क्रोध व तनाव सबसे बड़े अभिशाप : आचार्यश्री विजयराजजी महाराज
हरमुद्दा
रतलाम, 8 अप्रैल। तन का स्वास्थ्य, मन का आहलाद भाव और आत्मा का आनंद क्रोध और तनावों में जीकर प्राप्त नहीं किया जा सकता। ये कोरोना की तरह हमारे दुश्मन है। इन्हें परास्त करने का संकल्प जगाए और इस प्रक्रिया में लगे रहे, तभी जीवन की सार्थकता है। समझ शक्ति, संकल्प शक्ति और सहन शक्ति से क्रेाध और तनावों पर विजय प्राप्त होगी, अन्यथा क्रोध व तनाव जीवन के सबसे बडे अभिशाप रहेंगे।
यह बात शांत क्रांति संघ के नायक, जिनशासन गौरव, प्रज्ञानिधि, परम श्रद्वेय आचार्यप्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। सिलावटो का वास स्थित नवकार भवन में विराजित आचार्यश्री ने धर्मानुरागियों को संदेश देते हुए कहा कि वर्तमान की प्रगतिशील और प्रतिस्पर्धात्मक जीवन शैली में व्यक्ति अधीरता और विवेक शून्यता की और बढता जा रहा है। इसी कारण वह क्रोधी और तनावग्रस्त हो रहा है। क्रेाध और तनाव एक-दूसरे के पूरक एवं प्रेरक बनते है, तो जिससे जीवन में कटुता जन्म लेती है। इससे जो संबंध मधुर, उदार और पवित्र रहने चाहिए, वे कटु, उग्र और क्षुद्र बन जाते है। क्रोध और तनाव ही मानव-मानव को रोगी बनाकर उनके जीवन को संकट में डाल रहे है। इनसे कई रोगों और मानसिक दोषों का जन्म होता है। व्यक्ति उपर से शांत दिखता है, लेकिन भीतर से टूटा-टूटा सा जीवन जीता है। तनाव और क्रोध के कारण आज कर कोई बेचैन और समस्या ग्रस्त है। उसके साथ वर्तमान का खानपान, फास्ट फूड, जंक फूड, हाई ब्रीड व रासायनिक खाद के साथ खान-पान की चीजों में केमीकल्स का प्रयोग एवं बढता प्रदूषण आदि कोढ में खाज वाली कहावत चारितार्थ कर रहे है।
क्रोध से क्रोध कभी शांत नहीं होता
आचार्यश्री ने कहा कि क्रोध और तनाव से मुक्त होने के लिए ज्ञानियों ने समझ और संकल्प का मार्ग बताया है। क्रोध से क्रोध कभी शांत नहीं होता, क्रोध आग है, तो सही समझ पानी है। सही समझ का संकल्प पूर्वक प्रयोग करने पर यह आग शांत हो जाती है। क्रोध को क्रोध से शांत करना दमन का मार्ग है, जबकि इसके लिए शमन का मार्ग अपनाने की जरूरत है। क्रोध मुक्त व्यक्ति ही तनाव मुक्त रहेगा।
कोरोना के विरूद्ध क्रोध नए कोरोना को जन्म देगा
आचार्यश्री ने संदेश में कहा कि कोरोना के प्रकोप के चलते बहुत सारे लोग क्रोध के शिकार हो रहे है। ऐसे लोग परिस्थितियों और व्यवस्थाओं को दोष दे रहे है, मगर ऐसा करना अज्ञता और अज्ञानता है। कोई भी व्यक्ति परिस्थिति को नहीं बदल सकता, मगर अपनी मन स्थिति को सही तो रख सकता है। मन स्थिति यदि सही होगी, तो व्यक्ति व्यर्थ के क्रोध, क्षोभ, तनाव और उलझनों में नहीं उलझेगा। परिस्थ्तिियां कभी किसी को कहकर नहीं आती। जीवन में यदि अनचाही परिस्थितियां आ गई है, तो उनका धेर्य, साहस और समझदारी से निपटारा करना होगा। कोरोना के विरूद्ध क्रोध नए कोरोना को जन्म देने वाला बन सकता है। इसलिए याद रखे कि क्रोध मानव जीवन की सबसे बडी पराजय है। क्रोध में अंधकार की कालिमा, अग्नि की ज्वाला और मृत्यु की विभीषिका है। क्रोध का दाग ऐसा दाग है, जो हदय की प्रबुद्धता और आत्मा की शुद्धता दोनो को फीका कर देता है।
आधी से उपर आबादी क्रोध व तनाव की शिकार
आचार्यश्री के अनुसार क्रोध और तनाव से किसी का भला नहीं हुआ। विश्व की आधी से उपर आबादी क्रोध और तनावों का जीवन जी रही है। इसी कारण मानसिक बिमारियों का ग्राफ बढता जा रहा है। क्रोध और तनाव भावनात्मक प्रतिक्रियाएं है। मनुष्य की आकांक्षा, इच्छा, कामना, विचारों के अनुरूप कोई कार्य सिद्ध नहीं होता, तो उसे निराशा, तनाव, असंतोष जैसे भाव आंदोलित करते है। इन नकारात्मक भावों से विवेक शून्यता आती है,जो व्यक्ति को अधीर बनाती है। विवेक शून्यता और अधीरता में कई अनर्थ होने लग जाते है, इसलिए क्रोध पतनगामी है। क्रोध का चरित्र सृजनात्मक नहीं अपितु विघ्वंसात्मक है। इससे हर समझदार व्यक्ति को बचना चाहिए। सुख, शांति और आनंद की चाह रखने वाले हर प्रबुद्ध मानव को ज्ञान चेतना और संकल्प चेतना जगानी चाहिए। इस चेतना के जगने पर ही क्रोध और तनाव से मुक्ति प्राप्त होगी।