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लॉक डाउन कर्फ्यू में छूट : नाकाफी इंतजाम, प्रशासन ने ठीकरा फोड़ा आमजन पर, रिपोर्ट पर शंका की नजर

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हेमंत भट्ट

रतलाम, 26 अप्रैल। जिला प्रशासन द्वारा लॉक डाउन कर्फ्यू में दो दिन बुधवार और गुरुवार को दो-दो थाना क्षेत्रों के अनुसार खरीदारी करने के लिए छूट दी गई, लेकिन प्रशासन की बद इंतजामी फिर जाहिर हुई। नाकाफी इंतजाम के बीच लोगों ने घर से निकलना शुरू किया, जिन्हें रोकने टोकने वाला कोई भी नहीं मिला। नतीजतन धानमंडी, माणकचौक क्षेत्र सहित अन्य स्थानों पर खरीदारों का मेला सा लग गया।

IMG_20200317_080734जिला प्रशासन को पता ही था कि 2 दिन के बाद रमजान शुरू होने वाला है। अधिकांश खरीदारी एक महीने के लिए की जाएगी तो फिर यह ध्यान क्यों नहीं रखा कि इतने सारे लोग कैसे धानमंडी क्षेत्र में पहुंच गए, वह भी वाहनों को लेकर। जब 6 घंटे की छूट थी तो लोगों को रोका जा सकता था धानमंडी और माणक चौक क्षेत्र में आने से, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। बारी-बारी छोड़ा जाता खरीदारी के लिए तो इतना मेला नहीं लगता। खैर अभी तो कुछ हुआ नहीं है। लेकिन इसके परिणाम गंभीर भी हो सकते हैं, जिससे इनकार नहीं किया जा सकता।

क्षेत्रों में क्यों नहीं रोका वाहनों को

यह तो सर्वविदित है कि चौराहे-चौराहे पर पुलिस खड़ी हुई है। लोगों को जाने नहीं दे रही है तो फिर इतने सारे लोग वाहनों के साथ कैसे पहुंच गए। हजारों वाहन नाहरपुरा और शहर सराय में जमा थे। वहीं इससे ज्यादा वाहन सड़कों पर फर्राटे मार रहे थे, लेकिन उन्हें कोई रोकने टोकने वाला नजर नहीं आया। पुलिस और प्रशासन भी असहाय दिखा। आखिर इस समय पुलिस ने अपना सख्त रूख अख्तियार क्यों नहीं किया? हाथों में डंडा क्यों नजर नहीं आया?

करे कोई भरे कोई

जिला और पुलिस प्रशासन की बाद इंतजामी व नाकामी का ठीकरा आखिर आम जनता पर फूट गया। कहते हैं करे कोई भरे कोई। वाली कहावत चरितार्थ हुई। प्रशासन ने छूट के पहले पूरा इंतजाम नहीं किया और आमजन खरीदारी के लिए सड़कों पर आ गए। इसमें भी अधिकांश वे लोग थे जो त्योहार विशेष की खरीदारी करने में तल्लीन हो गए। जब माणक चौक थाना क्षेत्र की दुकानें खुली थी तो जाहिर है लोगों की भीड़ जुटना तय थी। होना तो यह चाहिए था कि भीड़ को संभालने के पूरे तंत्र होते, मगर ऐसा नहीं हुआ। जिला और पुलिस प्रशासन ने बिना किसी तैयारी के ऐसी छूट क्यों दे दी इस पर सवालिया निशान लगने लाजमी है।

और उनको मिल गया मौका

ऐसे अवसर पर बटरिंग करने वालों को फिर मौका मिल गया और उन्होंने भी कह डाला कि रतलाम की जनता तो खाने के लिए मरती है। प्रशासनिक महिला अधिकारी ने कुछ गलत नहीं कहा था।

कोरोना रिपोर्ट पर भी उठ रहे सवाल

शनिवार को फिर एक व्यक्ति के पॉजीटिव होने की सूचना मिलने पर लोगों की प्रतिक्रिया यही रही कि आखिर इतनी गंभीर बीमारी की रिपोर्ट आने में 15-15 दिन क्यों लग रहे हैं? या फिर प्रशासन इस भी पर्दा डाल रहा है। आमजन पत्रकारों से ही पूछती है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? रिपोर्ट समय पर सही-सही जाहिर क्यों नहीं की जा रही है। शक की सुई घुमाते हुए कहने लगे कि जब केंद्र सरकार ने कुछ दुकानें खोलने की छूट दी। तभी पॉजीटिव निकल कर आया जबकि इतने दिनों से कोई पॉजीटिव रिपोर्ट नहीं आई। वहीं भोपाल की प्रदेश स्तरीय रिपोर्ट में
पांच छह दिन पहले की रिपोर्ट में रतलाम में 13 पॉजीटिव की संख्या दर्ज दिखाई थी। हरमुद्दा ने इस मुद्दे पर कलेक्टर से चर्चा की थी, तब उन्होंने बताया था कि हमें तो 12 की रिपोर्ट ही पता है। 13 वें व्यक्ति का नाम और रिपोर्ट नहीं आई है। खास बात तो यह भी है कि प्रदेश स्तरीय रिपोर्ट में 5 दिन तक रतलाम में कोरोना पॉजीटिव की संख्या 9 ही दिखाती रही। फिर वहां संख्या 12 हुई। शहरवासियों की आजादी में कुछ षड्यंत्र तो नहीं? रिपोर्ट पर शंका की नजर लगी हुई है।

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