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हम दर्द बने, सिर दर्द नहीं : आचार्य श्री विजयराजजी महाराज

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हरमुद्दा
रतलाम,22 अप्रैल। खुशी उनकों नहीं मिलती, जो अपने इरादों से जिदंगी जीया करते है। खुशी उनकों मिलती है, जो दूसरों की खुशी के लिए जीया करते है। दूसरों को खुश रखने वाले ही सदा खुश रहते है। इसलिए प्रसन्न रहने और रखने के लिए दूसरों के दुख दर्द को बांटे, उनके हम दर्द बने, सिर दर्द नहीं।
यह बात शांत क्रांति संघ के नायक, जिनशासन गौरव, प्रज्ञानिधि, परम श्रद्वेय आचार्यप्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। सिलावटो का वास स्थित नवकार भवन में विराजित आचार्यश्री ने धर्मानुरागियों को प्रसारित धर्म संदेश में कहा कि हमदर्दी का भाव सकारात्मक होता है। उसमें मानवता भरी होती है। मनुष्य यदि आज किसी का हम दर्द बनेगा, तो कल उसका कोई सिर दर्द नहीं बनेगा। हम दर्द को हम दर्द ही मिलते है। मनुष्य जीवन की महत्ता एवं विशेषता इसी मंे छुपी है। दूसरों के दुख को घटाने में लगने वाला सदा अपना सुख बढाता है। तनाव मुक्ति का यह फार्मूला अपनाया जाए, तो अधिक नशीली दवा एवं पेय पीने की जरूरत नहीं रहती। नशीला दवा और पेय कोई उपचार नहीं है। ये तो बिमारियों का घर होते है। इनसे खुद भी बचना चाहिए और औरो को भी बचाना चाहिए। खुद की प्रसन्नता खुद में ही ढूंढना चाहिए, क्योंकि हमारी प्रसन्नता औरों के हाथ में नहीं होती। यह हमारें भीतर ही छुपी रहती है।

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प्रसन्नता का संबंध संपन्नता से नहीं

आचार्यश्री ने कहा कि प्रसन्नता काफी हद तक जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण पर निर्भर करती है। आज के आपाधापी से परिपूर्ण जिदंगी में तनाव का उचित प्रबंध नहीं कर पाने के कारण भी लोग अपनी प्रसन्नता को गवां देते है। प्रसन्नता का संबंध संपन्नता से नहीं होता। संपन्न व्यक्ति अधिक अप्रसन्न दिखाई देते है, क्योंकि वे तनावों का उचित प्रबंध नहीं कर पाते। इसका कारण अपने लिए वक्त नहीं निकाल पाना भी होता है। मनुष्य यदि समय निकाल कर उसे रचनात्मक कार्यों में निवेश करे, तो प्रसन्नता का ग्राफ अपने आप बढेगा। रचनात्मकता ही प्रसन्नता का प्रमुख आधार है। कोरोना के इस संकट काल में हर व्यक्ति को अपनी रचनात्मक चेतना को जगाना चाहिए। इस चेतना के जागने पर शरीर में रोग प्रतिरोधक तंत्र मजबूत बनता है। मनुष्य की मानसिक स्थिति अच्छी नहीं रहती, तब शरीर का रोग प्रतिरोधक तंत्र कमजोर होता है। इसी स्थिति में सिर दर्द, शरीर दर्द होना एक आम बात हो जाती है। व्यक्ति जब खुद प्रसन्न नहीं रहता, तो उसके संपर्क में आने वाले लोगों को कैसे खुश रखेगा।

एक चुप हजार सुख का फार्मूला कारगर

आचार्यश्री ने बताया कि खुश रहना और खुश रखना आज की सबसे बडी और प्रमुख समस्या है। मनुष्य अपने लिए वक्त निकालकर ही इन समस्याओं से छुटकारा पा सकता है। तनाव ग्रस्त अपने पर नियंत्रण नहीं रख सकता। अनियंत्रित मन और जुबान अनेक समस्याओं को खडी कर देती है। एक चुप-हजार सुख का फार्मूला ऐसी स्थिति में कारगर रहता है, इसलिए विपरीत परिस्थितियों में इस फार्मूले को अपनाए और समस्याओं से निजात पाए। दो क्षण की शांति आपकों अशांत, लज्जित, तिरस्कृत होने से बचा लेगी। अन्यथा अपनी प्रतिक्रिया भी अशांत करने वाली बन जाती हैं। प्रसन्नता के लिए शांत रहना जरूरी है।

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