आजादी की जोत जलाने की मन में ठानी थी वीरांगना महारानी अवंती बाई ने
🔲 162 वां शहीदी दिवस
आजादी की जोत जलाने की उसने मन में ठानी थी। देश की रक्षा के लिए, शहीद हो गई महारानी थी।
भारत के प्रथम स्वत्रंता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ युध्द करने वाली महारानी अवंती बाई का जन्म सन 1831में सिवनी जिले के मनकेड़ी नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता राव जुझार सिंह जी और माता का नाम कृष्णा बाई था। अबन्ति बाई अपने माता पिता की इकलौती सन्तान थी। इनका पालन पोषण बड़े लाड़ प्यार के साथ किया गया। अवंती बाई ने गुरु धर्म सिंह जी से अस्त्र शस्त्र और और युध्द कला सीखी थी। वह घुड़सवारी में निपुण थी इनकी वीरता के चर्चे दूर दूर तक होते थे।
अवंती बाई का विवाह रामगढ़ के राजा विक्रमजीत के साथ संपन्न हुआ परन्तु विवाह के कुछ समय पश्चात राजा विक्रमजीत अस्वस्थ्य हो गए। उस समय देश में अंग्रेजों की हड़प नीति के तहत 13 सितंबर 1851 में रामगढ़ राज्य को कोर्ट ऑफ वार्ड्स के अंतर्गत अधीन कर लिया गया।
इस समय राजा विक्रमजीत जी मृत्यु हो गई। राज काज की जिम्मेदारी महारानी के कंधों पर आ गई। पूरे देश में अंग्रेज़ों के विरुद्घ आक्रोश व्याप्त हो गया था।
अल्प आयु में वीर गति को हुई प्राप्त
महारानी ने आस-पास के जागीरदारों और राजाओं को एकत्रित करके अंग्रेजों के विरुध्द युध्द करने का फैसला किया। 20 मार्च 1858 को रानी अवंती बाई युध्द करते करते मात्र 26 वर्ष की अल्प आयु में वीर गति को प्राप्त हुई। ऐसी महान वीरांगना रानी अवंती बाई के चरणों में शत-शत नमन।
🔲 प्रस्तुति : जयंती सिंह लोधी, सागर