कोरोना के भयप्रद वातावरण में अभय की चेतना इमानदारी से ही जगेगी : आचार्यश्री विजयराजजी महाराज
हरमुद्दा
रतलाम,23 अप्रैल। ईमानदारी, घर में शांति का केन्द्र, व्यवसाय में ख्याति का केन्द्र, देश में शक्ति का केन्द्र होती है। इसी से जनमानस में विश्वास स्थापित होता है। ईमानदारी ना तो क्रय-विक्रय की वस्तु और ना ही इसका आयात-निर्यात हो सकता है। जो कहा, वो करो और जो करो, वह कहो, यही ईमानदारी की पृष्ठभूमि है। कोरोना के इस भयप्रद वातावरण में अभय की चेतना ईमानदारी से ही जगेगी।
यह प्रेरक संदेश शांत क्रांति संघ के नायक, जिनशासन गौरव, प्रज्ञानिधि, परम श्रद्वेय आचार्यप्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने दिया है। सिलावटो का वास स्थित नवकार भवन में विराजित आचार्यश्री ने धर्म संदेश में धर्मानुरागियों को बताया कि सत्य निष्ठा ही ईमानदारी को जन्म देते है। सत्य, निष्ठा के बिना ईमानदारी की कल्पना नहीं की जा सकती। सत्य में वो शक्ति है, जो मानव मन को अभय, निर्भय और निश्चित बनाती है। ईमानदार व्यक्तित्व का ऐसा महान गुण है, जो पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन को विश्वसनीय बनाता हैं। इसके बिना सफल और सरस जीवन को कोई आधार नहीं मिलता। वर्तमान दौर में ईमानदार का जितना पतन हुआ है, उतना किसी का नहीं हुआ है। इमानदार और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति जिस संगठन व समाज तथा देश में होंगे, उसका नैतिक धरातल कभी कमजोर नहीं हो सकता। वहां की आबोहवा सदैव सुखद और शांतिप्रद ही रहेगी।
कभी ना छोड़ो ईमानदारी का दामन
आचार्यश्री ने कहा कि जो व्यक्ति अपने प्रति इमानदार होता है, वहीं दूसरों के प्रति इमानदार रह सकता है। इसलिए पहले अपने प्रति इमानदार बनने की आवश्यकता है। इमानदारी का दामन छोड देने वाले ना तो कभी खुद सुख से जीते है और ना ही दूसरों को जीने देते है। इमानदार व्यक्ति ही सही अर्थों में धार्मिक कहलाने के हकदार होते है। धर्म और इमानदारी दोनो एक-दूसरे के पूरक होते है। धर्म बिना इमानदारी और इमानदारी के बिना धर्म जिंदा नहीं रह सकते। यदि व्यक्ति की मानसिकता इमानदार रहने की होती है, तो वह कठिन से कठिन परिस्थिति में भी इमानदार रह सकता हैं। परिस्थितियां उसका कुछ नहीं बिगाड सकती हैं। परिस्थितियों का बहाना बेइमानों के घर चलता है। इमानदार हर कष्ट एवं मुसीबत में अपने को इमानदार रखते है। मानव केवल आकार-प्रकार, रंग-रूप या वेश-भूषा से नहीं अपितु इमानदारी व नैतिकता की योग्यता से महान होता हैं इमानदारी ही मानव को मर्यादा में रखती है। मर्यादा में इन्द्रियां काबू में, मन नियंत्रण में और चेतना समाधि में रहती है।
ईमानदारी की अपेक्षा करने वालों को होना पड़ेगा ईमानदार
आचार्यश्री ने कहा इमानदारी किसी के लिए कष्टदायी नहीं होती, वह तो सबकों सुख एव सुकून देती है। इसके लिए सिर्फ अपने स्वार्थ, लालच, और महत्वाकांक्षा को काबू में करना पडता है। स्वार्थ से प्रेरित इमानदारी भी छदम रूप से बेइमानी होती है। बेइमानी जहां होती है, वहां भय, त्रास,व्यग्रता और तनाव रहता है। यदि कोई दूसरों से इमानदारी की अपेक्षा करता है, तो उसे पहले स्वयं को इमानदार होना चाहिए। बेइमान रहकर इमानदारी की आशा कभी फलवती नहीं होती।
मानव मन की बेइमानी को उजागर कर रहा कोरोना
आचार्यश्री ने कहा कि इमानदार के आंचल में ही संसार के सारे सुख बसते है। ये सुख मन,वचन और कर्म से सरल एवं निष्कपट व्यक्ति को ही मिलते है। पूरा समाज जब इमानदारी को ताक में रख देगा, तो नैतिक मूल्यों की रखवाली कौन करेगा। आज सबकों विचार करना चाहिए कि कोरोना का यह महासंकट कही मानव मन की बेइमानी को उजागर तो नहीं कर रहा है। कुछ लोगों की बेइमानी का फल आज पूरे विश्व को भुगतना पड रहा है। समय रहते यदि अब भी संभल जाए और इमानदारी के धर्म को जीवन में धारण कर ले, तो जनमंगल से जीवन मंगल होते देर नहीं लगेगी।