आसक्ति और आकांक्षा के झूले में असंयमी झूलता : आचार्यश्री विजयराजजी महाराज
यह बात शांत क्रांति संघ के नायक, जिनशासन गौरव, प्रज्ञानिधि, परम श्रद्वेय आचार्यप्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। सिलावटो का वास स्थित नवकार भवन से धर्मानुरागियों को प्रसारित धर्म संदेश में आचार्यश्री ने कहा कि असंयमी व्यक्ति दूसरों के हक या अधिकार को दबाकर उस धन से भले ही बडा बंगला बना ले, बहुमुल्य वस्त्र खरीद ले और स्वादिष्ट पदार्थों का संग्रह कर ले, लेकिन वह स्वस्थ शरीर, प्रसन्न मन और आत्मीय परिवार की प्राप्ति नहीं कर सकता। उसके शरीर में दो रोग ठीक नहीं होते और चार नए रोग उभर आते है। परिवार में नित नया संघर्ष चलता रहता है। क्लेश रहित परिवार का सुख वह नहीं भोग सकता। ऐसे व्यक्ति का मन खिन्न रहता है। असंयम भी कोरोना की तरह संक्रमणशील बिमारी है, यह जिसकों लग जाती है, वह जहां जाता है अपने वायरस फैलाता है। इसलिए याद रखे कि स्वस्थ तन प्रभु का मंदिर है और स्वच्छ मन प्रभु की प्रार्थना है। असंयम न तन को स्वस्थ रहने देता है और ना मन को स्वच्छ रहने देता है। वह दोनो पर आघात करता है।
श्रम और विश्राम में बनाए संतुलन
आचार्यश्री ने कहा कि आरोग्य के लिए प्रतिदिन गरिष्ठ भोजन नहीं करना, उत्तेजक पदार्थों का सेवन नहीं करना और अतिश्रम और अति विश्राम के बीच संतुलन रखना चाहिए। इसके अलावा अपना स्वभाव हंसमुख, मिलनसार और समन्वयशील रखना होगा। सकारात्मक सोच एवं नजरिया भी आरोग्य प्रदान करता है। व्यसनमुक्त जीवनशैली तथा चिंता-आवेग व आवेश से मुक्त मन, आरोग्य के संवाहक है। रोगों की अनावश्यक चर्चा, चिंता व व्यथा भी रोगों को बढाने वाली होती है। रोग मुक्त शरीर के लिए आलस्य और प्रमाद से बचना चाहिए। आलस्य वैसे ही सारे अपराधों का जन्मदाता माना गया है। अनावश्यक आलस्य में जब समय बीतता है, तो शरीर पंगु-जड व अकर्मण्य बन जाता है।
कमजोर बना देती है भोग और लिप्सा