अमरता का साम्राज्य
डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला
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ऋग्वेद के दस मंडलों में 114 सूक्तों का एक पूरा मंडल
सोम के लिये है ,जो यह बताता है कि सोम वानस्पतिक
वस्तु भर नहीं, वह ज्योतिर्मय अमृत रसायन है,जो ऊपर
से छनता हुआ आता है , और जल में , मिट्टी में , वायु में
घुल कर सर्वत्र व्याप्त हो जाता है । इस छोटे से सूक्त में
एक रूपक है , जहाँ द्यौ के पृष्ठ पर तनी हुई छाननी है ,
जो ज्ञान से प्रकाशित हुआ मन है । हमारा शरीर कलश
है , जिसमें उतर कर सोम पार्थिव जागरण के लिये हमें
तैयार करता है । इसीलिए ऋषि सोम को आनंदब्रह्म के
स्वरूप में देख कर भाव विभोर हो उठता है ।
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पवित्रं ते विततं ब्रह्मणस्पते प्रभुर्गात्राणि पर्येषि विश्वत:।
अतप्ततनूर्न तदामो अश्नुते शृतास इद्वहन्तस्तत्समाशत।।
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ऋग्वेद.9.83.1
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ओ मेरी आत्मा के स्वामी !
तुम्हारी पवित्रता छन कर आ रही मेरे ऊपर ,
फैल रही है कोर-कोर में ।
जो तपा नहीं तुम्हारी ज्वाला में ,
वह झेल नहीं पाता
तुम्हारे आनंद की रसधारा ,
वही वहन करता है
तुम्हारा प्रेम , तुम्हारी शान्ति
जिसने साधा है कृपा को ,
जिसने साधा है तुम्हारा अमृतकोश।।1।।
दिव्यलोक में तनी हुई
मन की तरह कोमल
तुम्हारी झीनी सी मलमल,
जिसमें से उतरता है छन कर आनंद
इस देहकलश में ,
तन्तुओं से फूट रही हैं स्वर्ण-रश्मियाँ ,
आसव से खिल उठा जीवन ,
और चेतना जा बैठी सचमुच
द्यौ के उच्च शिखर पर ।।2।।
तुम ही हो
नाना रंगों में प्रकट होते परमपिता ,
तुम्हीं ने उषाओं को चमकाया ,
तुम ही वह यज्ञनारायण
जिसने छलकाया अमृतकलश ,
पूर्वज शिल्पियों ने
तुम्हारी ही माया से बनाई देवप्रतिमा ,
तुम ही आ कर बैठे हो
विश्व के गर्भ में शिशु की तरह।।3।।
सोम ! तुम गन्धर्व हो
आनंद की सेनाओं के अधिपति ।
तुम पहरा देते हो चैत्य के चारों ओर ,
हे अद्भुत ! रक्षा करते हो दिव्य जन्म की ,
घेर लेते हो उन शत्रुओं को
जो भीतर की दीवारों पर घात लगाये हुए ।
ग्राहक तो वे ही हैं तुम्हारे मधु के
जिन्होंने साध लिया है
कर्मों की गति को।।4।।
ओ आनंदब्रह्म !
तुम विशाल हो और प्रकाश का घर हो।
आकाश को ओढे हुए तुम
यज्ञ की परिक्रमा करते हुए
कितने सौम्य लगते हो ।
पवित्र रथ पर बैठे हुए
आरोहण करते हो ऊर्ध्व में।
हजारों ज्योति से जगमगाते हुए
जीत लेते हो अमरता का साम्राज्य।।5।।