जीओ और जीने में सहयोग दो के भाव निर्मित हो : आचार्यश्री विजयराजजी महाराज
हरमुद्दा
रतलाम, 9 अप्रैल। शांत क्रांति संघ के नायक, जिनशासन गौरव, प्रज्ञानिधि परम श्रद्वेय आचार्यप्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा कहा कि सबके भीतर जीओ और जीने में सहयोग दो का भाव निर्मित होने चाहिए। अहिंसा, प्रेम, दया और मैत्री की भावना जितनी बलवती होगी, उतना संसार सुख की सांस लेने लगेगा। सबका कुशलक्षेम चाहना अहिंसा का भावात्मक पक्ष है।यह पक्ष मजबूत होने पर ही कोरोना के तांडव से राहत मिल सकती है।
सिलावटो का वास स्थित नवकार भवन में विराजित आचार्यश्री ने धर्मानुरागियों को दिए संदेश में कहा कि जीेने का स्तर साधारण हो अथवा विशेष, सबकी जीवनशेली आज हिंसा से जुडती जा रही है। इस जीवनशेली मेंपरिवर्तन के साथ आज सबके प्रति जीओ और जीने में सहयोग देने का भाव आना आवश्यक हो गया है।। दरअसल जगत के सभी जीव अपना कुशलक्षेम चाहते है। असुरक्षित जीवन कोई भी नहीं चाहता। सबका कुशलक्षेम वहीं चाह सकता है, जिसका सभी जीवों के साथ प्रेम का कनेक्शन जुडा हो। प्रेम अहिंसा का सकारात्मक पहलू है। अहिंसा में यदि प्रेम नहीं हो, तो वह केवल नाम की अहिंसा होगी।
करूणा रखने का दिया संदेश
उन्होंने कहा कि भगवान महावीर ने सभी जीवों के प्रति प्रेम, दया, करूणा रखने का संदेश दिया है। भीतर से जो असुरक्षित, भयभीत, त्रस्त होगा, वही आतंक फैलाकर दूसरों को पीडित करता है। दूसरों को पीडा पहुंचाकर कोई भी व्यक्ति अपना कुशलक्षेम नहीं कर सकता। हिंसा भय है, दुख है और मृत्यु है, इस सत्य को जो जान लेता है, वह व्यक्ति विवेक बुद्धि से संपन्न हो जाता है। विवेक बुद्धि के जागृत होने पर ही अभयदान देने की भावना को बल मिलता है।
परीक्षण के कारण पैदा हो रहे हैं जानलेवा वायरस
आचार्यश्री ने बताया कि आज का आधुनिक स्वास्थ्य विज्ञान दवाओुं तथा सौंदर्य प्रसाधनों के निर्माण और उनके परीक्षण में करोडों मूक एवं निरीह प्राणियों की हिंसा कर रहा है। इसके परिणाम स्वरूप ऐसे वायरस पैदा हो रहे है, जो इंसान की जिंदगी के लिए जानलेवा साबित हो रहे है। यह सोचने लायक है कि क्या दूसरों को दुख देकर आपका सुख सुरक्षित हो सकता है। दूसरो पर घात करके कोई भी अपनी कुशलक्षेम सुनिश्चित नहीं कर सकता है। भगवान महावीर ने हिंसा से बचने के लिए आत्मवत दृष्टि को अपनाने का संदेश दिया है। व्यक्ति जब सभी जीवों को अपने समान समझने लग जाता है, तो हिंसा का दौर थम जाता है।
वायरस के प्रभाव को नहीं खिलाए निकाले संकल्प
आचार्यश्री ने कहा कि दूसरों को दुख पहंुचाने का अर्थ अपने शुभ भावों की हिंसा करना और दूसरों को सुख पहुंचाने का अर्थ अपने शुभ भावों में वृद्धि करना है। जीव मात्र को अभय देने का संदेश यदि प्रसारित किया जाए, तो सबका मन हमेशा शुभ विचारों से भरा रहेगा और हिंसक वृत्ति अपने आप समाप्त हो जाएगी। कोरोना वायरत जैसी महामारी से बचने के लिए भी जीव मात्र के प्रति प्रेम होना आवश्यक है। यदि प्रेम का भाव होगा, तो लोग इस वायरस के प्रभाव को फैलाएंगे नहीं और देश तथा दुनिया में यह अपने आप ही निष्प्रभावी हो जाएगा।