबादत करो…से जुड़ी जीवन को नई प्रेरणा देने वाली वर्णमाला सिखाई तो श्रद्धालु हतप्रभ रह गए।

करवाए संबोधि योग

राष्ट्रसंतों की प्रेरणा से कई लोगों ने गुटखा, सिगरेट शराब का आजीवन त्याग कर दिया। इससे पूर्व डॉ. मुनि शांतिप्रिय सागर महाराज ने संबोधि योग करवाए।

यह थे मौजूद

कार्यक्रम में कांतिलाल चौपड़ा मनोहर छाजेड़, अशोक एम चौपड़ा, अशोक जे चौपड़ा, चितरंजन लालन, हेमंत बोथरा, विक्रम सिंह कोठारी, पारसमल छाजेड़, राजकुमार संचेती, प्रदीप लालन, वर्धमान सराफ, राजेंद्र सिंह कोठारी जितेंद्र चौपड़ा, श्रेणिक सराफ, गौरव कांवेडिया, जय सकलेचा, आशीष चौपड़ा सहित अनेक श्रद्धालु उपस्थित थे। संचालन संघ मंत्री हेमंत बोथरा ने किया। आभार कांतिलाल चौपड़ा द्वारा ने माना।

प्रवचन के पहले पावरफुल योगा

संत प्रवर कल गुरुवार को खरतरगच्छ उपाश्रय में सुबह 7 से 8 बजे तक पावरफुल योगा के प्रयोग करवाएंगे वह 9.30 बजे जनमानस को संबोधित करेंगे।

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