बार-बार दोहराइए- “मैं स्वस्थ हूँ, स्वस्थ ही रहूंगा। मैं आया हूँ धरती पर, किसी लक्ष्य को पाने के लिए

 

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इस कठिन दौर में जीवन का उत्साह बनाए रखने के लिए एक किस्सा साझा कर रहा हूँ, जो मुझे अभी अपने जीवन के दसवें दशक में चल रहे मेरे काका साहब ने सुनाया है। वर्ष 1916 में हमारे मालवा में भयानक महामारी फैली थी। सैकड़ों लोग मर रहे थे। सूचनातंत्र आज की तरह नहीं था। मेरे पितामह धार में थे, पितामही गर्भवती थी। पितामह और पितामही ने गर्भ में पल रहे शिशु की जीवन-रक्षा का निर्णय लिया और वे दोनों भरी बरसात में बैलगाड़ी से लगभग तीन सौ किलोमीटर दूर श्रीनाथजी (नाथद्वारा) के लिए चल पड़े। श्रीनाथजी में पहुँचने के कुछ ही समय बाद पितामही ने एक कन्या को जन्म दिया, जिसका नाम रखा गया-“श्री”, क्योंकि उस पर श्रीनाथ की कृपा हुई थी। वह मेरी श्री बुआ थी।

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यह किस्सा साझा करने का उद्देश्य बहुत साफ है। कठिनाइयाँ हमारी कड़ी परीक्षा लेती हैं। विजयी वही होता है, जो जीवन के साथ है, जिसके उत्साह ने दम नहीं तोड़ा, और जो आँधी और तूफान के बीच भी आने वाले कल के सुंदर सपनों की बुनावट में तल्लीन रहता है।

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घबराने की जरूरत नहीं

कोरोना वायरस फैलने के साथ चारों तरफ दहशत भी फैली हुई है। एक बार लगता है कि सब कुछ समाप्त हो जायेगा। किन्तु ऐसा नहीं है, ऐसा होगा भी नहीं। हैजा, प्लेग, चेचक जैसी महामारियाँ पहले भी फैलती रही हैं, आगे भी फैलती रह सकती हैं, लेकिन आदमी जिंदा रहेगा, हमेशा रहेगा। जो परिस्थिति बनी हुई है, वह हमें जगाने के लिए हैं, प्रकृति  के नियमों की शिक्षा देने के लिए हैं। आपको आचार संहिता की उचित दीक्षा देने के लिए चुना गया यह सही समय है। इससे घबराने की जरूरत कतई नहीं।

प्रकृति की आचार- संहिता का पालन करना नहीं चाहते

वे लोग बहुत पीछे धकेल दिए जाएंगे, जो प्रकृति की आचार- संहिता का पालन करना नहीं चाहते, जिन्होंने उत्साह खो दिया है, जिन्होंने सुंदर सपने खो दिए हैं, जो डर को अपने घर में पाल कर बैठ गए हैं। उनका कोई भविष्य नहीं है, जो युद्ध लड़ने से पहले ही हार मान कर बैठ जाना चाहते हैं। वे अकेले रह जाएंगे, जो बिना कारण ही निराश हो चुके, कुछ किए बिना ही थक गए, जिन्होंने जोश खो दिया, जो छूटना चाहते है इस प्यारी दुनिया से।

नव-सृजन का संकल्प जगाए 

इस समय विशेषज्ञ रोग-प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने पर जोर दे रहे हैं। यदि आप उत्साह से भरे हुए हैं, अपने भीतर किसी नव-सृजन का संकल्प जगाए हुए हैं, और प्राण-शक्ति (वायटल पाॅवर) को जिंदा रखे हुए हैं तो कोई वायरस आपके ऊपर हमला कर ही नहीं सकता। आपको कोई बड़ा भारी युद्ध नहीं लड़ना है। बस, सुंदर जीवन के पक्ष में ताकत के साथ खड़े हो जाइए, और सर्वोच्च शक्तियों का आह्वान करते रहिए। वे आएंगी और आपके ऊपर अपना वरद हस्त रख देंगी।

नकारात्मकता उनके खून में ही नहीं

हममें से कईं हैं, जो नकारात्मकता फैलाने में लगे हैं, मौत का मंजर दिखाने में लगे हैं, लगातार भय के पुतले खड़े कर रहे हैं। ये वे वायरस हैं जो हमें जीने नहीं देना चाहते। इनके विपरीत सरकार हमारी सेवा में निरंतर लगी है। चिकित्सक, मीडियाकर्मी, सामाजिक संस्थाएँ, मानवता में विश्वास रखने वाले लोग बार-बार हमारे जीवन को सुरक्षित करने के सभी सम्भव उपाय सुझा रहे हैं, क्योंकि नकारात्मकता उनके खून में ही नहीं है।

वही आपका बेड़ा पार लगाएगा

हमें यह याद रखना है कि नकारात्मकता के बीज बो कर सकारात्मकता की फसल आ ही नहीं सकती। मृत्यु, अंधकार और असत्य के बीज बोने वालों ने कभी जीवन, प्रकाश और सत्य की फसल नहीं उगाई। व्यर्थ में अपने को सताना और यातना देना बंद कीजिए। मनुष्य के उत्साह को ठंडा होने से बचाने के लिये झूठी अफवाहों को एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल दीजिए। मर-मर कर जीने से अच्छा है शान से जीना, सबको साथ में लेकर जीना।आपके भीतर उत्साह और उमंग का देवता बैठा हुआ है,उसका द्वार खटखटाइए। वही आपका भगवान् है, वही आपका हकीम है,वही आपका सच्चा पथ-प्रदर्शक है, वही आपका बेड़ा पार लगाएगा।

खुशियाँ बाँट कर खुश रहिए

थोड़ा योगाभ्यास कीजिए, कुछ देर आँखें बंद कर ध्यान भी कीजिए। मन को प्रिय लगने वाली कोई प्रार्थना गाइए। मन को प्रिय लगने वाले किसी रचनात्मक कार्य की पुनरावृत्ति कीजिए। जी भर कर हँसिए और दूसरों को हँसाइए। अपने परिवार के सदस्यों को, बुजुर्गों और बच्चों को खुशियाँ बाँट कर खुश रहिए।

 मैं कृतज्ञ हूँ जीने का उत्साह दिया

बार-बार दोहराइए- “मैं स्वस्थ हूँ, स्वस्थ ही रहूंगा। मैं आया हूँ धरती पर, किसी लक्ष्य को पाने के लिए। मुझे उस लक्ष्य को छूना ही है, हर हाल में छूना है। मैं सौ साल तक जीवित रहूंगा, काम करते हुए जीवित रहूंगा। मैं कृतज्ञ हूँ ऊपर वाले का, जिसने मुझे यह अनमोल जीवन दिया, जीने का उत्साह दिया।”

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